नगालैंड: पुलिसकर्मियों द्वारा डॉक्टरों पर कथित हमले के विरोध में बंद रहे अस्पताल

नगालैंड इन-सर्विस डॉक्टर्स एसोसिएशन की अध्यक्ष ने कहा कि हम पुलिस विभाग या सरकार के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन डॉक्टरों पर हमले से हमारी चिंता बढ़ गई है. एक दिन की हड़ताल के बाद बृहस्पतिवार को राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं फिर से बहाल हो गई हैं.

/
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नगालैंड इन-सर्विस डॉक्टर्स एसोसिएशन की अध्यक्ष ने कहा कि हम पुलिस विभाग या सरकार के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन डॉक्टरों पर हमले से हमारी चिंता बढ़ गई है. एक दिन की हड़ताल के बाद बृहस्पतिवार को राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं फिर से बहाल हो गई हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

कोहिमा: नगालैंड में पुलिसकर्मियों द्वारा डॉक्टरों पर कथित हमले के विरोध में नगालैंड इन-सर्विस डॉक्टर्स एसोसिएशन (एनआईडीए) द्वारा 24 घंटे के बंद के आह्वान के समर्थन में बुधवार को अधिकतर स्वास्थ्य सेवाएं बंद रहीं.

स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि बंद के कारण राज्य में चिकित्सा सेवाएं प्रभावित हुईं, लेकिन आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं खुली रहीं.

राज्य में आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं को छोड़कर निजी अस्पताल भी बंद थे.

नगालैंड प्राइवेट डॉक्टर्स एसोसिएशन, नेशनल हेल्थ मिशन एम्प्लाइज एसोसिएशन, नगालैंड आयुष डॉक्टर्स एसोसिएशन, इंडियन डेंटल एसोसिएशन, नगालैंड स्टेट ब्रांच और नगालैंड मेडिसिन डीलर्स एसोसिएशन ने एनआईडीए का समर्थन करते हुए अपनी सेवाओं को एक दिन के लिए बंद रखा.

एनआईडीए की अध्यक्ष डॉ. ऋतु थुर ने मीडिया को बताया कि कुछ पुलिसकर्मियों द्वारा स्वास्थ्यकर्मियों से मारपीट किए जाने का विरोध करने के लिए बंद का आह्वान किया गया था.

उन्होंने कहा, ‘हम पुलिस विभाग या सरकार के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन डॉक्टरों पर हमले से हमारी चिंता बढ़ गई है.’

थुर ने कहा कि बंद के कारण आम जनता को होने वाली असुविधाओं के लिए हमें खेद है.

उन्होंने कहा कि स्वास्थ्यकर्मी और सभी अस्पताल 24 घंटे के बंद के खत्म होने पर बृहस्पतिवार को सुबह छह बजे से सेवाएं देना शुरू करेंगे.

नगालैंड इन सर्विस डॉक्टर्स एसोसिएशन (एनआईडीए) के अधिकारियों ने 24 अगस्त को बंद का आह्वान करते हुए कहा था कि दीमापुर में तीन अप्रैल को डॉक्टर नोसेजोल सेजो पर पुलिसकर्मियों ने बर्बर हमला किया था.

इसके बाद 17 अप्रैल को वोखा में डॉक्टर मोंगशिथुंग के साथ भी पुलिस ने ऐसा ही व्यवहार किया, लेकिन लोगों के इलाज को ध्यान में रखते हुए संगठन कोई भी बड़ा कदम उठाने से बचता रहा.

उन्होंने कहा कि डॉक्टर अटोक वोत्सा पर 21 अगस्त को आईआरबी के कुछ कर्मचारियों ने हमला किया जिससे पता चलता है कि संबंधित प्रशासन ने अपने कर्मचारियों को अनुशासित करने की दिशा में उचित कदम नहीं उठाया है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, डॉक्टर वोत्सा पर कथित हमले के बाद गृह विभाग ने कमिश्नर की अध्यक्षता में इस मामले की जांच के लिए 23 अगस्त को तीन सदस्यीय समिति गठित की, जो सात दिन के भीतर रिपोर्ट देगी. हालांकि, इस बीच एनआईडीए ने कहा कि जांच प्रक्रिया को तेज कर इसकी अवधि चार दिन की जाए.

समिति में कमिश्नर नेफोसो थलुओ, जस्टिस खनरिनला कोजा और एडीसी रोज़ी मार्गरेट एथ्रिला शामिल हैं.

साथ ही एसोसिएशन ने राज्य में सरकार से 22 अप्रैल, 2020 को लाई गई महामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को लागू करने का अनुरोध किया.

बता दें कि बीते 22 अप्रैल को कोरोना महामारी के दौरान स्वास्थ्यकर्मियों पर बढ़ते हमलों को देखते हुए केंद्र सरकार अध्यादेश लेकर आई थी. यह अध्यादेश स्वास्थ्य क्षेत्र के सभी कर्मचारियों- जैसे कि डॉक्टर, नर्स, पैरामैडिकल और आशा कार्यकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करता है.

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडे़कर ने कहा था कि महामारी से देश को बचाने की कोशिश कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों पर दुर्भाग्यवश हमले किए जा रहे हैं. उन पर किसी तरह की हिंसा और प्रताड़ना को सहन नहीं किया जाएगा. इस संबंध में एक अध्यादेश लाया गया है.

उन्होंने कहा था कि महामारी रोग अधिनियम 1897 में संशोधन किया जाएगा. डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला गैर जमानती होगा.

जावड़ेकर ने कहा था, ‘इस अध्यादेश के तहत 30 दिनों के भीतर जांच पूरी होगी और एक साल के भीतर अंतिम फैसला आ जाएगा. इसमें हल्के और छोटे मामलों में तीन महीने से पांच साल की सजा और 50 हजार से दो लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है, जबकि गंभीर मामलों में छह महीने से सात साल की जेल और एक लाख से पांच लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)