एनपीए एकमात्र ऐसा घोटाला है जिसका कोई खलनायक नहीं है

10 बड़े बिजनेस समूहों पर 5 लाख करोड़ का कर्ज़ बक़ाया है. इन पांच लाख करोड़ के लोन डिफॉल्टर वालों के यहां मंत्री से लेकर मीडिया तक सब हाजिरी लगाते हैं.

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The Reserve Bank of India (RBI) seal is pictured on a gate outside the RBI headquarters in Mumbai July 30, 2013. India's central bank left interest rates unchanged on Tuesday as it supports a battered rupee but said it will roll back recent liquidity tightening measures when stability returns to the currency market, enabling it to resume supporting growth. REUTERS/Vivek Prakash (INDIA - Tags: BUSINESS LOGO) - RTX124GY

10 बड़े बिजनेस समूहों पर 5 लाख करोड़ का कर्ज़ बक़ाया है. इन पांच लाख करोड़ के लोन डिफॉल्टर वालों के यहां मंत्री से लेकर मीडिया तक सब हाजिरी लगाते हैं.

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भूषण स्टील- 44,477 करोड़, एस्सार स्टील- 37,284 करोड़, भूषण पावर- 37,248 करोड़, एल्क्ट्रो स्टील-10,274, मोनेट इस्पात- 8,944 करोड़. कुल मिलाकर इन पांच कंपनियों पर बैंकों का बकाया हुआ 1, 38, 227 करोड़. एस्सार स्टील पर 22 बैंकों का बकाया है.

इसके अलावा अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप पर अकेले 1, 21, 000 करोड़ का बैड लोन है. इस कंपनी को 8,299 करोड़ तो साल का ब्याज़ देना है. कंपनी ने 44,000 करोड़ की संपत्ति बेचने का फ़ैसला किया है.

रूइया के एस्सार ग्रुप की कंपनियों पर 1, 01,461 करोड़ का लोन बक़ाया है. गौतम अडानी की कंपनी पर 96,031 करोड़ का लोन बाक़ी है. कहीं 72000 करोड़ भी छपा है. मनोज गौड़ के जेपी ग्रुप पर 75,000 करोड़ का लोन बाकी है.

10 बड़े बिजनेस समूहों पर 5 लाख करोड़ का बक़ाया कर्ज़ा है. किसान पांच हज़ार करोड़ का लोन लेकर आत्महत्या कर ले रहा है. इन पांच लाख करोड़ के लोन डिफॉल्टर वालों के यहां मंत्री से लेकर मीडिया तक सब हाजिरी लगाते हैं.

भारतीय रिज़र्व बैंक इन्हें वसूलने में बहुत जल्दी में नहीं दिखता, वैसे उसे नोटबंदी के नोट भी गिनने है. इसलिए 2 लाख करोड़ के एनपीए की साफ-सफाई की पहल होने की ख़बरें छपी हैं. इन समूहों को 2 लाख करोड़ की संपत्ति बेचनी होगी.

बैंक अपने बढ़ते हुए एनपीए के बोझ से चरमरा रहे हैं. एनपीए बढ़कर 8 लाख करोड़ हो गया है. इसमें से 6 लाख करोड़ का एनपीए पब्लिक सेक्टर बैंकों का है. करीब 20 पब्लिक सेक्टर ने जितने लोन दिए हैं उसका 10 फीसदी एनपीए में बदल गया है. इंडियन ओवरसीज़ बैंक का एनपीए तो 22 प्रतिशत से अधिक हो गया है.

2016 के दिसंबर तक 42 बैंकों का एनपीए 7 लाख 32 हज़ार करोड़ हो गया . एक साल पहले यह 4 लाख 51 हज़ार करोड़ था. इस साल के पहले आर्थिक सर्वे में लिखा हुआ है एशियाई संकट के वक्त कोरिया में जितना एनपीए था, भारत में उससे भी ज़्यादा हो गया है.

एनपीए को लेकर शुरू में लेफ्ट के नेताओं ने कई साल तक हंगामा किया, मगर पब्लिक डिस्कोर्स का हिस्सा नहीं बन सका. बाद में किसानों के कर्ज़ माफ़ी के संदर्भ में एनपीए का ज़िक्र आने लगा.

एनपीए को भी उद्योगपतियों को मिली कर्ज़ माफ़ी की नज़र से देखा जाने लगा. इसका दबाव सरकार पर पड़ रहा है. तीन साल तक कुछ नहीं करने के बाद पहली बार कोई सरकार एनपीए की तरफ क़दम बढ़ाती नज़र आ रही है. बैंकिंग कोड बना है, दिवालिया करने का क़ानून बना है.

लोन न चुकाने वाली कंपनियों के ख़िलाफ़ नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्युनल (एनसीएलटी) में याचिका दायर की गई है. मगर बैड लोन को लेकर कितनी शांति है. 8 लाख करोड़ लोन है तो मात्र 25 फीसदी को लेकर ही हरकत क्यों है?

इन सवालों को लेकर कोई भी मीडिया इनके घर नहीं जाएगा. वरना बेचारा रिपोर्टर कंट्री के साथ साथ इकोनोमी से ही बाहर कर दिया जाएगा. सब कुछ आदर से हो रहा है. रिपोर्टर ही नहीं, कोई मंत्री तक बयान नहीं दे सकता है. बेचारा उसकी भी छुट्टी हो जाएगी.

सीबीआई की प्रेस रीलीज़ के अध्ययन के दौरान नोटिस किया कि दस हज़ार करोड़ से भी ज़्यादा बैंकों में फ्रॉड के मामले की जांच एजेंसी कर रही है. बैंकों में चार हज़ार तक का घोटाला हो जाता है. शिव शंभु, शिव शंभु.

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने उन 12 खातों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं जिन पर 5000 करोड़ से अधिक का एनपीए है. कुल एनपीए का यह मात्र 25 फ़ीसदी है.

एनपीए बनने के कई कारण होंगे. घोटाला और राजनीतिक सांठगांठ तो पक्का होगा. बस यही एक घोटाला है जिसका कोई खलनायक नहीं है. आप समझते हैं न ये गेम. ये लोग तो विकास की राष्ट्रवादी राह में ठोकर खाए हुए हैं. अपराधी थोड़े न हैं.

अर्थव्यवस्था में जब संकुचन आता है तो निवेश का रिटर्न कम होने लगता है. कंपनियां लोन नहीं चुका पाती हैं. यही कारण है कि 2017 के पहले तीन महीने में प्राइवेट कैपिटल इंवेस्टमेंट सिकुड़ गया है. सीएमआईई नाम की एक प्रतिष्ठित संस्था है, इसका कहना है कि अप्रैल और मई में नए निवेश के प्रस्ताव पिछले दो साल में घटकर आधे हो गए हैं. कंपनियों के पास पैसे ही नहीं रहेंगे तो निवेश कहां से करेंगे.

2016 की दूसरी छमाही के बाद से बैड लोन बढ़ता जा रहा है. इस कड़ी में अब छोटी और मझोली कंपनियां भी आ गईं है. बिक्री और मुनाफ़ा गिरने के कारण ये कंपनियां लोन चुकाने में असमर्थ होती जा रही हैं. कई कंपनियां अपनी संपत्ति बेचकर लोन चुकाने जा रही हैं. क्या उनके पास इतनी संपत्ति है, क्या इतने ख़रीदार हैं?

बैंक चरमरा रहे हैं. विलय का रास्ता निकाला गया है. विलय करने से एनपीए पर क्या असर पड़ेगा, मुझमें यह समझने की क्षमता नहीं है. बिजनेस अख़बारों में इस पर काफ़ी चर्चा होती है मगर बाक़ी मीडिया को इससे मतलब नहीं. एनपीए एक तरह का आर्थिक घोटाला भी है. आठ लाख करोड़ के घोटाले की प्रक्रिया को नहीं समझना चाहेंगे आप?

आज के फाइनेंशियल एक्सप्रेस में ख़बर है कि 21 पब्लिक सेक्टर बैंकों के विलय से 10 या 12 बैंक बनाए जाएंगे. देश में स्टेट बैंक की तरह 3-4 बैंक ही रहेंगे. हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक में छह बैंकों का विलय हुआ है. इसकी सफलता को देखते हुए बाकी बैंकों को भी इस प्रक्रिया से गुज़रना पड़ सकता है. 2008 में भी भारतीय स्टेट बैंक में स्टेट बैंक आॅफ सौराष्ट्र का विलय हुआ था. 2010 में स्टेट बैंक आॅफ इंदौर का भारतीय स्टेट बैंक में विलय हुआ था.

इस लेख के लिए 16.7.2017 का बिजनेस स्टैंडर्ड, फाइनेंशियल एक्सप्रेस, 8.5.2016 का हिन्दू, 20.2.2017 का फर्स्टपोस्ट डॉट कॉम, 9.6.2017 का मनीकंट्रोल डॉट कॉम की मदद ली है. सारी जानकारी इन्हीं की रिपोर्ट के आधार पर है.

(यह लेख मूलत: रवीश कुमार के ब्लॉग कस्बा पर प्रकाशित हुआ है.)

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