देश में 1.60 लाख से अधिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान बिना अनुमति के चल रहे: प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

राष्ट्रीय ​हरित अधिकरण में याचिका दायर कर आग्रह किया गया है कि ऐसे सभी अस्पतालों और चिकित्सा प्रतिष्ठानों तथा कचरा निस्तारण संयंत्रों को बंद किया जाए जो कचरा प्रबंधन नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं.

(फोटो: पीटीआई)

राष्ट्रीय हरित अधिकरण में याचिका दायर कर आग्रह किया गया है कि ऐसे सभी अस्पतालों और चिकित्सा प्रतिष्ठानों तथा कचरा निस्तारण संयंत्रों को बंद किया जाए जो कचरा प्रबंधन नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं.

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(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने मंगलवार को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को बताया कि देश में 1.60 लाख से अधिक स्वास्थ्य देखरेख प्रतिष्ठान ऐसे हैं जिन्होंने जैव चिकित्सा कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के तहत आवश्यक अनुमति नहीं ली है और वे बिना मंजूरी के ही चल रहे हैं.

शीर्ष प्रदूषण निगरानी इकाई ने एनजीटी को बताया कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा सौंपी गई वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 270,416 स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों में से केवल 111,122 इकाइयों ने ही अनुमति के लिए आवेदन किया है और 110,356 स्वास्थ्य देखरेख इकाइयों को जैव चिकित्सा कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के तहत मंजूरी मिल चुकी है.

सीपीसीबी ने कहा कि इन 270,416 स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों में से केवल 110,356 प्रतिष्ठानों को ही वर्ष 2019 तक की अनुमति मिली.

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अनुमति के लिए आवेदन कर चुके और अनुमति प्राप्त कर चुके स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों के अतिरिक्त लगभग 50 हजार स्वास्थ्य प्रतिष्ठान ऐसे हैं जिन्होंने न तो आवेदन किया है और न ही अनुमति प्राप्त की है.

एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्यों को प्रक्रिया तेज करने और इसे 31 अगस्त तक पूरा करने तथा सीपीसीबी को अनुपालन रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया.

रिपोर्ट के अनुसार, 25 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश सभी स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों से संबंधित अपनी पड़ताल पूरी कर चुके हैं और 10 राज्यों- असम, केरल, मिजोरम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, मेघालय तथा उत्तराखंड को अभी यह कार्य पूरा करना बाकी है.

अधिकरण ने इन राज्यों से प्रक्रिया में तेजी लाने और इसे 31 अगस्त 2020 तक पूरा करने तथा अनुपालन रिपोर्ट केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सौंपने को कहा है.

रिपोर्ट में कहा गया कि जैवचिकित्सा कचरे के निस्तारण और शुद्धिकरण के लिए सात राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों-अंडमान निकोबार, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, लक्षद्वीप, मिजोरम, नगालैंड और सिक्किम में कोई सार्वजनिक जैव-चिकित्सा कचरा शोधन प्रतिष्ठान नहीं है.

इसमें कहा गया है कि ये राज्य बायोमेडिकल कचरे के निस्तारण के लिए मौजूदा कैप्टिव ट्रीटमेंट सुविधाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि इस कचरे को जमीन में गहराई पर गाड़कर भी इसका निस्तारण किया जा रहा है.

हेल्थकेयर सुविधाओं जैसे पशु चिकित्सालय, पशु घर, आयुष हॉस्पिटल्स इत्यादि की मॉनिटरिंग के संबंध में यह कहा गया कि अंडमान और निकोबार, असम, जम्मू कश्मीर, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मेघालय, नगालैंड, राजस्थान और त्रिपुरा ने कोई जानकारी नहीं दी है.

सीपीसीबी ने पशु अस्पतालों और पशु घरों का रैंडम निरीक्षण किया और पाया कि उनमें से अधिकांश ने निर्धारित प्राधिकरण से मंजूरी प्राप्त नहीं किया है.

एनजीटी ने सीपीसीबी को निर्देश दिया कि वह मामले से जुड़े सभी पहलुओं पर सभी राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से मिली सूचना के आधार पर 30 नवंबर तक एक समेकित रिपोर्ट दायर करे.

अधिकरण ने उत्तर प्रदेश निवासी पत्रकार शैलेश सिंह की याचिका पर यह निर्देश दिया जिसमें आग्रह किया गया है कि ऐसे सभी अस्पतालों और चिकित्सा प्रतिष्ठानों तथा कचरा निस्तारण संयंत्रों को बंद किया जाए जो कचरा प्रबंधन नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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