असम: सीमाई ज़िले के फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में मुस्लिम अधिवक्ताओं को हटाकर हिंदुओं की नियुक्ति

धर्म के आधार पर फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के शासकीय अधिवक्ताओं को नियुक्त करने से पहले राज्य सरकार सीमाई ज़िलों में एनआरसी से बाहर रहने वाले लोगों की दर को लेकर कई बार नाख़ुशी ज़ाहिर कर चुकी है.

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फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल, धुबरी. (फोटो: मसूद ज़मान)

धर्म के आधार पर फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के शासकीय अधिवक्ताओं को नियुक्त करने से पहले राज्य सरकार सीमाई ज़िलों में एनआरसी से बाहर रहने वाले लोगों की दर को लेकर कई बार नाख़ुशी ज़ाहिर कर चुकी है.

फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल, धुबरी. (फोटो: मसूद ज़मान)
फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल, धुबरी. (फोटो: मसूद ज़मान)

गुवाहाटी: असम के वित्त मंत्री और राज्य में भाजपा के सबसे प्रभावशाली नेता हिमंता बिस्वा शर्मा ने ठीक एक साल पहले स्थानीय मीडिया से बात करते हुए अपडेट हुए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में बांग्लादेश सीमा के पास के जिलों के लोगों के बाहर रहने की दर को लेकर चिंता जाहिर की थी.

इन जिलों की एक्स्क्लूज़न दर 6-7 फीसदी थी, जो लोग स्वायत्त जिला परिषद में रहते हैं, उनकी दर 16% थी. उस समय शर्मा ने मूल रूप से यह बताया था कि भाजपा और राज्य सरकार को लगता है कि सीमांत जिलों में एनआरसी में गड़बड़ियां हुई हैं.

भाजपा और राज्य सरकार दोनों की तब यही मांग थी कि सीमांत जिलों- धुबरी, करीमगंज, साउथ सलमारा और हैलाकांदी में अपडेटेड एनआरसी के 20 फीसदी आंकड़ों का रीवेरिफिकेशन किया जाए. असम के अन्य हिस्सों के लिए वे 10 प्रतिशत रीवेरिफिकेशन चाहते थे.

इस बारे में एनआरसी का केस सुन रही सुप्रीम कोर्ट की पीठ के सामने एक हलफनामा भी पेश किया गया था, जिसे पीठ ने तत्कालीन एनआरसी संयोजक प्रतीक हजेला के यह कहने- कि पहले ही 27 प्रतिशत रीवेरिफिकेशन हो चुका है- के बाद ख़ारिज कर दिया था.

अब सितंबर 2020 में आते हैं. बीते आठ सितंबर को धुबरी में काम करने वाले सात मुस्लिम सहायक शासकीय अधिवक्ता (एजीपी), जो स्थानीय फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफटी) से जुड़े हुए थे, की सेवाएं समाप्त कर दी गईं.

इन एजीपी का काम ट्रिब्यूनल में सरकार की ओर से केस दायर करना होता है. अब मुस्लिम समुदाय से आने वाले अधिकतर शासकीय अधिवक्ताओं की जगह बंगाली हिंदू समुदाय के वकीलों को मिली है.

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो बीते साल आई एनआरसी की फाइनल सूची से बाहर रहे 19 लाख लोगों में बड़ी संख्या बंगाली हिंदुओं की है, जो भाजपा का वोट बैंक माने जाते हैं.

सरकार द्वारा बीते दिनों जारी किए गए नोटिस कुछ इस तरह लिखे हैं-

‘राज्यपाल द्वारा सार्वजनिक सेवाओं के हित में 8 सितंबर को जारी अधिसूचना के अनुसार, अमीनुल इस्लाम एजीपी, एफटी 1 धुबरी की सेवाओं को तत्काल प्रभाव से समाप्त किया जाता है. ऋतुपर्णा गुहा को अमीनुल इस्लाम के स्थान पर एजीपी, एफटी 1 धुबरी नियुक्त किया जाता है.’

और यही फॉर्मेट चलता रहता है,

‘कमाल हुसैन एजीपी, एफटी 2 धुबरी की जगह गोकुल चंद्र कर्माकर की नियुक्ति हुई. नासिर अली मंडल एजीपी, एफटी 4 धुबरी की जगह अधीर चंद्र रॉय की नियुक्ति, रबिअल हक मंडल एजीपी, एफटी 5 धुबरी को हटाकर अनिंदा पॉल को नियुक्त किया गया. आफताब उदीन एजीपी, एफटी 8 धुबरी की सेवाएं ख़त्म कर शंकर प्रसाद चक्रवर्ती को नियुक्त किया गया.’

इस जिले के ट्रिब्यूनल में नए नियुक्त किए गए एजीपी में केवल दो अन्य हिंदू समुदाय से हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, इस जिले में कुल आबादी का 79.67 प्रतिशत हिस्सा मुस्लिम समुदाय के लोग हैं, वहीं हिंदुओं का प्रतिशत 19.92 है.

सूत्रों के मुताबिक, जिन एजीपी को हटाया गया है, वे कानूनी सलाह ले रहे हैं और राज्य सरकार के इस आदेश को अदालत में चुनौती दे सकते हैं.

धुबरी जिले में 10 एफटी हैं. अन्य ट्रिब्यूनल में हुए बदलावों के बीच एक ट्रिब्यूनल- एफटी 6 में शासकीय अधिवक्ता का पद खाली था, लेकिन 8 सितंबर की अधिसूचना के मुताबिक सुजीत कुमार साहा को यहां एजीपी नियुक्त किया गया है.

द वायर  ने सेवा से हटाए गए एक एजीपी से संपर्क किया, जिन्होंने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि सरकार ने उन्हें इस बारे में बिना कोई पूर्व सूचना दिए यह कदम उठाया है.

उन्होंने बताया, ‘हमने इस बारे में पहले कोई नोटिस नहीं दिया गया था. हमारी सेवाएं उचित कानून और ब्यूरोक्रेटिक प्रक्रिया के साथ समाप्त की जानी चाहिए थी. मैं बेहद दुखी और निराश हूं और मुझे अब तक इसके पीछे का कारण समझ में नहीं आया है. मैं मार्च 2016 से अपनी सेवाएं दे रहा था, मार्च 2017 में हमें सरकार द्वारा एडवांस ट्रेनिंग भी दी गई थी. इसके बाद 2019 में भी हमें एफटी कोर्ट में कैसे केस दाखिल करना है, इसकी दोबारा ट्रेनिंग दी गई.’

उन्होंने आगे बताया, ‘हममें से कुछ ने हमारे टर्मिनेशन ऑर्डर को लेकर वकीलों से बात करना भी शुरू कर दिया है और हमारा जो भी फैसला होगा वो उनकी सलाह पर आधारित ही होगा. अगर हमारा केस वैध और मजबूत होगा, तो हम अदालत भी जा सकते हैं. हमने इस बारे में अभी कोई निर्णय नहीं लिया है.’

गुवाहाटी के एक वकील अमन वदूद ने इस नोटिफिकेशन को सोशल मीडिया पर साझा किया था. द वायर  द्वारा संपर्क किए जाने पर उन्होंने बताया, ‘एफटी संविधान के सबसे महत्वपूर्ण अधिकार को लेकर फैसला सुनाते हैं- किसी भी व्यक्ति की नागरिकता का अधिकार, जिसे अक्सर बाकी हक़ पाए जाने का अधिकार कहा जाता है. एफटी अक्सर निष्पक्ष सुनवाई के मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं, और सरकार का ये (धर्म के आधार पर वकीलों को अलग करने का) रवैया स्पष्ट दिखाता है कि उन्हें निष्पक्ष सुनवाई की पड़ी ही नहीं है.’

Data entry operators of National Register of Citizens (NRC) carry out correction of names and spellings at an NRC Seva Kendra at Birubari in Guwahati. PTI Photo
(फोटो: पीटीआई)

धुबरी के वकील मसूद ज़मान इस कदम को एफटी कोर्ट का ‘संघीकरण’ होना कहते हैं. वे कहते हैं, ‘यह बहुत निराशाजनक है कि ज्यादातर एजीपी को ऐसे अचानक बिना कोई पूर्व सूचना दिए बदल दिया गया. यह एफटी को अलग रंग में रंगने का प्रयास है. मुझे इसका दुख है क्योंकि ये सात एजीपी कुछ सालों से काम कर रहे थे.’

कांग्रेस विधायक और नेता प्रतिपक्ष देबब्रत सैकिया ने भी इस कदम को दुर्भाग्यपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि जिन अधिवक्ताओं को हटाया गया है, उन्हें अल्पसंख्यक आयोग से संपर्क करना चाहिए.

सैकिया ने कहा, ‘संवैधानिक मूल्यों के अनुसार नियमों का पालन किया जाना चाहिए और सभी बातें इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिए. सेवाओं को ऐसे ख़त्म नहीं किया जाना चाहिए था.’

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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