राजस्थान: कोविड-19 से लड़ने के लिए गोरक्षा सरचार्ज के इस्तेमाल के सरकार के फ़ैसले का विरोध

गायों के कल्याण के लिए सरचार्ज कलेक्शन की शुरुआत पिछली भाजपा सरकार में हुई थी. अब इसका इस्तेमाल कोरोना महामारी से लड़ने में करने के लिए गहलोत सरकार द्वारा पास किए गए विधेयक के ख़िलाफ़ भाजपा और कई 'गोरक्षा' दल उतर आए हैं.

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अशोक गहलोत. (फोटो: पीटीआई)

गायों के कल्याण के लिए सरचार्ज कलेक्शन की शुरुआत पिछली भाजपा सरकार में हुई थी. अब इसका इस्तेमाल कोरोना महामारी से लड़ने में करने के लिए गहलोत सरकार द्वारा पास किए गए विधेयक के ख़िलाफ़ भाजपा और कई ‘गोरक्षा’ दल उतर आए हैं.

अशोक गहलोत. (फोटो: पीटीआई)
अशोक गहलोत. (फोटो: पीटीआई)

जयपुर: कोविड-19 महामारी का असर कम न होते देख राजस्थान में अशोक गहलोत नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने हाल ही में राज्य विधानसभा में एक विधेयक पास किया, जिसके तहत कोरोना संक्रमण के रोगियों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए स्टांप ड्यूटी पर मिलने वाले सरचार्ज कलेक्शन (अधिभार संग्रह) का हिस्सा खर्च करने का फैसला किया गया.

हालांकि, स्टांप ड्यूटी पर यह अधिभार गायों के संरक्षण के लिए था. इस साल 14 मई को राज्य सरकार ने राजस्थान स्टांप अधिनियम, 1998 में संशोधन के लिए राजस्थान स्टांप (संशोधन) अध्यादेश, 2020 पेश किया था.

जहां अधिनियम की धारा 3-बी में लिखा था, ‘गाय के संरक्षण और प्रसार और उसकी संतान के लिए अधिभार,’ वहीं अध्यादेश में आगे यह जोड़ दिया गया, ‘और प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं को कम करने के लिए.’

इसका मतलब यह था कि अधिभार का उपयोग अब सूखा, बाढ़, महामारी और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के साथ-साथ गाय के कल्याण के लिए किया जा सकता है.

इसी तरह बीते 21 अगस्त को कांग्रेस सरकार ने राजस्थान स्टांप (संशोधन) विधेयक, 2020 पेश किया. यह तर्क दिया गया है कि भोजन, आश्रय, परिवहन और स्वास्थ्य सेवाओं के रूप में कोविड -19 महामारी से पीड़ित लोगों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए और भविष्य की आवश्यकता को भी ध्यान में रखते हुए अधिभार के उपयोग का दायरा व्यापक किया जाना चाहिए.

विधेयक को 24 अगस्त को विधानसभा द्वारा पारित किया गया था, लेकिन अब यह एक नए विवाद का केंद्र बन गया है. गायों के कल्याण के लिए अधिभार पिछली वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा 2016 में पेश किया गया था.

राजे के अंतिम कार्यकाल के दौरान राजस्थान एकमात्र ऐसा राज्य बन गया था, जिसके पास गो-कल्याण के लिए एक समर्पित मंत्रालय था. इसके पहले मंत्री ओटाराम देवासी थे.

2018 में राजे सरकार ने गायों की सुरक्षा के लिए शराब की बिक्री पर 20 फीसदी सेस भी लगाया था.

भाजपा शासन के गाय संरक्षण एजेंडा ने कई स्वयंभू गोरक्षक दलों को जन्म दिया था. ये असामाजिक समूह गायों को वध से बचाने के नाम पर मुस्लिम समुदाय के डेयरी किसानों को लक्षित करते पाए गए और ज्यादातर मामलों में उन्हें सार्वजनिक रूप से लिंच किया गया.

गायों के संरक्षण के लिए समर्पित फंड को आपदाओं से लड़ने के लिए इस्तेमाल करने के कांग्रेस सरकार के कदम की राजस्थान के विभिन्न दल आलोचना कर रहे हैं.

राजस्थान गाय कल्याण समिति के प्रमुख दिनेश गिरि ने इसे गो-द्रोह (गायों के साथ विश्वासघात) करार दिया है और कहा है कि विधेयक के परिणामस्वरूप राज्य में गायें भूखों मर जाएंगी.

राजस्थान के अलवर स्थित गौ-रक्षक दल के प्रमुख खिल्लीमल ने द वायर  से कहा, ‘भाजपा सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए जबरदस्त काम किया कि राज्य में गायों का संरक्षण हो. कांग्रेस सरकार गायों के पक्ष में लिए गए सभी नीतिगत फैसलों को खत्म करना चाहती है. हम उन्हें इतनी आसानी से नहीं करने देंगे.’

दलों ने अशोक गहलोत सरकार को अपना ‘गो-विरोधी कानून वापस लेने के लिए मजबूर करने के लिए 21 सितंबर को राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन का संकल्प लिया है.

विपक्षी भाजपा ने भी कांग्रेस सरकार की आलोचना की है. द वायर से बात करते हुए पिछली भाजपा सरकार में गो मंत्री रहे देवसी ने कहा, ‘वसुंधरा राजे के शासन में हमारी सरकार ने पहली बार गो मंत्रालय की स्थापना की. मंत्रालय को गौशालाओं का समर्थन करने के लिए अनुदान देने की आवश्यकता थी और इसके लिए स्टांप शुल्क पर अधिभार लागू किया गया था.’

देवसी ने आगे कहा, ‘कांग्रेस सरकार का कदम राजस्थान गोवंशों के साथ एक बड़ा अन्याय है. वर्षों से राजस्थान के लोगों ने गायों की पूजा करने के कारण अधिभार का खुशी-खुशी भुगतान किया था, लेकिन अगर सरकार इसका उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए करने जा रही है, तो जनता भुगतान करने को तैयार नहीं होगी.’

बता दें कि वसुंधरा राजे सरकार के शासन में गायों के लिए समर्पित मंत्रालय होने के बावजूद वहां गौशालाओं की स्थिति बिगड़ती गई थी.

अक्टूबर 2016 में  जयपुर की हिंगोनिया गौशाला में बड़े पैमाने पर कुप्रबंधन को उजागर किया गया था, जिसने तत्कालीन राजस्थान सरकार को अक्षय पात्र फाउंडेशन के लिए अपने रखरखाव को बाहरी संस्था को सौंपने करने के लिए मजबूर किया था.

2020 में राज्य विधानसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए गहलोत सरकार ने खुलासा किया कि गो रक्षा के लिए अधिभार के तौर पर पिछले दो वर्षों में 1,252 करोड़ रुपये प्राप्त किए थे.

राज्य को वर्ष 2018-19 में गो रक्षा के लिए स्टांप शुल्क पर 266.13 करोड़ रुपये और वर्ष 2019-20 में 291.98 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं.

गो- रक्षा के लिए शराब की बिक्री पर उपकर से राजस्व 2018-19 में 270.12 करोड़ रुपये और 2019-20 में 424.68 करोड़ रुपये रहा.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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