प्रतिबंधित होने से पहले उल्फा नेताओं ने ब्रिटेन से मांगी थी मदद: रिपोर्ट

प्रतिबंधित होने से पहले उल्फा के ब्रिटेन से मदद मांगने का खुलासा ब्रिटेन के नेशनल आर्काइव्स द्वारा कुछ गोपनीय दस्तावेजों को हाल में सार्वजनिक किए जाने के बाद हुआ है. उल्फा के तत्कालीन तीन शीर्ष नेताओं से मुलाकात के बाद बांग्लादेश में ब्रिटिश राजनयिक डेविड ऑस्टिन ने एक पत्र लिख ब्रिटेन को बताया था कि उल्फा इजरायल से प्रभावित है.

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उल्फा कैडरों की प्रतिकात्मक तस्वीर. (फोटो: द हंस इंडिया)

प्रतिबंधित होने से पहले उल्फा के ब्रिटेन से मदद मांगने का खुलासा ब्रिटेन के नेशनल आर्काइव्स द्वारा कुछ गोपनीय दस्तावेजों को हाल में सार्वजनिक किए जाने के बाद हुआ है. उल्फा के तत्कालीन तीन शीर्ष नेताओं से मुलाकात के बाद बांग्लादेश में ब्रिटिश राजनयिक डेविड ऑस्टिन ने एक पत्र लिख ब्रिटेन को बताया था कि उल्फा इजरायल से प्रभावित है.

उल्फा कैडरों की प्रतिकात्मक तस्वीर. (फोटो: द हंस इंडिया)
उल्फा कैडरों की तस्वीर. (फाइल फोटो साभार: द हंस इंडिया)

नई दिल्ली: साल 1990 में केंद्र की चंद्रशेखर सरकार द्वारा असम में असम गण परिषद (एजीपी) सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाए जाने और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के सफाए के लिए ऑपरेशन बजरंग शुरू किए जाने से दो महीने पहले सशस्त्र समूह के तीन प्रतिनिधियों ने अपने उद्देश्य की पूर्ति में ब्रिटेन की मदद मांगने के लिए बांग्लादेश में एक ब्रिटिश राजनयिक से मुलाकात की थी.

यह खुलासा ब्रिटेन के नेशनल आर्काइव्स द्वारा कुछ गोपनीय दस्तावेजों को हाल में सार्वजनिक किए जाने के बाद हुआ है. उल्फा के शीर्ष तीन नेताओं अनूप चेटिया (मूल नाम गोलप बरूआ), सिद्धार्थ फुकान (मूल नाम सुनील नाथ) और इकबाल (मूल नाम मुनीन नाबिस) की मुलाकात ब्रिटिश राजनयिक डेविड ऑस्टिन से 2 अक्टूबर, 1990 को हुई थी.

बैठक के बाद ऑस्टिन ने एक पत्र लिख ब्रिटेन को बताया था कि उल्फा इजरायल से प्रभावित है.

4 अक्टूबर, 1990 को ब्रिटेन को भेजे गए पत्र में ऑस्टिन ने लिखा था, ‘अगर इजरायल शत्रु अरब देशों से घिरे होने के बावजूद खुद को बचा सकता है तो शत्रु भारतीय बलों से घिरा असम ऐसा क्यों नहीं कर सकता?’

बता दें कि उल्फा स्वायत्त असम में विश्वास करता था और यही कारण है कि उसका एक धड़ा उल्फा-स्वतंत्र अभी भी भारत सरकार की शांति की पहल में शामिल नहीं हो रहा है.

हिंदुस्तान टाइम्स ने 13 सितंबर की अपनी रिपोर्ट में सार्वजनिक दस्तावेजों के हवाले से कहा था कि ब्रिटिश राजनयिक को असम के लखीमपुर में अन्य तस्वीरों और पत्रों के साथ संगठन के प्रशिक्षण शिविर की तस्वीरें दिखाई गई थीं और राज्य में अपने शिविरों के दौरे कराने का वादा किया गया था.

इनमें से एक तस्वीर उल्फा के कमांडर-इन-चीफ परेश बरुआ की थी, जो चीन की सेना के एक अधिकारी के साथ सीमा पर था. माना जाता है कि बरुआ अभी भी चीन में है.

हालांकि, ऑस्टिन ने कैंप का दौरा करने के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया था.

न्यूज रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्टिन ने लिखा था, ‘तीन लोगों ने चार अलग-अलग क्षेत्रों में मदद/सलाह मांगी है, जिसमें उल्फा की गतिविधियों और उद्देश्यों को प्रसारित करने में ब्रिटेन का समर्थन, उल्फा ब्रिटेन में एक कार्यालय स्थापित करने में सक्षम होगा या नहीं इस पर सलाह, ढाका में अन्य पश्चिमी राजनयिक मिशनों से पहचान और इज़राइल में अधिकारियों के संपर्क में कैसे आ सकते हैं जो उनकी मदद करने में सक्षम हो सकते हैं.’

न्यूज रिपोर्ट के अनुसार, नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश उच्चायोग में राजनयिक डीडी डब्ल्यू मार्टिन ने 5 नवंबर को ऑस्टिन के नोट को दिखावा बताया और विदेश विभाग को पत्र लिखकर कहा, ‘उन्होंने स्पष्ट रूप से अब पश्चिमी राजनयिकों को निशाना बनाने का फैसला किया है.’

रिपोर्ट में कहा गया कि मार्टिन ने लिखा था, ‘अधिकारियों की मिलीभगत से बांग्लादेश में पूरी सुरक्षा के साथ उल्फा के काम करने के प्रेस के आरोपों को खारिज करने के लिए उन्हें ऐसा करना पड़ता है.’

उल्फा के चीन से संबंध मार्टिन को नया और रोचक लगा था. उन्होंने उल्लेख किया था कि उन्होंने असम में केवल एक कांग्रेस-आई विधायक से इस संबंध के बारे में सुना था जिन्होंने आरोप लगाया था कि भारतीय खुफिया सेवाओं को चीनी भागीदारी के बारे में सब पता था, लेकिन वे भारत और चीन के बीच संबंध को नुकसान पहुंचाने के डर से चुप रहे थे.

बता दें कि पूर्वोत्तर विद्रोही आंदोलनों में चीनी मदद के दावे नए नहीं हैं. मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने अपनी आत्मकथा में कहा था कि उन्होंने 1960 के दशक में मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के शीर्ष नेता के रूप में चीन से मदद प्राप्त की थी.

ब्रिटेन भेजे गए मार्टिन के नोट ने यह भी उजागर किया था कि उल्फा नेताओं ने राज्य की चाय कंपनियों के खिलाफ उनकी गतिविधियों के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं किया है जिसमें ब्रिटेन के प्रत्यक्ष व्यावसायिक हित थे.

उन्होंने लिखा था, ‘उल्फा एक उग्रवादी संगठन है, जो असम में स्थापित आदेश को रद्द करने के लिए हिंसक साधनों को अपना रहा है. वह चाय कंपनियों पर दबाव डाल रहा जिससे ब्रिटिश हितों को भी खतरा है. इसलिए उल्फा के साथ संपर्क पर भारत सरकार को समझाना कठिन होगा.’

उसी साल अप्रैल में कोलकाता स्थित कारोबारी सुरिंदर पॉल (मौजूदा अपीजे समूह) को ऊपरी असम के तिनसुकिया में संदिग्ध उल्फा कैडरों द्वारा गोली मार दी गई थी.

इसके बाद पॉल के प्रभावशाली ब्रिटिश नागरिकता वाले भाई लॉर्ड स्वराज पॉल ने ब्रिटेन में भारतीय राजदूत कुलदीप नायर पर दबाव डालकर उल्फा के खिलाफ कार्रवाई के लिए तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार को पत्र लिखवाया था.

हालांकि, असम गण परिषद (एजीपी) वीपी सिंह के गठबंधन का हिस्सा था. परिषद के एक वरिष्ठ सदस्य दिनेश गोस्वामी केंद्रीय मंत्री थे. इन्हीं दिनों में असम में प्रफुल्ल कुमार महंता की सरकार, खासकर गृह मंत्री और एजीपी नेता भृगु फुकान उल्फा के करीबी माने जाते थे.

वहीं, उस बैठक के एक महीने बाद ही 9 नवंबर, 1990 को एक केंद्रीय एजेंसी ने दूमदूमा चाय कंपनी के गैर असमी कर्मचारियों को ऊपरी असम से कोलकाता के लिए एयरलिफ्ट करने के लिए एक गुप्त अभियान चलाया था. इस कंपनी ने फंड देने की उल्फा की मांग को अस्वीकार कर दिया था.

28 नवंबर, 1990 को भारत ने उल्फा को प्रतिबंधित कर दिया था. ऑस्टिन से मुलाकात करने वाले तीन शीर्ष नेता असम में ही रहने लगे.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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