नोटबंदी से गईं 15 लाख नौकरियां, 60 लाख लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट

निर्माण क्षेत्र के 73 प्रतिशत नौकरी देने वालों का कहना है कि वे अगले तीन महीने तक कोई भी नई नौकरी देने की स्थिति में नहीं हैं.

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निर्माण क्षेत्र के 73 प्रतिशत नौकरी देने वालों का कहना है कि वे अगले तीन महीने तक कोई भी नई नौकरी देने की स्थिति में नहीं हैं.

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फोटो: रॉयटर्स

नरेंद्र मोदी सरकार भले ही देश में विकास का दावा करे, लेकिन नोटबंदी के बाद इस साल के शुरुआती चार महीनों में 15 लाख लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ीं. दूसरी तरफ, फेडरेशन आॅफ इंडियन चेंबर्स आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) के सर्वे में कहा गया है कि नौकरी देने वाली 73 प्रतिशत कंपनियां अगले तीन महीने तक कोई भी नौकरी देने की हालत में नहीं हैं.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के कन्ज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे में कहा गया है कि मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले के परिणामस्वरूप देश में 15 लाख लोगों की नौकरी चली गई.

इस सर्वे में कहा गया है कि यदि एक नौकरी करने वाले पर चार लोग आश्रित हों तो इस हिसाब से करीब 60 लाख लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हुआ.

सर्वे के मुताबिक, सितंबर-दिसंबर, 2016 के बीच देश में कुल नौकरियों की संख्या 40 करोड़ 65 लाख थी, परंतु नोटबंदी के ठीक बाद जनवरी-अप्रैल 2017 के बीच नौकरियां घटकर 40 करोड़ 50 लाख रह गईं. इसका मतलब है कि नोटबंदी के बाद 15 लाख नौकरियां घट गईं. एमआईई यह सर्वे 1,61,167 परिवारों से बातचीत पर आधारित है.

उधर, फिक्की के त्रैमासिक सर्वे में कहा गया है कि निर्माण क्षेत्र के 73 प्रतिशत नौकरी देने वालों का कहना है कि वे अगले तीन महीने तक कोई भी नई नौकरी देने की स्थिति में नहीं हैं. पिछली तिमाही में यह प्रतिशत 77 था.

बिजनेस स्टैंडर्ड में छपे एक लेख में कहा गया है कि नोटबंदी के बाद धीमी नियुक्यिां बाजार पर और दबाव पैदा कर सकती हैं, जबकि लगातार नौकरियां जा रही हैं. फिक्की का सर्वे ऐसे समय में आया है जब आधे से कम उत्तरदाताओं को ही उम्मीद है कि अगले तीन महीने में उत्पादन में बढ़ोत्तरी होगी.

सिर्फ़ 49 प्रतिशत उत्तरदाता आशान्वित हैं कि अगले तीन महीने में उत्पादन में बढ़ोत्तरी होगी. इसके पहले जनवरी से मार्च की तिमाही में सिर्फ 48 प्रतिशत उत्पादकों को उम्मीद थी कि निर्माण बढ़ेगा.