त्रिपुराः पत्रकार की हत्या के तीन साल बाद भी परिवार को इंसाफ़ का इंतज़ार

त्रिपुरा में एक राजनीतिक पार्टी के प्रदर्शन को कवर करने गए स्थानीय टीवी चैनल के पत्रकार शांतनु भौमिक की 20 सितंबर 2017 को हत्या कर दी गई थी. जून 2018 में मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने मामला सीबीआई को सौंपा था. अब पत्रकारों ने जांच की धीमी रफ्तार को लेकर नाराज़गी जताई है.

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पत्रकार शांतनु भौमिक. (फोटो साभार: फेसबुक/शांतनु भौमिक)

त्रिपुरा में एक राजनीतिक पार्टी के प्रदर्शन को कवर करने गए स्थानीय टीवी चैनल के पत्रकार शांतनु भौमिक की 20 सितंबर 2017 को हत्या कर दी गई थी. जून 2018 में मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने मामला सीबीआई को सौंपा था. अब पत्रकारों ने जांच की धीमी रफ्तार को लेकर नाराज़गी जताई है.

पत्रकार शांतनु भौमिक. (फोटो साभार: फेसबुक/शांतनु भौमिक)
पत्रकार शांतनु भौमिक. (फोटो साभार: फेसबुक/शांतनु भौमिक)

अगरतलाः त्रिपुरा के मड़वई गांव में एक राजनीतिक पार्टी के प्रदर्शन को कवर करने गए पत्रकार शांतनु भौमिक की मौत के तीन साल बाद भी उनके परिवार को न्याय का इंतजार है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एक स्थानीय केबल टीवी चैनल दिनरात के पत्रकार शांतनु भौमिक की 20 सितंबर 2017 को हत्या कर दी गई थी.

शांतनु की मां पापरी नाग भौमिक (55) का कहना है कि वह मरने से पहले अपने बेटे को न्याय मिलते देखना चाहती हैं.

त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) में लिपिक पद पर तैनात उनकी मां का कहना है, ‘मेरा बेटा चला गया. मैं मरने से पहले उसके दोषियों को न्याय के कटघरे में खड़ा देखना चाहता हूं. मैं और क्या मांग सकती हूं?’

शांतनु की बहन पिंकी भौमिक अपने भाई की मौत के समय त्रिपुरा से बाहर हॉर्टीकल्चर में बीएससी कर रही थीं. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह अब अपनी मां के साथ रह रही हैं.

उनके पिता सधन भौमिक ने तत्कालीन वामपंथी सरकार की जांच पर अविश्वास जताने के बाद सीबीआई जांच की मांग की थी.

शांतनु की हत्या से लगभग दो महीने बाद एक स्थानीय अखबार स्यंदन पत्रिका के पत्रकार सुदीप दत्ता को 21 नवंबर को पश्चिमी त्रिपुरा के आरके नगर में त्रिपुरा स्टेट राइफल (टीएसआर) की दूसरी बटालियन के भीतर गोली मार दी गई थी.

इन पत्रकारों की हत्या उन प्रमुख मामलों में से एक थीं, जिन पर त्रिपुरा का 2018 विधानसभा चुनाव लड़ा गया था.

तत्कालीन सत्तारूढ़ सीपीआई (एम) सरकार ने शांतनु की हत्या के लिए इंडीजिनस पीपुल्स फोरम ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के कार्यकर्ताओं पर आरोप लगाया था.

हालांकि, आईपीएफटी अब राज्य सरकार में भाजपा के साथ साझेदार है और उसने इन आरोपों को खारिज किया है.

वाम मोर्चा सरकार ने मामले की जांच के लिए विशेष जांच टीम (एसआईटी) का गठन किया था लेकिन पत्रकारों ने इसका विरोध कर सीबीआई जांच की मांग की थी.

विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के विजन डॉक्यूमेंट में इस मांग को जगह दी गई थी और मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने शपथ लेने के बाद सीबीआई को मामला सौंप दिया था.

हालांकि, सीबीआई को मामला सौंपने के दो साल बाद पत्रकारों ने जांच की धीमी रफ्तार को लेकर नाराजगी जताई है.

रविवार को शांतनु की याद में कई मेमोरियल कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, जहां उनके दोषियों को न्याय के कटघरे में खड़ा करने की मांग दोहराई गई.

शांतनु के न्यूज चैनल ने रविवार सुबह एक ऐसे ही मेमोरियल कार्यक्रम का आयोजन किया.

इस दौरान चैनल दिनरात के कार्यकारी सपादक समीर धर ने दिवंगत पत्रकार को याद करते हुए कहा, ‘हमें अभी तक शांतनु की मौत के लिए इंसाफ नहीं मिला है. वह राज्य में शांति को अस्थिर करने की साजिश रच रहे लोगों को बेनकाब करने के लिए काम कर रहा था. उसकी बेरहमी से हत्या कर दी गई.’

त्रिपुरा असेंबली ऑफ जर्नलिस्ट्स (टीएजे) के बैनर तले पत्रकारों के एक समूह ने अगरतला में रविंद्र शतवार्षिकी भवन के सामने शांतनु की याद में एक शोकसभा आयोजित की.

टीएजे के चेयरमैन सुबल कुमार डे ने कहा, ‘अभी शांतनु को न्याय मिलना बाकी है. आज उनका पूरा परिवार असहाय है. हालांकि पिछली सरकार ने उन्हें दस लाख रुपये की राहत राशि दी थी. निवर्तमान सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी है लेकिन उसकी वास्तव में इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है.’

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