संसदीय समिति ने सरकार द्वारा विभिन्न मौकों पर इंटरनेट बंद करने के मामलों को कम करने पर चर्चा की

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अधिकारियों के प्रेजेंटेशन के बाद सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति के सदस्य इस आम सहमति पर पहुंचे कि देश में इंटरनेट शटडाउन पर निर्भरता कम होनी चाहिए, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों का भी ख़्याल किया जाना चाहिए.

New Delhi: Monsoon clouds hover over the Parliament House, in New Delhi on Monday, July 23, 2018.(PTI Photo/Atul Yadav) (PTI7_23_2018_000111B)
(फोटो: पीटीआई)

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अधिकारियों के प्रेजेंटेशन के बाद सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति के सदस्य इस आम सहमति पर पहुंचे कि देश में इंटरनेट शटडाउन पर निर्भरता कम होनी चाहिए, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों का भी ख़्याल किया जाना चाहिए.

New Delhi: Monsoon clouds hover over the Parliament House, in New Delhi on Monday, July 23, 2018.(PTI Photo/Atul Yadav) (PTI7_23_2018_000111B)
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नई दिल्ली: सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति ने बीते मंगलवार को देश में इंटरनेट शटडाउन को कम करने और इंटरनेट बंद करने का आदेश देने के लिए अधिक तार्किक तरीकों को प्राथमिकता देने पर चर्चा की.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अधिकारियों के प्रेजेंटेशन को सुनने के बाद समिति के सदस्य इस आम सहमति पर पहुंचे कि इंटरनेट शटडाउन पर निर्भरता कम होनी चाहिए, लेकिन इसे लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों का भी ख्याल किया जाना चाहिए.

इसके अलावा समिति ने जनवरी में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश पर भी चर्चा की, जिसमें कहा गया था कि इंटरनेट बंद करने के आदेशों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए और यह भी कहा था इंटरनेट का उपयोग करके बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित है.

रिपोर्ट के मुताबिक, यह भी पता चला है कि अधिकारियों ने यह भी चर्चा की कि भारत में 5जी तकनीक पेश करने का कामकाज कहां तक पहुंचा है. समिति के सदस्यों ने यह आशा व्यक्ति की है कि इसे जल्द से जल्द पेश किया जाएगा.

इस बीच एक अलग बैठक में डेटा संरक्षण विधेयक पर संयुक्त प्रवर समिति ने एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) और एपीजे अब्दुल कलाम केंद्र के प्रेजेंटेशन को सुना.

एसोचैम ने तर्क दिया कि एक वाइब्रेंट डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए डेटा के मुक्त सीमा-पार (फ्री क्रॉस-बॉर्डर) प्रवाह की अनुमति देनी चाहिए. उन्होंने विधेयक के तहत सरकार को व्यापक छूट के कारण शक्तियों के संभावित दुरुपयोग के बारे में भी चिंता व्यक्त की.

मालूम हो कि पिछले कुछ सालों में कई मौकों पर इंटरनेट बंद को लेकर मोदी सरकार की काफी आलोचना हुई है. जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद से ही वहां पर 4जी इंटरनेट पर अभी तक प्रतिबंध लगा हुआ है.

इसके अलावा विवादित नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली समेत देश भर के विभिन्न हिस्सों में हो रहे विरोध प्रदर्शनों के दौरान कई बार ऐसा देखा गया कि स्थानीय प्रशासन ने इंटरनेट बंद कर दिया था.

सरकार की दलील होती है कि वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि संभावित हिंसा या कोई अनुचित गतिविधियों को रोका जा सके. हालांकि विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार इसका इस्तेमाल प्रतिरोध की आवाज दबाने और लोगों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करने के लिए कर रही है.

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