खेती न केवल खाद्य उत्पादक मशीन है, बल्कि सभी के लिए रोज़गार की नींव है: एमएस स्वामीनाथन

साक्षात्कार: कोरोना के दौर में राहत देने के लिए मोदी सरकार द्वारा 'ऐतिहासिक कृषि सुधार' के नाम से तीन कृषि अध्यादेश लाए गए हैं, लेकिन किसान ही इनके ख़िलाफ़ हैं. कई सालों से चले आ रहे कृषि संकट पर प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन कहते हैं कि किसानों के प्रति रवैये में बदलाव लाने की ज़रूरत है.

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कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन. (फोटो साभार: फेसबुक/mssrf.org)

साक्षात्कार: कोरोना के दौर में राहत देने के लिए मोदी सरकार द्वारा ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ के नाम से तीन कृषि अध्यादेश लाए गए हैं, लेकिन किसान ही इनके ख़िलाफ़ हैं. कई सालों से चले आ रहे कृषि संकट पर प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन कहते हैं कि किसानों के प्रति रवैये में बदलाव लाने की ज़रूरत है.

कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन. (फोटो साभार: फेसबुक/mssrf.org)
कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन. (फोटो साभार: फेसबुक/mssrf.org)

नई दिल्ली: कृषि सुधार के नाम पर मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि अध्यादेशों के खिलाफ किसानों के बढ़ते विरोध प्रदर्शनों के बीच भारत में हरित क्रांति के जनक और प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने कहा है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग तभी लाभकारी होगी, जब इसे किसान केंद्रित बनाया जाएगा.

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देना उन तीन कृषि अध्यादेशों में से एक है, जो बड़े बिजनेस और कॉरपोरेट जगत को कृषि में बड़े स्तर पर एंट्री प्रदान करता है.

सरकार के ये तथाकथित कृषि सुधार मोदी सरकार के कोरोना राहत पैकेज के रूप में लाए गए ‘आत्मनिर्भर भारत पैकेज’ का हिस्सा हैं, जिसे विशेषज्ञों ने जल्दबाजी और इस समय के हिसाब से गैर-जरूरी करार दिया है.

जानकारों का मानना है कि अभी ऐसी कोई जल्दी नहीं थी कि संसद का इंतजार किए बिना इसे आनन-फानन में अध्यादेश के जरिये पारित किया जाए.

द वायर  के साथ इंटरव्यू में इस पैकेज के विभिन्न पहलुओं पर बात करते हुए प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन ने कहा कि अगर हम चाहते हैं कि किसान खेती न छोड़ें, तो हमें बड़ी सावधानी से कृषि के विभिन्न पहलुओं पर विचार करना होगा.

उन्होंने कोरोना राहत पैकेज के रूप में सरकार के कदमों का समर्थन करते हुए कहा कि यदि कृषि संकट को खत्म के लिए खेती और किसानों की प्रतिष्ठा का भी खयाल रखना चाहिए. अन्य व्यवसाय लोगों को नौकरियों से निकाल रहे हैं, लेकिन खेती नौकरियों के अवसर बढ़ाता है. 

इन सबसे ऊपर, कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि महात्मा गांधी की 150 वीं वर्षगांठ पर हमें गांधीवादी कृषि को बढ़ावा देना चाहिए जो इकोलॉजी को नुकसान पहुंचाए बिना उत्पादकता में वृद्धि करने में मदद कर सकती है. 


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प्रोफेसर स्वामीनाथन ने कहा, ‘कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग तभी लाभकारी होगी, जब यह किसान केंद्रित होगी. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को किसानों को उचित मूल्य और कटाई के बाद की तकनीक में निवेश सुनिश्चित करना चाहिए.’

उन्होंने आगे कहा, ‘वास्तव में कॉन्ट्रैक्ट खेती के माध्यम से अर्जित धन का एक हिस्सा बेहतर भंडारण और प्रसंस्करण जैसे खेती के बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए जाना चाहिए. किसानों को उत्पादन से लेकर मार्केटिंग तक सभी क्षेत्रों में सहयोग की आवश्यकता है.’

कोरोना राहत पैकेज के रूप में सरकार द्वारा कृषि की दिशा में की गईं घोषणाओं के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि सरकार ने उचित कदम उठाए हैं लेकिन इसकी सफलता लागू करने के तौर-तरीकों पर निर्भर करेगी.

प्रोफेसर स्वामीनाथन ने कहा, ‘कोरोना महामारी का किसानों सहित मानव जीवन और आजीविका पर कई तरह का प्रभाव पड़ा है. सरकार ने महामारी से प्रभावित लोगों की मदद के लिए कई उपायों की सही घोषणा की है. अंततः सफलता इन उपायों के कार्यान्वयन में एक एकीकृत दृष्टिकोण पर निर्भर करेगी.’

मोदी सरकार द्वारा आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन करने और एपीएमसी मंडियों के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने की व्यवस्था तैयार करने सवाल पर कृषि वैज्ञानिक ने कहा, ‘सुनिश्चित और लाभकारी मार्केटिंग आर्थिक और इकोलॉजिकली (पर्यावरण की दृष्टि से उचित) स्थायी कृषि के लिए आधार प्रदान करता है.’

प्रोफेसर स्वामीनाथन ने कहा कि यदि किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित किया जाता है तो यह स्थायी कृषि की दिशा में बड़ा कदम होगा.

उन्होंने कहा कि सरकार ने ऐसे कदम उठाए हैं जो कि खेती के लागत को कम सकते हैं और कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के साथ ही लाभ में भी बढ़ोतरी कर सकता है.

स्वामीनाथन ने कहा कि इस संबंध में ‘किसानों पर राष्ट्रीय आयोग’ द्वारा सौंपी गई ‘किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति’ में विस्तृत सुझाव दिए गए हैं, जिसे लागू किया जाना चाहिए.

मालूम हो कि प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में यूपीए सरकार द्वारा ‘किसानों पर राष्ट्रीय आयोग’ का गठन किया गया था. इसे ही ‘स्वामीनाथन आयोग’ कहते हैं.

इसकी एक बेहद महत्वपूर्ण सिफारिश यह थी कि किसानों को सी2 लागत पर डेढ़ गुना दाम मिलना चाहिए. लेकिन इस सिफारिश को आज तक लागू नहीं किया जा सका. 

सी2 लागत में खेती के सभी आयामों जैसे कि खाद, पानी, बीज के मूल्य के साथ-साथ परिवार की मजदूरी, स्वामित्व वाली जमीन का किराया मूल्य और निश्चित पूंजी पर ब्याज मूल्य भी शामिल किया जाता है.


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लेकिन सरकार ए2+एफएल लागत के आधार पर डेढ़ गुना एमएसपी दे रही है. चूंकि ए2+एफएल लागत सी2 लागत से कम होता है, इसलिए इसके आधार पर तय की एमएसपी भी कम होती है.

पिछले कई सालों से चले आ रहे खेती के संकट पर कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि हमें किसानों के प्रति अपने रवैये में बदलाव लाने की जरूरत है और यदि हम चाहते हैं कि किसान खेती न छोड़ें तो इस पर हमें गंभीरता से विचार करना होगा.

उन्होंने कहा, ‘हमें यह याद रखना चाहिए कि खेती न केवल खाद्य उत्पादक मशीन है, बल्कि सभी के लिए रोजगार की नींव है. खेती नौकरियों के अवसर पैदा करने वाला एक व्यवसाय है, जबकि अन्य व्यवसाय में आम तौर पर नौकरियां खत्म होती रहती हैं. हमें तत्काल जॉब-युक्त आर्थिक विकास की आवश्यकता है और यही वह जगह है जहां खेती महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है.’

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

प्रोफेसर स्वामीनाथन कृषि संकट के समाधान में किसानों और खेती की प्रतिष्ठा पर ध्यान देने की जरूरत को महत्वपूर्ण पहलू बताते हैं.

कृषि वैज्ञानिक ने कहा, ‘कृषि संकट को हल करने का एकमात्र तरीका प्रौद्योगिकी, तकनीकी-बुनियादी ढांचे, प्रशिक्षण, व्यापार पर अधिक ध्यान देने का प्रवाधन करना है. इसी तरह किसानों और खेती की प्रतिष्ठा पर ध्यान देना बेहद महत्वपूर्ण है.’

प्रोफेसर स्वामीनाथन ने मौजूदा कृषि संकट के समाधान के लिए महात्मा गांधी को याद किया और कहा कि यदि हम उनके दिखाए रास्ते पर चलते हैं तो खेती में उत्पादन भी बढ़ेगा और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होगा.

उन्होंने कहा, ‘इन सब उपायों से ऊपर हमें महात्मा गांधी की 150 वीं वर्षगांठ पर गांधीवादी कृषि को बढ़ावा देना चाहिए जो इकोलॉजी को नुकसान पहुंचाए बिना उत्पादकता में वृद्धि करने में मदद कर सकती है.’

मालूम हो कि बीते 20 जुलाई को राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के किसानों ने सरकार द्वारा हाल ही में लाए गए तीन कृषि अध्यादेशों के विरोध में ट्रैक्टर-ट्रॉली निकालकर विरोध प्रदर्शन किया गया था.

वहीं अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने इन अध्यादेशों के खिलाफ नौ अगस्त को देशव्यापी आंदोलन की घोषणा की है.

किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.

दूसरी ओर मोदी सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.

ये तीन कृषि अध्यादेश इस प्रकार हैं:

पहला, मोदी सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन किया है, जिसके जरिये खाद्य पदार्थों की जमाखोरी पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया. इसका मतलब है कि अब व्यापारी असीमित मात्रा में अनाज, दालें, तिलहन, खाद्य तेल प्याज और आलू को इकट्ठा करके रख सकते हैं.

दूसरा, सरकार ने एक नया कानून- कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 पेश किया है, जिसका उद्देश्य कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है.

तीसरा, केंद्र ने एक और नया कानून- मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020– पारित किया है, जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को कानूनी वैधता प्रदान करता है ताकि बड़े बिजनेस और कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट पर जमीन लेकर खेती कर सकें.

किसानों का कहना है कि यदि सरकार इन अध्यादेशों को बनाए रखना चाहती है तो वो बनाए रखे, उन्हें कोई समस्या नहीं है. बशर्ते सरकार सिर्फ एक और अध्यादेश या कानून ला दे कि देश में कहीं भी एमएसपी से कम पर कृषि उपज की खरीदी नहीं होगी. यदि कोई भी व्यापारी या ट्रेडर ऐसा करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

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