सरकारी कर्मचारियों को समय-पूर्व रिटायर करने के क़दम की मज़दूर संघों ने आलोचना की

केंद्र ने हाल ही में एक आदेश जारी कर कहा है कि सरकार प्रदर्शन के आधार पर किसी सरकारी कर्मचारी की आयु 50-55 वर्ष होने या 30 वर्ष की सेवा पूरी होने के बाद किसी भी समय जनहित में उसे समय-पूर्व सेवानिवृत्त कर सकती है.

/
(फोटो: पीटीआई)

केंद्र ने हाल ही में एक आदेश जारी कर कहा है कि सरकार प्रदर्शन के आधार पर किसी सरकारी कर्मचारी की आयु 50-55 वर्ष होने या 30 वर्ष की सेवा पूरी होने के बाद किसी भी समय जनहित में उसे समय-पूर्व सेवानिवृत्त कर सकती है.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्रीय ट्रेड संगठनों, संघों और फेडरेशन ने केंद्र सरकार के उस कदम की आलोचना की है, जिसके तहत सरकार ने किसी सरकारी कर्मचारी की नौकरी के 30 साल पूरे होने पर परफॉर्मेंस के आधार पर समय-पूर्व रिटायर करने की योजना बनाई है.

बीते 28 अगस्त को कार्मिक मंत्रालय ने एक आदेश जारी कर नौकरी में 30 साल पूरे कर चुके कर्मचारियों के सेवा रिकॉर्ड की समीक्षा कर ‘अक्षम या भ्रष्ट कर्मचारियों’ को चिह्नित करने और उन्हें जनहित में समय से पहले सेवानिवृत्त करने को कहा है.

इसे लेकर 31 अगस्त 2020 को एक बैठक में ट्रेड यूनियनों ने इसे सरकारी कर्मचारियों को जबरदस्ती रिटायर करने वाला अतार्किक और एकतरफा कदम बताया है.

इस मीटिंग में इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एआईसीसीटीयू, एलपीए और यूटीयूसी जैसे केंद्रीय श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधि थे.

समूह ने कहा कि कार्मिक मंत्रालय के इस आदेश से अब सरकार को ये शक्ति मिल गई कि वे सर्विस में 30 साल पूरा करने वाले या 50-55 साल के किसी कर्मचारी को नौकरी से निकालने का पत्र पकड़ा सकते हैं.

उन्होंने कहा कि इसके चलते रिटायर होने की उम्र से करीब पांच से दस साल पहले कई लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा.

संगठनों ने कहा कि इस आदेश के जरिये किसी कर्मचारी को निशाना बनाने के लिए नामित प्राधिकारी को असीमित शक्ति दे दी गई है. कर्मचारी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति से पहले सुनवाई का भी अधिकार नहीं मिलेगा, जैसा कि प्राकृतिक न्याय की मांग होती है.

उन्होंने कहा कि नौकरी से निकाले जाने के बाद पीड़ित व्यक्ति एडवाइजरी कमेटी के पास जा सकता है, लेकिन इस समिति का चयन भी सरकार द्वारा किया जाएगा. इसका मतलब ये है कि प्रशासन पहले खुद किसी सरकारी कर्मचारी को नौकरी से निकालेगा और फिर वही इस पर न्याय करेगा कि संबंधित व्यक्ति को निकालना सही था या नहीं.

ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने कहा कि इसलिए यह कदम कर्मचारियों, श्रमिकों और उनकी यूनियनों के मूल अधिकारों के प्रति समग्र निरंकुश दृष्टिकोण को दर्शाता है. साथ ही यह भी कहा कि इस कदम से पता चला है कि केंद्र देश के सभी श्रम कानूनों में बदलाव करने और श्रमिकों पर आभासी दासता की शर्तों को लागू करने पर तुला हुआ है.

केंद्र के आदेश के मुताबिक केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के मौलिक नियम (एफआर) 56 (जे) और 56 (आई) तथा नियम 48 (1)(बी) के तहत कर्मचारियों के कार्य प्रदर्शन की समीक्षा की जाती है जो उचित प्राधिकार को किसी सरकारी सेवक को जनहित में आवश्यक लगने पर सेवानिवृत्त करने का ‘संपूर्ण अधिकार’ देता है.

पिछले शुक्रवार को जारी आदेश में कहा गया, ‘स्पष्ट है कि इन नियमों के तहत सरकारी सेवकों को समय पूर्व सेवानिवृत्ति देना सजा नहीं है. यह ‘अनिवार्य सेवानिवृत्ति’ से अलग है, जो केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1965 के तहत निर्दिष्ट शास्तियों या सजाओं में से एक है.’

आदेश के अनुसार, सरकार किसी सरकारी कर्मचारी की आयु 50/55 वर्ष होने या 30 वर्ष की सेवा पूरी होने के बाद किसी भी समय जनहित में उसे समय पूर्व सेवानिवृत्त कर सकती है. 

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq