लॉकडाउन के दौरान गंगा समेत पांच प्रमुख नदियों के जल की गुणवत्ता में गिरावट: रिपोर्ट

प्रमुख नदियों में पानी की गुणवत्ता पर लॉकडाउन के प्रभाव पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि नदियों के पानी की गुणवत्ता में सुधार न होने की वजह अशोधित अवजल को नदियों में छोड़ा जाना और पहाड़ों से ताज़ा पानी न आना है.

एक चमड़ा कारखाने से गंगा नदी में जाता अपशिष्ट जल. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

प्रमुख नदियों में पानी की गुणवत्ता पर लॉकडाउन के प्रभाव पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि नदियों के पानी की गुणवत्ता में सुधार न होने की वजह अशोधित अवजल को नदियों में छोड़ा जाना और पहाड़ों से ताज़ा पानी न आना है.

चमड़ा कारखाना से गंगा नदी में बहता अपशिष्ट जल (फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: देश में गंगा समेत पांच प्रमुख नदियों के जल की गुणवत्ता लॉकडाउन के दौरान खराब हुई है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा है कि ऐसा नदियों में अवजल छोड़े जाने और पहाड़ों से ताजा पानी नहीं आने जैसे कारणों से हुआ है.

बुधवार को प्रदूषण निगरानीकर्ता ने 46वें स्थापना दिवस के मौके पर जारी एक रिपोर्ट में कहा कि गंगा, व्यास, चंबल, सतलुज और स्वर्णरेखा नदियां स्नान करने की गुणवत्ता के खरी नहीं उतरती हैं.

प्रमुख नदियों में पानी की गुणवत्ता पर लॉकडाउन के प्रभाव पर रिपोर्ट के मुताबिक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (एसपीसीबी) की निगरानी वाली 19 नदियों में से सात में पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ.

सीपीसीबी ने कहा कि उसने एसपीसीबी से गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा, नर्मदा, व्यास, ब्रह्मपुत्र, वैतरणी, ब्राह्मणी, कावेरी, चंबल, घग्गर, महानदी, माही, पेन्नार, साबरमती, सतलज, स्वर्णरेखा और तापी नदियों के पानी का आकलन करने को कहा था.

इस आकलन में 20 राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों ने हिस्सा लिया.

रिपोर्ट में कहा गया कि 19 नदियों से पानी के नमूने लिए गए और पीएच, घुलनशील ऑक्सीजन, जैव रसायन ऑक्सीजन मांग समेत विभिन्न मानकों पर परखा गया. इसके बाद बाहर स्नान करने के लिए प्राथमिक पानी की गुणवत्ता के 1986 पर्यावरण (संरक्षण) नियमों के अधिसूचित मानकों से इनकी तुलना की गई.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘लॉकडाउन की अवधि के दौरान पांच नदियों- व्यास, चंबल, गंगा, सतलुज और स्वर्णरेखा के पानी की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ.’

रिपोर्ट में कहा गया कि नदियों के पानी की गुणवत्ता में सुधार नहीं होने की वजह अशोधित अवजल को नदियों में छोड़ा जाना, सूखे मौसम के कारण उच्च प्रदूषकों का सांद्रण और ऊंचाई से ताजा पानी नहीं आना आदि शामिल हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन के पहले 387 निगरानी स्थानों से नदियों के पानी के नमूने एकत्र किए गए थे और उनमें से प्राथमिक जल गुणवत्ता मानदंडों में 77.26 प्रतिशत बाहरी स्नान के योग्य नहीं थे.

वहीं, लॉकडाउन के दौरान 365 स्थानों से नमूने एकत्र किए गए थे, उनमें से 75.89 प्रतिशत प्राथमिक मापदंड के अनुरूप नहीं थे. इसका मतलब यह हुआ कि लॉकडाउन अवधि के दौरान देश में निगरानी की जाने वाली प्रमुख नदियों के पानी की गुणवत्ता में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ.

लॉकडाउन से पहले और बाद में चार नदियों- बैतरनी, महानदी, नर्मदा और पेन्नर स्नान के योग्य प्राथमिक जल गुणवत्ता मानदंडों में 100 प्रतिशत सुधार हुआ.

वहीं, साबरमती और माही नदियों की जल गुणवत्ता क्रमशः 55.6 प्रतिशत और 92.9 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रहा. ब्राह्मणी, ब्रह्मपुत्र, कावेरी, गोदावरी, कृष्णा, तापी और यमुना के जल की गुणवत्ता में सुधार देखा गया.

रिपोर्ट में इस जल गुणवत्ता में सुधार का कारण लॉकडाउन के दौरान लगभग सभी उद्योगों को बंद करने की वजह से औद्योगिक प्रवाह के नदियों में बहने से बंद होने को बताया है. इसके अलावा इस दौरान पूजा सामग्री और कचरे के निपटान से संबंधित कोई मानवीय गतिविधियां नहीं थी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि बाहरी स्नान, कपड़े धोने, वाहन धोने और मवेशियों की धुलाई, तीर्थयात्रा जैसी गतिविधियां और बहुत कम मवेशियों की आवाजाही जैसी मानव गतिविधियों ने भी जल प्रदूषण को कम करने में कोई भूमिका नहीं निभाई.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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