अवमानना मामला: दो​षसिद्धि के ख़िलाफ़ अपील का अधिकार पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे भूषण

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण को न्यायपालिका एवं जजों को लेकर अपने दो ट्वीट के चलते अदालत की अवमानना का दोषी क़रार दिया गया था और 31 अगस्त को एक रुपये जुर्माने की सज़ा दी गई थी.

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प्रशांत भूषण. (फाइल फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण को न्यायपालिका एवं जजों को लेकर अपने दो ट्वीट के चलते अदालत की अवमानना का दोषी क़रार दिया गया था और 31 अगस्त को एक रुपये जुर्माने की सज़ा दी गई थी.

प्रशांत भूषण. (फाइल फोटो: पीटीआई)
प्रशांत भूषण. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: वकील प्रशांत भूषण ने अवमानना मामले में दोषसिद्धि के खिलाफ अपील का अधिकार प्रदान करने का अनुरोध करते हुए बीते शनिवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया.

न्यायपालिका एवं जजों को लेकर उनके दो ट्वीट के चलते उन्हें अदालत की अवमानना का दोषी करार दिया गया था और एक रुपये जुर्माने की सजा दी गई थी.

भूषण को 31 अगस्त को उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री में 15 सितंबर तक जुर्माना राशि जमा करने का निर्देश दिया गया था और यह भी कहा गया था कि आदेश का पालन नहीं करने पर तीन महीने जेल की सजा और तीन साल के लिए वकालत करने पर रोक लग जाएगी.

वकील कामिनी जायसवाल के जरिये दाखिल नई याचिका में उन्होंने अनुरोध किया है कि ‘इस अदालत द्वारा आपराधिक अवमानना के मामले में याचिकाकर्ता समेत दोषी व्यक्ति को वृहद और अलग पीठ में अपील करने का अधिकार’ प्रदान करने का निर्णय किया जाए.

भूषण ने याचिका में आपराधिक अवमानना मामले में प्रक्रियागत बदलाव का सुझाव देते हुए ‘एकतरफा, रोषपूर्ण और दूसरे की भावनाओं पर विचार किए बिना किए गए फैसले’ की आशंका को दूर करने का अनुरोध किया है.

उन्होंने कहा है कि ऐसे मामलों में शीर्ष न्यायालय एक पक्ष होने के साथ ‘अभियोजक, गवाह और न्यायाधीश’ भी होता है, इसलिए पक्षपात की आशंका पैदा होती है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अपनी याचिका में उन्होंने कहा कि यदि न्यायालय उन्हें इंट्रा-कोर्ट अपील की इजाजत नहीं देती है तो उसे जरूर ये निर्देश देना चाहिए कि आपराधिक अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषी ठहराने के आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर ओपन कोर्ट में एक अन्य पीठ द्वारा सुनवाई की जानी चाहिए.

उन्होंने दलील दी कि उनकी मांगें मौजूदा कानूनों के दायरे में हैं. भूषण ने इस ओर इशारा किया कि सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व में मृत्युदंड वाले मामलों से जुड़े केस की सुनवाई के लिए विशेष नियम बनाए थे.

याचिका में कहा गया है कि संविधान के तहत अपील करने का हक एक मौलिक अधिकार है और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत भी यह प्रदत्त है. इसलिए यह ‘गलत तरीके से दोषसिद्धि के खिलाफ रक्षा प्रदान करेगा.’

याचिका में ‘आपराधिक अवमानना के मूल मामले में दोषसिद्धि के खिलाफ अपील का मौका देने के लिए’ नियमों और दिशा-निर्देशों की रूपरेखा तय करने को लेकर भी अनुरोध किया गया है.

मौजूदा वैधानिक व्यवस्था के मुताबिक, आपराधिक मामलों में दोषी करार दिए गए व्यक्ति को फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का अधिकार है और आमतौर पर चैंबर के भीतर याचिका पर सुनवाई होती है और इसमें दोषी व्यक्ति को नहीं सुना जाता है.

भूषण ने कहा है कि उनकी याचिका संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी) और 21 (जीवन का अधिकार) के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर अमल के लिए दायर की गई है.

याचिका में कहा गया है कि अवमानना के मूल मामले में दोषसिद्धि के खिलाफ अपील का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक हक है और स्वाभाविक न्याय के सिद्धांतों से यह निकला है.

इस तरह का अधिकार नहीं होना जीवन के अधिकार का उल्लंघन है. अपने ट्वीट के लिए दर्ज अवमानना मामले के अलावा प्रशांत भूषण 2009 के एक अन्य अवमानना मामले का भी सामना कर रहे हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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