क्या देश को वाकई एक नए संसद भवन की ज़रूरत है

संसद भवन एक जीवित विरासत स्थल है, जो आज़ाद भारत के कई ऐतिहासिक पलों का साक्षी रहा है. एक समृद्ध ऐतिहासिक इमारत को किनारे कर एक नए संसद भवन के निर्माण की योजना समझ से बाहर है.

/
(फोटो: पीटीआई)

संसद भवन एक जीवित विरासत स्थल है, जो आज़ाद भारत के कई ऐतिहासिक पलों का साक्षी रहा है. एक समृद्ध ऐतिहासिक इमारत को किनारे कर एक नए संसद भवन के निर्माण की योजना समझ से बाहर है.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

सभ्यताएं और समय साक्षी हैं कि न जाने कितने ही शासकों ने बड़े-बड़े स्मारक और शहर सिर्फ इस चाह में बनवाए कि उन्हें सदियों तक याद रखा जाए- अपने निर्माण द्वारा भावी पीढ़ियों की स्मृति में रहना और एक अमिट छाप छोड़ने का प्रयास करना एक मानवीय प्रवृति है.

मूलतः शायद अंग्रेज़ों के लिए भी अपनी नई राजधानी नई दिल्ली के निर्माण का यह एक महत्वपूर्ण कारण था, लेकिन वे नहीं जानते थे कि ब्रिटिश शासन ही सालों में समाप्त जाएगा.

अंग्रेज़ वास्तुकार और कुछ ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि इस बात के प्रति काफी सचेत थे कि यह निर्माण भारत में होना है, इसलिए उन्होंने नई दिल्ली की संरचना और निर्माण में पारंपरिक भारतीय वास्तुकला का समावेश और सम्मिलन सशक्त रूप से किया.

शायद यही उन मुख्य कारणों में से एक है कि उनके द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन भारत में बनाई गई इमारतों और राजधानी को आज़ादी मिलने के बाद भी अपनाया गया.

इस याद रखे जाने लायक विशाल प्रयास से बनी मुख्य इमारतों में से एक पूर्ववर्ती परिषद सदन है, जो अब संसद भवन के नाम से जाना जाता है.

संसद भवन की संरचना मध्य प्रदेश के मुरैना में स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर से प्रेरित है, पर इस इमारत के निर्माण में कई परिवर्तन और संशोधन देखने को मिलते हैं.

शुरू में ब्रिटिश वास्तुकार हर्बर्ट बेकर ने एक त्रिकोणीय भूखंड पर तीन खंडों वाला एक प्लान प्रस्तावित किया था. पर मुख्य वास्तुकार एडविन लुटियंस ने बेकर के इस डिजाइन का विरोध किया और इसके बजाय एक वृत्ताकार, कॉलोजियम जैसी योजना प्रस्तावित की.

लुटियंस की जीत हुई और बेकर को अपने मूल डिजाइन को फिर से बनाना पड़ा. नए संसद भवन का वर्तमान प्रस्ताव इसी पुराने अस्वीकृत प्रस्ताव का पुनरावर्तन प्रतीत होता है.

हर्बर्ट बेकर का पहला प्लान.
हर्बर्ट बेकर का पहला प्लान.

संसद भवन की योजना एक वृत्त पर आधारित है जिसका बाहरी व्यास 174 मीटर है. वृत्ताकार योजना के भीतर स्थित तीन मुख्य कक्ष/ खंड मूल रूप से विधान सभा, चेंबर ऑफ प्रिंसेस और राज्य परिषद के रूप में तैयार किए गए थे.

एक-दूसरे से 120 डिग्री पर स्थित, तीनों आपस में आंगन से जुड़े हैं और इनके मध्य में सेंट्रल हॉल है.

संसद भवन की इमारत अपने समय की हिसाब से तकनीकी रूप से काफी विकसित थी और इसमें भारतीय वास्तुकला के कई तत्व शामिल थे.

कमरों/चेंबर्स को तरकीब से डिजाइन किया गया था और यहां तक कि इसमें अकॉस्टिक टाइल्स भी लगाई गईं थीं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि चेंबर में हर व्यक्ति सदस्य स्पीकर को स्पष्ट सुन सके.

1928 में इसके पूरे होने के बाद अगले साल 1929 में लुटियंस द्वारा एक और मंजिल बनवाई गई थी. तब से आज तक भवन में अन्य कोई बड़े बदलाव नहीं हुए हैं.

हालांकि समय के साथ बदलती जरूरतों के हिसाब से इमारत को अपडेट किया गया, मरम्मत की गई है, साथ ही संसद भवन की लाइब्रेरी और संसद भवन एनेक्सी भी बनाए गए.

1947 में आज़ादी के बाद परिषद सदन का नाम बदलकर संसद भवन रखा गया. तीनों मुख्य कक्ष यानी विधानसभा, प्रिंसेस चेंबर और राज्य परिषद को क्रमशः लोकसभा, राज्यसभा और संसद पुस्तकालय के रूप में उपयोग किए जाने लगे.

सेंट्रल हॉल में को संयुक्त बैठकों के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

संसद भवन एक जीवित विरासत स्थल है. यह कई ऐतिहासिक पलों का साक्षी रहा है, जिसमें 15अगस्त 1947 की रात को पंडित जवाहरलाल नेहरू का ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’और संविधान को औपचारिक रूप से अपनाए जाने से एक दिन पहले डॉ. बीआर आंबेडकर का ‘ग्रामर ऑफ एनार्की’ भाषण शामिल हैं.

चौंसठ योगिनी मंदिर. (फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)
चौंसठ योगिनी मंदिर. (फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)

सेंट्रल हॉल ने भारतीय संविधान के बनने के दौरान हुई अनगिनत गहन बहसें और चर्चाएं देखी हैं. संसद भवन के सुशोभित सभाकक्षों में से न जाने कितनी प्रतिष्ठित हस्तियां और सांसद रोज़ गुज़रते रहे.

इनमें से कुछ तो आज भी यहां मूर्तियों और चित्रों के रूप में अमर भी हैं.

अब इस समृद्ध विरासत को किनारे कर एक नए संसद भवन के निर्माण की योजना समझ से बाहर है. नए संसद भवन की जरूरत का एक मुख्य कारण सीटों के परिसीमन को बताया जाता है.

हालांकि परिसीमन का मुद्दा स्वयं अत्यंत जटिल और विवादास्पद है. इसके अनुसार जिन राज्यों की जनसंख्या ज्यादा बढ़ी है, वहां उसके अनुपात में लोकसभा और राज्यसभा की सीटें भी ज्यादा होंगी. यही कारण है कि साल 2001 में इसे 25 वर्षों के लिए टाल दिया गया था.

रिपोर्ट्स के अनुसार, वर्ष 2061 तक देश की जनसंख्या का स्थिर होने और उसके बाद गिरावट का अनुमान लगाया गया है. यह घटती प्रजनन दर से भी पैदा होता है.

इसका मतलब यह होगा कि सांसदों संख्या अगर बढ़ती भी है, तो ऐसा केवल 40 वर्षों के लिए होगा. निश्चित रूप से इस छोटी अवधि के लिए एक नया संसद भवन पूरी तरह अनावश्यक है.

यहां इस बात पर गौर करना भी ज़रूरी है कि सदस्यों की बढ़ी हुई संख्या के साथ उनके पास सदन में अपने विचार रखने के लिए उपलब्ध समय और सीमित हो जाएगा।

इसलिए इतनी बड़ी इमारत का निर्माण करने से पहले ऐसे और इससे जुड़े हुए सभी पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

एक नए संसद भवन के निर्माण के पक्ष में सरकार द्वारा 1920 के दशक में बने संसद भवन की आयु और इसकी संरचनात्मक और भूकंपीय अस्थिरता को महत्वपूर्ण कारण बताया जा रहा है.

हालांकि किसी भी ठोस डाटा या रिपोर्ट के अभाव में इस बात को प्रमाणित करना कठिन है.

गौर करने की बात यह भी है कि इस क्षेत्र में इसी के समान आयु, इसी तरह और तकनीक से बनी हुई कई ऐतिहासिक इमारतें हैं, जिनमें राष्ट्रपति भवन भी शामिल है – तो क्या यह सब भी असुरक्षित हैं?

इसके अलावा असुरक्षित रूप में इसे संग्रहालय में परिवर्तित करने का मतलब होगा कि हम यहां आने वाली आम जनता और पर्यटकों को जोखिम में डाल रहे हैं.

सरकार का यह प्रस्ताव कि मौजूदा संसद भवन के जीर्णोद्धार और मरम्मत के लिए एक नया संसद भवन बनाना है, जो पहले से भी बड़ा हो, काफी अटपटा है.

टैक्सपेयर की पूंजी से एक बहुत बड़ी लागत पर इस विशाल इमारत का निर्माण न केवल पैसों की बर्बादी है बल्कि दोबारा इस्तेमाल (Adaptive reuse) के उन सिद्धांतों के खिलाफ होगा, जो दुनिया भर में ऐतिहासिक इमारतों और विरासत के संरक्षण के लिए आदर्श माने जाते हैं.

कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, फ़िनलैंड, जर्मनी और कई अन्य प्रगतिशील देशों ने अपनी संसद की ऐतिहासिक इमारतों का जीर्णोद्धार करके दोबारा इस्तेमाल किया है.

मौजूदा संसद भवन के एक प्रारंभिक अध्ययन से हमें पता चलता है कि सेंट्रल हॉल को लोकसभा हॉल के रूप में उपयोग किया जा सकता है.

सिर्फ आंतरिक व्यवस्था के बदलने से आराम से कम से कम 800 सदस्यों को यहां बैठासकते हैं. इसी तरह राज्यसभा वर्तमान लोकसभा हॉल में लाई जा सकती है.

सेंट्रल हॉल में संसद के संयुक्त या विशेष सत्र आयोजित किए जा सकते हैं. एक नए संसद भवन का निर्माण करके एक ठीकठाक काम करने वाली इमारत को छोड़ना किसी भी परिस्थिति में उचित नहीं है.

वैसे भी नया संसद भवन दिल्ली के मास्टर प्लान में निर्दिष्ट एक पार्क में प्रस्तावित किया गया है, जिसमें बड़े छायादार पेड़ लगे हुए है. पेड़ों को काटकर निर्दिष्ट सार्वजनिक स्थान पर निर्माण न केवल हर दृष्टि से गलत है बल्कि दिल्ली मास्टर प्लान का उल्लंघन भी है.

गौर करने की बात है कि इस प्रस्ताव और संसद भवन के नए डिज़ाइन को विभिन्न सांविधिक निकायों और एजेंसियों द्वारा फटाफट मंज़ूरी मिलती जा रही है, जबकि इनमें कुछ संस्थाएं तो ऐसी हैं जिनका गठन ही केवल इस क्षेत्र- सेंट्रल विस्टा के वास्तुकला और योजना का संरक्षण करने के लिए किया गया था.

मालूम होता है जैसे किसी ने ठान ही लिया है कि कीमत जो भी हो इस योजना को आकार देना ही है. दुर्भाग्यवश, देश किसी किसी जीती-जागती ऐतिहासिक विरासत को इस तरह छोड़ देना उन सभी भारतीयों के अपमान के समान है, जिनका प्रतिनिधित्व यह संसद भवन करता है.

(रिटा.) लेफ्टिनेंट कर्नल अनुज श्रीवास्तव स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, दिल्ली और एमिटी यूनिवर्सिटी की विज़िटिंग फैकल्टी हैं, साथ ही सुप्रीम कोर्ट में डीडीए के ख़िलाफ़ चल रहे सेंट्रल विस्टा के भूमि उपयोग बदलाव मामले में एक याचिकाकर्ता भी हैं.

दीपिका सक्सेना स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, दिल्ली की कंज़र्वेशन आर्किटेक्ट हैं. उनके द्वारा संसद भवन के इस बदलाव पर बनी फिल्म यहां देख सकते हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq