26/11 मुंबई आतंकी हमले की पीड़िता ने घर और शिक्षा की व्यवस्था के लिए हाईकोर्ट का रुख़ किया

26 नवंबर, 2008 को आतंकवादियों द्वारा मुंबई के कई स्थानों पर किए गए हमले के समय याचिकाकर्ता देविका रोतावन नौ साल की थीं. उस दिन वह अपने पिता और भाई के साथ मुंबई सीएसएमटी रेलवे स्टेशन पर थीं, जब आतंकियों द्वारा चलाई गोली उन्हें लग गई थी.

बॉम्बे हाई कोर्ट (फोटो : पीटीआई)

26 नवंबर, 2008 को आतंकवादियों द्वारा मुंबई के कई स्थानों पर किए गए हमले के समय याचिकाकर्ता देविका रोतावन नौ साल की थीं. उस दिन वह अपने पिता और भाई के साथ मुंबई सीएसएमटी रेलवे स्टेशन पर थीं, जब आतंकियों द्वारा चलाई गोली उन्हें लग गई थी.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)
बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

मुंबई: देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में नवंबर, 2008 (26/11) में हुए आतंकी हमले में जीवित बची एक पीड़िता ने उसके परिवार को आवास मुहैया कराने और स्नातक की उसकी शिक्षा में मदद के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट से महाराष्ट्र सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया है.

मुंबई में 12 साल पहले हुए आतंकी हमले की चश्मदीद 21 वर्षीय देविका रोतावन ने 21 अगस्त को वकील उत्सव बैंस के जरिये बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है.

याचिका में उन्होंने आशंका जताई है कि उनका परिवार बेघर हो जाएगा, क्योंकि आर्थिक दिक्कतों के कारण वे ब्रांदा पूर्व के सुभाष नगर इलाके में स्थित चॉल का किराया नहीं दे पा रहे हैं.

26 नवंबर, 2008 को आतंकवादियों द्वारा शहर में कई स्थानों पर किए गए हमले के समय देविका नौ साल की थीं. उस दिन वह अपने पिता और भाई के साथ मुंबई सीएसएमटी रेलवे स्टेशन पर थीं. आतंकियों ने रेलवे स्टेशन पर भी हमला किया था.

याचिका में उन्होंने कहा है कि वह आतंकवादी अजमल कसाब के खिलाफ चले मुकदमे में महत्वपूर्ण गवाह थीं.

देविका परिवार के साथ पुणे जा रही थीं, जब गोली लगने से वह बेहोश हो गईं. पुलिस उन्हें पास के सेंट जॉर्ज अस्पताल ले गई, जहां डेढ़ महीने में उनकी छह बार सर्जरी की गई. ऑपरेशन के बाद जारी देखरेख के चलते वह छह महीने तक बिस्तर पर थीं.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, देविका ने हाल ही में बांद्रा के चेतना कॉलेज में मानविकी में स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया है और सिविल सेवा में करिअर बनाने की योजना बना रही हैं.

याचिका में कहा गया कि आतंकी हमले के दौरान देविका के पैर में एक गोली लगी थी, जबकि उनके पिता और भाई भी घायल हो गए थे. गंभीर बीमारियों से ग्रस्त होने के कारण उसके पिता और भाई के लिए आजीविका चलाना संभव नहीं है.

देविका ने अपनी याचिका में कहा है कि हमले के बाद केंद्र और राज्य सरकार के कई अधिकारियों ने उनके घर का दौरा किया था और आर्थिक रूप से कमजोर (ईडब्ल्यूएस) कोटा के तहत आवास मुहैया कराने का आश्वासन दिया था.

इसके अलावा याचिका में उन्होंने दावा किया कि शिक्षा के लिए समुचित व्यवस्था और परिवार के सदस्यों के इलाज के लिए वित्तीय सहायता भी देने का आश्वासन दिया गया था. 2009 में याचिकाकर्ता ने महाराष्ट्र सरकार से सहायता की मांग की थी लेकिन कोई मदद नहीं मिली.

वर्तमान में कोई कानून या नीति नहीं है जो इस तरह के आतंकी हमलों के पीड़ितों के लिए पुनर्वास उपाय प्रदान करती है. याचिका में कहा गया है कि इस तरह के कानून के अभाव के कारण पीड़ितों का पुनर्वास नहीं हो रहा है.

देविका ने ईडब्ल्यूएस कोटा के तहत आवास की व्यवस्था और अपनी शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता को लेकर राज्य सरकार को निर्देश देने का भी अनुरोध किया है. याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई होने की संभावना है.

बता दें कि 26 नवंबर, 2008 की रात को हुए मुंबई हमले में कम से कम 166 लोगों की जान गई थी. पाकिस्तान से घुसपैठ करके आए 10 आंतकियों ने ताज होटल सहित दो होटलों और छत्रपति शिवाजी टर्मिनल रेलवे स्टेशन (सीएसटी) और एक यहूदी केंद्र पर हमला किया था.

चार दिन तक आतंकियों से चली मुठभेड़ में 9 आतंकी मारे गए थे, जबकि एक आतंकी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ा गया था, जिसे नवंबर 2012 में फांसी दी गई थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)