विकास दुबे: सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या जज के रिश्तेदार का किसी दल में होना ग़ैरक़ानूनी है

उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर मामले में गठित जांच समिति के अध्यक्ष जस्टिस बीएस चौहान के भाई भाजपा विधायक हैं और समधी भाजपा सांसद. वहीं समिति के एक अन्य सदस्य पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता कानपुर जोन के आईजी के संबंधी हैं. हितों के टकराव की संभावना के आधार पर याचिका दायर कर समिति के पुनर्गठन की मांग की गई है.

(फोटो: पीटीआई)

उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर मामले में गठित जांच समिति के अध्यक्ष जस्टिस बीएस चौहान के भाई भाजपा विधायक हैं और समधी भाजपा सांसद. वहीं समिति के एक अन्य सदस्य पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता कानपुर जोन के आईजी के संबंधी हैं. हितों के टकराव की संभावना के आधार पर याचिका दायर कर समिति के पुनर्गठन की मांग की गई है.

सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)
सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर मामले की जांच के लिए गठित आयोग का पुनर्गठन किए जाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कड़ा रुख अपनाते हुए याचिकाकर्ता वकील से सवाल किया कि अगर किसी न्यायाधीश का रिश्तेदार राजनीतिक दल में है तो क्या इसे गैरकानूनी कृत माना जाएगा.

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अनेक न्यायाधीश हैं, जिनके रिश्तेदार सांसद हैं.

पीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय को फटकार लगाते हुए कहा कि न्यायिक आयोग की अध्यक्षता करने वाले उसके किसी भी पूर्व जज पर मीडिया की खबरों के आधार पर आक्षेप नहीं लगाया जा सकता है.

पीठ शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश डॉ. बलबीर सिंह चौहान, हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश शशि कांत अग्रवाल और उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक केएल गुप्ता की सदस्यता वाले जांच आयोग के पुनर्गठन के लिए दायर अर्जी की सुनवाई कर रही थी.

उपाध्याय ने पीठ से कहा कि जस्टिस डॉ. चौहान के भाई उत्तर प्रदेश में विधायक हैं, जबकि उनकी पुत्री का विवाह एक भाजपा सांसद के यहां हुआ है.

पीठ ने इस अर्जी पर सुनवाई पूरी करते हुए उपाध्याय से सवाल किया कि क्या जस्टिस चौहान का कोई रिश्तेदार इस घटना या जांच से जुड़ा हुआ है और वह (जस्टिस चौहान) निष्पक्ष क्यों नही हो सकते हैं?

पीठ ने कहा, ‘ऐसे न्यायाधीश हैं जिनके पिता या भाई या रिश्तेदार सांसद हैं. क्या आप यह कहना चाहते हैं कि ये सभी न्यायाधीश दुराग्रह रखते हैं? यदि कोई रिश्तेदार किसी राजनीतिक दल में है तो क्या यह गैरकानूनी कृत्य है?’

इस पर उपाध्याय ने तमाम प्रकाशनों में प्रकाशित लेख पढ़ते हुए कहा कि इनमें जांच आयोग द्वारा की जा रही जांच पर सवाल उठाए गए हैं.

पीठ ने कहा, ‘आप समाचार-पत्रों की खबरों से संबंधित कानून जानते हैं. आप समाचार-पत्रों की खबरों के आधार पर इस न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पर आक्षेप नहीं लगा सकते हैं.’

पीठ ने कहा, ‘उनके रिश्तेदारों से कभी समस्या नहीं हुई तो आज आपको समस्या क्यों है?’

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जांच आयोग में जस्टिस चौहान की नियुक्ति पर लगाए गए आरोप ‘अपमानजनक’ हैं.

उन्होंने कहा, ‘वह (उपाध्याय) आरोप लगा रहे हैं कि इस न्यायालय द्वारा चयनित आयोग सारे मामले पर पर्दा डालेगा, यह अपमानजनक है.’


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उपाध्याय ने कहा कि उत्तर प्रदेश मुठभेड़ों वाला राज्य बनता जा रहा है और यह पूरी न्याय व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है. उन्होने कहा, ‘अभी कुछ दिन पहले ही राजीव पांडे नाम के व्यक्ति की मुठभेड़ में मौत हुई है.’

इस पर पीठ ने कहा, ‘आप इस न्यायालय के एक सम्मानित पूर्व न्यायाधीश पर तरह-तरह के आरोप लगा रहे हैं. वह इस न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश हैं और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं.’

पीठ ने उपाध्याय से कहा कि अब वह अप्रासंगिक बातें कर रहे हैं. प्रत्येक राज्य में हजारों अपराध होते हैं, लेकिन उनका इस आयोग से क्या संबंध है?

द वायर  ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि विकास दुबे एनकाउंटर में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच समिति के अध्यक्ष जस्टिस बीएस चौहान के भाई भाजपा विधायक हैं और समधी भाजपा सांसद हैं.

वहीं समिति के अन्य सदस्य पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता कानपुर जोन के आईजी के संबंधी हैं. ऐसी स्थिति में हितों के टकराव की संभावना के कयास लगाए जा रहे हैं.

इसी रिपोर्ट के आधार पर उपाध्याय ने 30 जुलाई को पुलिस मुठभेड़ में गैंगस्टर विकास दुबे की मौत की जांच के लिए गठित जांच आयोग के अध्यक्ष शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश डॉ. बलबीर सिंह चौहान और दोनों अन्य सदस्यों के स्थान पर आयोग का पुनर्गठन करने के लिए एक नई अर्जी दायर की थी.

कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है.

इससे पहले 28 जुलाई को भी जांच आयोग के दो सदस्यों को बदलने के लिए दायर आवेदन खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा था कि वह आयोग पर किसी तरह के आक्षेप लगाने की इजाजत याचिकाकर्ता को नहीं देगी.

उपाध्याय ने अपने नए आवेदन में विकास दुबे द्वारा किए गए अपराधों तथा उसकी पुलिस और नेताओं के साथ कथित साठ-गांठ के आरोपों की जांच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित विशेष जांच दल के पुनर्गठन का भी अनुरोध किया था.

शीर्ष अदालत ने 22 जुलाई को अपने आदेश में कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या और इसके बाद मुठभेड़ में विकास दुबे और उसके पांच सहयोगियों के मारे जाने की घटनाओं की जांच के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश डॉ. बलबीर सिंह चौहान की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था.

न्यायालय ने कहा था कि जांच आयोग एक सप्ताह के भीतर अपना काम शुरू करके इसे दो महीने में पूरा करेगा.

जांच आयोग को 10 जुलाई को विकास दुबे की मुठभेड़ में मौत की घटना और इससे पहले अलग-अलग मुठभेड़ में दुबे के पांच साथियों के मारे जाने की घटना की भी जांच करनी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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