योगी सरकार में 119 पुलिस मुठभेड़, 74 की जांच में पुलिस को क्लीनचिट: रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यकाल के दौरान मुठभेड़ के 61 मामलों में पुलिस ने क्लोज़र रिपोर्ट भी दायर कर दी है, जिसे अदालतों ने स्वीकार भी कर लिया था.

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Lucknow: Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath addresses a press conference on completion of his three years in office at Lok Bhawan, in Lucknow, Wednesday, March 18, 2020. (PTI Photo/Nand Kumar)(PTI18-03-2020_000074B)

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यकाल के दौरान मुठभेड़ के 61 मामलों में पुलिस ने क्लोज़र रिपोर्ट भी दायर कर दी है, जिसे अदालतों ने स्वीकार भी कर लिया था.

विकास दुबे के कथित एनकाउंटर की जगह और पुलिस काफिले की दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी. (फोटो: पीटीआई)
विकास दुबे के कथित एनकाउंटर की जगह और पुलिस काफिले की दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी. (फोटो: पीटीआई)

लखनऊः उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट की 2014 के दिशानिर्देशों के अनुरूप गैंगस्टर विकास दुबे मुठभेड़ की जांच करेगी.

इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में दस्तावेजों के हवाले से बताया है कि मार्च 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से विकास दुबे 119वां आरोपी है, जो पुलिस मुठभेड़ में मारा गया है.

इन पुलिस मुठभेड़ों में से 74 मामलों की मजिस्ट्रेट जांच तक पूरी हो गई है, जिसमें पुलिस को क्लीनचिट मिल चुकी है. 61 मामलों में पुलिस क्लोजर रिपोर्ट तक दायर कर चुकी है, जिसे अदालत ने भी स्वीकार कर लिया है.

रिकॉर्ड से पता चला है कि पुलिस ने अब तक 6,145 ऑपरेशन किए हैं, जिनमें से 119 आरोपियों की मौत हुई है और 2,258 आरोपी घायल हुए हैं.

इन ऑपरेशंस में 13 पुलिसकर्मियों की मौत हुई है, जिसमें पिछले सप्ताह कानपुर में मारे गए आठ पुलिसकर्मी भी शामिल हैं. कुल मिलाकर 885 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि तय कानूनी प्रक्रिया होने के बावजूद एनकाउंटर किलिंग में नियमों की अवहेलना जारी है.

पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद में 26 साल की डॉक्टर के सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोपी चार लोगों की मुठभेड़ में मौत के मामले में उच्चतम न्यायालय के पूर्व जज वीएन सिरपुरकर की अध्यक्षता में स्वतंत्र जांच का आदेश दिया था.

ऐसा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकर आयोग और तेलंगाना हाईकोर्ट के समक्ष मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी थी.

उस समय तेलंगाना पुलिस ने भी कहा था कि आरोपी पुलिसकर्मियों से हथियार छीनकर भागने की कोशिश कर रहे थे, इस वजह से उन्हें गोली मारी गई. इस घटना के लगभग सात महीने बाद भी जांच जारी है.

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में हुई मुठभेड़ मामलों में दखल देते हुए जनवरी 2019 में इसे बहुत ही गंभीर मामला बताया था.

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने 1000 से ज्यादा एनकाउंटर और उनमें 50 से ज्यादा लोगों की मौत के मामले में सुप्रीम अदालत में याचिका दायर की थी.

इस मामले पर जुलाई 2018 से फरवरी 2019 के बीच चार बार सुनवाई हुई, लेकिन तब से इसे सूचीबद्ध नहीं किया गया है.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इन मुठभेड़ों में हुई मौतों को लेकर 2017 से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश सरकार को तीन नोटिस जारी किए हैं और राज्य सरकार ने अपना बचाव करते हुए इन सभी नोटिस का एक ही जवाब भेजा है.

पिछले साल मार्च महीने में बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई थी, क्योंकि महाराष्ट्र सरकार ने एक फर्जी मुठभेड़ मामले में 2013 में सत्र अदालत द्वारा 11 दोषियों को सजा सुनाए जाने के फैसले को रद्द कर दिया था.

मालूम हो कि दो जुलाई की देर रात उत्तर प्रदेश में कानपुर के चौबेपुर थानाक्षेत्र के बिकरू गांव में पुलिस की एक टीम गैंगस्टर विकास दुबे को पकड़ने गई थी, जब विकास और उसके साथियों ने पुलिस पर हमला कर दिया था. इस मुठभेड़ में डिप्टी एसपी सहित आठ पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी और दुबे फरार हो गया था.

विकास दुबे को नौ जुलाई को मध्य प्रदेश के उज्जैन से गिरफ्तार कर उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स (यूपी-एसटीएफ) का दल अपने साथ कानपुर ला रहा था कि पुलिस दल की एक गाड़ी पलट गई. पुलिस का कहना था कि इस दौरान विकास दुबे ने भागने की कोशिश की तो पुलिस को गोली चलानी पड़ी.

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