‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए एक मतदाता सूची तैयार करने पर पीएमओ ने की बैठक

बीते 13 अगस्त को प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में एक मतदाता सूची तैयार करने को लेकर दो विकल्पों पर चर्चा हुई. मुख्य सचिव ने कैबिनेट सचिव को राज्यों से परामर्श करने और एक महीने में अगले क़दम का सुझाव देने के लिए कहा है.

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(फोटो: पीटीआई)

बीते 13 अगस्त को प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में एक मतदाता सूची तैयार करने को लेकर दो विकल्पों पर चर्चा हुई. मुख्य सचिव ने कैबिनेट सचिव को राज्यों से परामर्श करने और एक महीने में अगले क़दम का सुझाव देने के लिए कहा है.

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नई दिल्ली: देश में सभी चुनाव एक साथ कराने के विचार पर आगे बढ़ते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने इस महीने की शुरुआत में एक बैठक की थी, जिसमें लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और सभी स्थानीय निकाय चुनावों के लिए एक साझा मतदाता सूची तैयार करने की संभावना पर चर्चा की गई है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 13 अगस्त को हुई इस बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव पीके मिश्रा ने की थी और इस दौरान उन्होंने दो विकल्पों पर चर्चा की थी.

पहले विकल्प के तौर पर अनुच्छेद 243-के (K) और 243-जेडए (ZA) में संवैधानिक संशोधन करना था, जो देश में सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची का होना अनिवार्य करेगा.

वहीं, दूसरे विकल्प के तौर पर राज्य सरकारों को इससे संबंधित उनके कानूनों में बदलाव करने को कहा जाएगा और इससे वे नगर निगम और पंचायत चुनावों के लिए चुनाव आयोग की मतदाता सूची को अपना लेंगी.

सूत्रों ने कहा कि कैबिनेट सचिव राजीव गौबा, विधायी सचिव जी. नारायणा राजू, पंचायती राज सचिव सुनील कुमार और चुनाव आयोग के महासचिव सहित तीन अन्य प्रतिनिधि बैठक में शामिल थे.

रिपोर्ट के अनुसार, अनुच्छेद 243-के और 243-जेडए राज्यों में पंचायतों और नगरपालिकाओं के चुनाव से संबंधित हैं. ये अधीक्षण की शक्ति, मतदाता सूची तैयार करने का अधिकार और राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) को इन चुनावों के संचालन की शक्ति देते हैं.

वहीं, दूसरी ओर संविधान का अनुच्छेद 324 (1) चुनाव आयोग को संसद और राज्य विधानसभाओं के सभी चुनावों के लिए निर्वाचक नामावलियों की तैयारी की निगरानी, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार देता है.

दूसरे शब्दों में राज्य चुनाव आयोग स्थानीय निकाय चुनावों के लिए अपनी स्वयं की निर्वाचक नामावली तैयार करने के लिए स्वतंत्र हैं और इस अभ्यास को चुनाव आयोग के साथ समन्वयित करने की आवश्यकता नहीं है.

फिलहाल अधिकांश राज्य अपनी नगरपालिकाओं और पंचायतों का चुनाव करने के लिए चुनाव आयोग की मतदाता सूची का उपयोग करते हैं.

हालांकि, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, ओडिशा, असम, मध्य प्रदेश, केरल, असम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में स्थानीय निकाय चुनावों के लिए अपने स्वयं के निर्वाचक नामावली हैं.

सूत्रों ने कहा कि मिश्रा की अध्यक्षता में पीएमओ में हुई बैठक में जिन दो विकल्पों पर चर्चा की गई, उनमें से सुनील कुमार शेष राज्यों को स्थानीय निकाय चुनावों के लिए ईसी की मतदाता सूची को अपनाने के लिए राजी करने के पक्ष में थे. बैठक में मिश्रा कहा है कि कैबिनेट सचिव से राज्यों से परामर्श करने और एक महीने में अगले कदम का सुझाव देने के लिए कहा है.

आम चुनावी सूची भाजपा द्वारा पिछले साल लोकसभा चुनाव के लिए अपने घोषणा पत्र में किए गए वादों में से एक है. यह लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने की पार्टी की प्रतिबद्धता के साथ संबंध रखता है, जिसका उल्लेख घोषणा-पत्र में भी किया गया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एकल मतदाता सूची की मांग नई नहीं है. विधि आयोग ने 2015 में अपनी 255वीं रिपोर्ट में इसकी सिफारिश की थी. चुनाव आयोग ने 1999 और 2004 में भी इसी तरह का रुख अपनाया था. यह देखा गया था कि चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची तैयार करने की गैर-अनुरूपता के कारण दो एजेंसियों को एक ही काम करना पड़ता है.

इसके अलावा चुनाव आयोग ने बताया कि यह मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति को बढ़ाता है, क्योंकि एक मतदाता सूची में उनके नाम मौजूद हो सकते हैं, लेकिन दूसरे में गायब हो सकते हैं.

मौजूदा सरकार ने बड़ी संख्या में संसाधनों को बचाने और खर्च में कटौती करने के उद्देश्य से समान चुनावी सूची और एक साथ चुनाव कराने की बात की है.

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