भीमा कोरेगांव मामला: एनआईए ने कोलकाता के प्रोफेसर को पूछताछ के लिए तलब किया

कोलकाता के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च में पढ़ाने वाले प्रोफेसर पार्थसारथी रे जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वे उन नौ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में से हैं, जिन्हें बीते साल कथित तौर पर निगरानी रखने के लिए एक 'स्पाईवेयर हमले' का निशाना बनाया गया था.

आईआईएसईआर प्रोफेसर और मानवाधिकार कार्यकर्ता पार्थसारथी रे.

कोलकाता के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च में पढ़ाने वाले प्रोफेसर पार्थसारथी रे जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वे उन नौ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में से हैं, जिन्हें बीते साल कथित तौर पर निगरानी रखने के लिए एक ‘स्पाईवेयर हमले’ का निशाना बनाया गया था.

आईआईएसईआर प्रोफेसर और मानवाधिकार कार्यकर्ता पार्थसारथी रे.
आईआईएसईआर प्रोफेसर और मानवाधिकार कार्यकर्ता पार्थसारथी रे.

नई दिल्ली: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने भीमा कोरेगांव हिंसा से पहले पुणे के शनिवारवाड़ा में हुए एल्गार परिषद कार्यक्रम से जुड़ी पूछताछ के लिए कोलकाता के एक प्रोफेसर को तलब किया है.

पार्थसारथी रे कैंसर बायोलॉजी में विशेषज्ञ हैं और कोलकाता के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) में एसोसिएट प्रोफेसर हैं.

वे जाने-माने नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और वामपंथी पत्रिका ‘सन्हती’ के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं. साथ ही वे पर्सिक्यूटेड प्रिज़नर्स सॉलिडेरिटी कमेटी (पीपीएससी) की पश्चिम बंगाल इकाई के संयोजक भी हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, एनआईए ने उन्हें नोटिस भेजकर उनके कथित तौर पर एल्गार परिषद से जुड़े होने को लेकर पूछताछ के लिए बुलाया है.

एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स से जुड़े रंजीत सुर ने बताया कि पार्थसारथी रे को 10 सितंबर को सुबह 11 बजे एजेंसी के मुंबई दफ्तर में उपस्थित होने को कहा गया है.

सुर ने आगे कहा, ‘यह सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलने वालों की आवाज दबाने की कोशिश है, हम इसका विरोध करेंगे.’ पार्थसारथी रे की ओर से इस अख़बार द्वारा किए गए कॉल और मैसेज का जवाब नहीं दिया गया.

सुर के मुताबिक, ‘एनआईए की टीम के अधिकारियों ने आईआईएसईआर कैंपस जाकर रे से मिलकर उन्हें नोटिस देने की कोशिश की थी, लेकिन कोविड-19 दिशानिर्देशों के चलते रे उनसे नहीं मिले. इसके बाद एजेंसी ने उन्हें ईमेल से नोटिस भेजा. हमने उनसे बात की है, उन्होंने कहा है कि वे अपने वकील से सलाह ले रहे हैं और उसके बाद ही उचित उठाएंगे.’

पार्थसारथी साल 2012 में टीएमसी सरकार द्वारा कोलकाता के झुग्गीवासियों को हटाने के निर्णय के खिलाफ कथित तौर पर प्रदर्शन करने के चलते गिरफ्तार हुए थे और उन्हें दस दिन जेल में रखा गया था.

बीते साल वे उन नौ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में से थे, जिन्हें कथित तौर पर उन पर निगरानी रखने के लिए एक ‘स्पाईवेयर हमले‘ का निशाना बनाया गया था.

इन सभी कार्यकर्ताओं ने साल 2018 में भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों को रिहा करने की मांग की थी.

रे ने तब यह भी बताया था कि उन्हें याहू की ओर से अलर्ट भी मिला था, जिसमें उन्हें सावधान रहने को कहा गया था.

उन्होंने बताया था कि याहू से मिले संदेश में लिखा था कि उनका याहू एकाउंट सरकार समर्थित लोगों के निशाने पर हो, जिसका मतलब है कि वे उनके एकाउंट से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

तब एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि भीमा कोरेगांव हिंसा के संबंध में सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बाद साल 2018 में गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि वह राज्य के 10 संगठनों पर नज़र रखे.

इन संगठनों से जुड़े लोगों में कोलकाता के एसोसिएट प्रोफेसर पार्थसारथी रे भी शामिल थे.

मालूम हो कि पिछले कुछ सालों में भीमा कोरेगांव हिंसा से जोड़ते हुए कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, अकादमिक जगत के लोगों, वकीलों, पत्रकारों इत्यादि के घरों पर पुलिस द्वारा अचानक छापा मारा गया और उन्हें ‘अर्बन नक्सल’ करार देकर गिरफ्तार किया गया है.

साल 2018 से पुलिस ने कम से कम 12 ऐसे कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है और उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने से लेकर कथित माओवादियों के साथ संबंध रखने जैसे आरोप लगाए गए हैं.

शुरुआत में इस मामले की जांच महाराष्ट्र की पुणे पुलिस कर रही थी. लेकिन पिछले साल दिसंबर में राज्य में जैसे ही कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना की सरकार आई, इस मामले को आनन-फानन में एनआईए को दे दिया गया. इस लेकर विपक्षी दलों ने आलोचना भी की थी.

गौरतलब है कि पुणे के ऐतिहासिक शनिवारवाड़ा में 31 दिसंबर 2017 को कोरेगांव भीमा युद्ध की 200वीं वर्षगांठ से पहले एल्गार सम्मेलन आयोजित किया गया था.

पुलिस के मुताबिक इस कार्यक्रम के दौरान दिए गए भाषणों की वजह से जिले के कोरेगांव-भीमा गांव के आसपास एक जनवरी 2018 को जातीय हिंसा भड़की थी.

एनआईए ने एफआईआर में 23 में से 11 आरोपियों को नामजद किया है, जिनमें कार्यकर्ता सुधीर धावले, शोमा सेन, महेश राउत, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंसाल्विस, आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा हैं.

तेलतुम्बड़े और नवलखा को छोड़कर अन्य को पुणे पुलिस ने हिंसा के संबंध में जून और अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया था.

बीते दिनों इस मामले में  पुलिस ने 28 जुलाई को दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेनी बाबू एमटी को गिरफ्तार किया है. वे भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार होने वाले बारहवें शख्स थे. 

हेनी बाबू को गिरफ्तार करने के बाद एनआईए ने कहा था कि जांच में खुलासा हुआ कि हेनी बाबू नक्सली गतिविधियों और माओवादी विचारधारा का प्रसार कर रहे हैं और गिरफ्तार अन्य आरोपियों के साथ ‘सह-साजिशकर्ता’ हैं.

हालांकि बाबू की पत्नी और डीयू प्रोफेसर डॉ. जेनी रोवेना ने इन आरोपों का खंडन करते हुए एजेंसी द्वारा उन पर दबाव बनाने की बात कही थी.

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