कोयला खदानों की नीलामी के ख़िलाफ़ झारखंड सरकार की याचिका पर केंद्र को नोटिस

केंद्र सरकार ने देश के कोयला क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया है. इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में झारखंड सरकार ने कहा है कि इस निर्णय से पहले राज्य सरकारों को विश्वास में लेने की ज़रूरत थी.

/
(फोटो: पीटीआई)

केंद्र सरकार ने देश के कोयला क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया है. इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में झारखंड सरकार ने कहा है कि इस निर्णय से पहले राज्य सरकारों को विश्वास में लेने की ज़रूरत थी.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कोयला खदानों की वाणिज्यिक नीलामी के फैसले के खिलाफ झारखंड सरकार द्वारा दायर याचिका पर मंगलवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया.

झारखंड ने नीलामी में राज्य सरकारों को विश्वास में लेने की जरूरत बताते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की है. केंद्र सरकार ने नीलामी का फैसला कर देश के कोयला क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया है.

लाइव लॉ के मुताबिक, मुख्य न्यायधीश एसए बोबडे, एन. सुभाष रेड्डी और एएस बोपन्ना की पीठ ने नोटिस जारी करते हुए कहा कि वे इस मामले को सुनने के साथ ही कोयला खदानों की नीलामी पर रोक लगाने के मुद्दे को भी सुनने को इच्छुक हैं.

इस मामले की अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी. वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी झारखंड सरकार की ओर से पेश हुए थे. वहीं अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र का पक्ष रख रहे थे.

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था कि केंद्र सरकार के इस कदम से सामाजिक, आर्थिक और पर्यावर्णीय असर होगा. खनन से जंगल और आदिवासी जनसंख्या प्रभावित होगी. भूमि और लोगों के अधिकारों जैसे कई मुद्दे हैं, जिन्हें हल करने की जरूरत है. हमने जल्दबाजी न करने का फैसला किया है.

उन्होंने कहा कि एक सर्वे होना चाहिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस कदम से राज्य के लोगों को फायदा होगा या नहीं. इसलिए हमें इससे लड़ने की जरूरत है.

याचिका में कहा गया है कि नीलामी से पहले ‘आदिवासी आबादी’ पर पड़ने वाले सामाजिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने की जरूरत है. इसके अलावा राज्य के जंगलों एवं इससे आस-पास के निवासियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका निष्पक्ष मूल्यांकन किया जाना चाहिए.

याचिकाकर्ता ने कहा है कि कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न हुई स्थिति के चलते वैश्विक स्तर पर निवेश के लिए एक नकारात्मक माहौल बना हुआ है, इसलिए वाणिज्यिक कोयला खदानों की नीलामी से प्राकृतिक संसाधनों के बदले में कोई लाभ मिलने की संभावना नहीं दिखाई देती है.

याचिका में यह भी कहा गया है कि यह नीलामी प्रक्रिया कानूनी तौर पर सही नहीं होगी क्योंकि खनिज कानून (संशोधन) अधिनियम, 2020 इस साल मई महीने की 14 तारीख को समाप्त हो चुका है.

इसे लेकर झारखंड सरकार ने कहा था, ‘आज पूरी दुनिया लॉकडाउन से प्रभावित है. भारत सरकार कोयला खदानों की नीलामी में विदेशी निवेश की भी बात कर रही है जबकि विदेशों से आवागमन पूरी तरह बंद है. झारखंड की अपनी स्थानीय समस्याएं हैं. आज यहां के उद्योग धंधे बंद पड़े हैं. ऐसे में कोयला खदानों की नीलामी प्रक्रिया राज्य को लाभ देने वाली प्रतीत नहीं होती है.’

इसके अलावा याचिका में केंद्र सरकार के फैसले के आधार पर सवाल उठाया गया है कि अगस्त 2010 में कोयला खनन में 100 फीसदी विदेशी निवेश की इजाजत देने के केंद्र के फैसले से लेकर 13 मार्च 2020 को खनिज कानून में संशोधन कर इसे अल्पकालिक कानून बनाने के फैसले के बीच क्या किया गया है.

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 18 जनू को 41 कोयला ब्लॉक के वाणिज्यिक खनन को लेकर नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत की. इस कदम के साथ देश के कोयला क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया गया है.

इस दौरान मोदी ने कहा था, ‘वाणिज्यिक कोयला खनन के लिए निजी कंपनियों को अनुमति देना चौथे सबसे बड़े कोयला भंडार रखने वाले देश के संसाधनों को जकड़न से निकालना है.’

केंद्र सरकार का दावा है कि कोयला खदानों की वाणिज्यिक खनन के लिए नीलामी से देश में अगले पांच से सात साल में 33,000 करोड़ रुपये के पूंजीगत निवेश की उम्मीद है.

केंद्र सरकार के इस फैसले को लेकर छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य क्षेत्र के नौ सरपंचों ने नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर खनन नीलामी पर गहरी चिंता जाहिर की और कहा था कि यहां का समुदाय पूर्णतया जंगल पर आश्रित है, जिसके विनाश से यहां के लोगों का पूरा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा.

ग्राम प्रधानों ने कहा था कि एक तरफ प्रधानमंत्री आत्मनिर्भरता की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ खनन की इजाजत देकर आदिवासियों और वन में रहने वाले समुदायों की आजीविका, जीवनशैली और संस्कृति पर हमला किया जा रहा है.

वहीं कोयला क्षेत्र से जुड़े श्रमिक संगठन सरकार के इस फैसले का लगातार विरोध कर रहे हैं.

कोयला क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोलने के विरोध में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कोल इंडिया में श्रमिक संगठन दो से चार जुलाई तक हड़ताल पर थे. इसके कारण कोल इंडिया का उत्पादन औसतन 56 फीसदी प्रभावित हुआ था.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq