दिल्ली: रेलवे ट्रैक के किनारे बसी झुग्गियों को हटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार की मांग

बीते 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में रेलवे पटरी के किनारे बसी 48 हज़ार झुग्गियों को तीन महीने के अंदर हटाने का आदेश दिया है. 50 से अधिक ग़ैर-सरकारी संगठनों ने एक बयान जारी कर कहा कि इस क़दम का ढाई लाख लोगों के जीवन, आजीविका, गरिमा और अधिकारों पर विनाशकारी परिणाम पड़ेगा.

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दिल्ली के सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन के पास बसी एक बस्ती. (फोटो: पीटीआई)

बीते 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में रेलवे पटरी के किनारे बसी 48 हज़ार झुग्गियों को तीन महीने के अंदर हटाने का आदेश दिया है. 50 से अधिक ग़ैर-सरकारी संगठनों ने एक बयान जारी कर कहा कि इस क़दम का ढाई लाख लोगों के जीवन, आजीविका, गरिमा और अधिकारों पर विनाशकारी परिणाम पड़ेगा.

दिल्ली के सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन के पास बसी एक बस्ती. (फोटो: पीटीआई)
दिल्ली के सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन के पास बसी एक बस्ती. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कई नागरिक समूहों ने सुप्रीम कोर्ट से नई दिल्ली में रेलवे की जमीन पर बसे झुग्गीवासियों को हटाने के अपने हालिया आदेश पर पुनर्विचार करने और तत्काल प्रभाव से संशोधन करने का आग्रह किया है.

जमीनी स्तर पर काम करने वाले 50 से अधिक गैर-सरकारी संगठनों के हस्ताक्षर वाले प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, इस कदम का करीब 50 हजार घरों या 2.5 लाख लोगों के जीवन, आजीविका, गरिमा और अधिकारों पर विनाशकारी परिणाम पड़ेगा.

बयान में कहा गया, ‘यह आदेश दिल्ली शहरी आश्रय बोर्ड (डीयूएसआईबी) नीति के तहत निवासियों के लिए स्थापित दोनों नीतिगत सुरक्षा को संबोधित नहीं करता है या उनका ध्यान नहीं रखता है. इसमें 2015 का राहत एवं पुनर्वास नीति और 2019 का अजय माकन बनाम भारतीय संघ या शकूर बस्ती फैसला शामिल है जिसके तहत डीयूएसआईबी नीति (पर्याप्त सूचना और स्पष्ट पुनर्वास व्यवस्था सहित जबरन निकासी के मामले में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया) रेलवे की भूमि पर बस्तियों के लिए विशेष रूप से और पूरी तरह से लागू होती है.’

इसमें आगे कहा गया, ‘अजय माकन और सुदामा सिंह बनाम दिल्ली सरकार जैसे मामलों में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसलों में तय पुनर्वास के लिए प्रक्रियात्मक सुरक्षा और अधिकार के बिना सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा आदेश पढ़ा या लागू नहीं किया जा सकता है.’

इन समूहों के लिए नीति-निर्धारण करने वाले दिल्ली सरकार और डीयूएसआईबी की ओर इशारा करते हुए बयान में चिंता जताई गई कि कोई भी प्रभावित निवासी या समुदाय इस मामले के बारे में नहीं जानता था और इसलिए अपने अधिकार का प्रयोग नहीं कर पाया है और सुनवाई में प्रतिनिधित्व कर सकता है.

बीते 31 अगस्त को जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने अपने एक आदेश में दिल्ली में लगभग 140 किलोमीटर लंबे रेलवे ट्रैक के आसपास में फैलीं करीब 48,000 झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का आदेश दिया था.

कोर्ट ने कहा है कि ये कार्य तीन महीने के भीतर पूरा कर लिया जाना चाहिए. इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने ये भी निर्देश दिया है कि झुग्गियां हटाने को लेकर कोई भी कोर्ट स्टे नहीं लगाएगा.

अपने बयान में गैर-सरकारी संगठनों ने दिल्ली सरकार और डीएसयूआईबी से निवेदन किया कि वे दिल्ली स्लम और जेजे पुनर्वास और स्थानांतरण नीति (2015) लागू करने के लिए अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करें और जोर दें.

इसके साथ उनसे अजय माकन और सुदामा सिंह मामले के फैसलों को लागू करने की प्रतिबद्धता भी जताने का अनुरोध किया.

अन्य मांगों के साथ गैर-सरकारी संगठनों ने सरकार से कोविड-19 महामारी के दौरान जब राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम और महामारी अधिनियम चालू है तब किसी भी विध्वंस को नहीं करने का आग्रह किया.

बयान में कहा गया, ‘इन समुदायों के निवासी श्रमिक हैं, आर्थिक रूप से कमजोर परिवार हैं और कई अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के सदस्य हैं. बहुत से ऐसे हैं जो हमारे शहर को साफ रखने, कचरे का प्रबंधन करने और शहर की अर्थव्यवस्था में योगदान देने के लिए श्रम करते हैं, जिससे विशाल पारिस्थितिक और आर्थिक मूल्य पैदा होते हैं.’

बयान में आगे कहा गया, ‘जबरन बेदखल किए जाने वाली यह जनसंख्या एक ऐसा झटका देगी, जिससे इस शहर के कामकाजी परिवार उबर नहीं पाएंगे.’

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