वरवरा राव ज़मानत के लिए अपनी उम्र और महामारी का लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं: एनआईए

भीमा कोरेगांव हिंसा और एल्गार परिषद मामले में 2018 से जेल में बंद 81 साल के सामाजिक कार्यकर्ता और कवि वरवरा राव में बीते हफ्ते कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई है.

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वरवरा राव. (फोटो: पीटीआई )

भीमा कोरेगांव हिंसा और एल्गार परिषद मामले में 2018 से जेल में बंद 81 साल के सामाजिक कार्यकर्ता और कवि वरवरा राव में बीते हफ्ते कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई है.

वरवरा राव. (फोटो: पीटीआई )
वरवरा राव. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता और कवि वरवरा राव (81) जमानत पाने के लिए वैश्विक महामारी के कारण उत्पन्न हुई स्थिति और अपनी उम्र का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते सोमवार को एनआईए द्वारा मामले में दायर किए गए हलफनामे में कहा गया है कि राव तथा अन्य आरोपियों पर कठोर यूएपीए कानून के चैप्टर IV (आतंकी गतिविधियों के लिए सजा) और चैप्टर V (आतंकवाद या आतंकी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल होने वाले सामान की बरामदगी) के तहत केस दर्ज है, जिसकी सजा सात साल से ज्यादा से लेकर उम्रकैद तक है.

बता दें कि भीमा कोरेगांव हिंसा और एल्गार परिषद मामले में 2018 से जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता एवं कवि वरवरा राव में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई है.

वरवरा राव को 13 जुलाई को चक्कर आने की शिकायत के बाद नवी मुंबई की तलोजा जेल से जेजे अस्पताल में भर्ती कराया गया था. कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद उन्हें सेंट जॉर्ज अस्पताल शिफ्ट किया गया.

इससे पहले उनके परिजनों ने पिछले दिनों उनसे बात करने के बाद उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंता जाहिर करते हुए जेल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप भी लगाया था.

कोरोना महामारी का हवाला देकर राव की अस्थाई रिहाई के लिए अंतरिम जमानत याचिका दायर की गई थी, लेकिन विशेष अदालत ने इसे खारिज कर दिया था.

इस आदेश के खिलाफ उनकी अपील पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने एजेंसी और केंद्र से जवाब तलब किया था.

जांच एजेंसी ने कहा कि महाराष्ट्र उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने दिशानिर्देश जारी कर 60 साल से अधिक उम्र वाले विचाराधीन कैदियों को अंतरिम जमानत के लिए आवेदन देने की बात की है, न कि ऑटोमैटिक तरीके से जमानत देने की.

एनआईए ने कहा कि किसी को जमानत देना कोर्ट के विवेकाधीन और उनके अधिकार क्षेत्र का मामला है.

एजेंसी ने हलफनामे में कहा, ‘जमानत देने का फैसला हर मामले के तथ्यों एवं हालातों को देखकर किया जाना चाहिए. इसमें आरोपी व्यक्ति के खिलाफ सबूतों को भी देखा जाना चाहिए. राव की संलिप्तता को लेकर पर्याप्त सबूत सौंपे जा चुके हैं.’

केंद्रीय जांच एजेंसी ने कहा कि उनके पास इसके पुख्ता सबूत हैं कि वरवरा राव प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के एक वरिष्ठ सदस्य हैं और न केवल योजना बनाने और हिंसा की तैयारी में शामिल हैं, बल्कि बड़े पैमाने पर हिंसा कराने में भी संलिप्त थे, जिससे संपत्ति का नुकसान हुआ है.

उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि जेल प्रशासन ने समय पर कार्रवाई की और उन्हें जरूरी स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराईं. उन्हें 28 मई, 2020 को जेजे अस्पताल में भर्ती कराया गया था और मेडिकल इलाज के बाद उन्हें एक जून, 2020 को डिस्चार्ज कर दिया गया था.

एनआई ने कहा, ‘जेजे अस्पताल के सुप्रिटेंडेंट द्वारा पेश की गई रिपोर्ट यह नहीं बताती है कि वह किसी भी ऐसी बीमारी से पीड़ित हैं, जिसके लिए मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में तुरंत जाकर उन्हें विशेष डॉक्टर से इलाज कराने की जरूरत है. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता (राव) की स्वास्थ्य स्थिति के संबंध में दलील केवल अंतरिम राहत पाने के लिए दुरूपयोग की जा रही है, केस के मेरिट के हिसाब से उन्हें ये राहत नहीं दी जा सकती है.’

हालांकि बीते दिनों राव से मिलने अस्पताल पहुंचे उनके परिवार के सदस्यों का कहना है कि कथित तौर पर कोई भी डॉक्टर उनका इलाज नहीं कर रहा था.

उनके एक संबंधी ने कहा, ‘उन्हें ट्रांसिट वार्ड में रखा गया था. उनके कपड़े अस्त-व्यस्त थे और वह होश में नहीं लग रहे थे, वह अपनी पत्नी और बेटियों को पहचान नहीं पा रहे थे.’

डॉक्टरों का कहना है कि राव बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरट्रॉफी से जूझ रहे हैं, यह एक ऐसी स्थिति है, जिसके तहत प्रोस्टेट की समस्या से पेशाब करने में दिक्कतें आने लगती हैं. उनमें डेरीलियम (होश-हवाश में न बोलने) और कमजोरी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं.

उनके परिजनों के साथ ही बीते दिनों इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र सरकार और एनआईए को पत्र लिखकर अपील की थी कि उन्हें उचित इलाज दिया जाए.

उनका कहना था कि ऐसी बीमारी की अवस्था में राव को जेल में रखने की इजाजत कोई कानून नहीं देता है.

इससे पहले मई में राव को जेल में बेहोश होने के बाद जेजे अस्पताल भर्ती कराया गया था लेकिन तीन दिनों के भीतर ही उन्हें अस्पताल से वापस जेल भेज दिया था.

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