त्रिपुरा: ब्रू आदिवासी संगठनों ने कुछ पुनर्वास स्थलों को बदलने की मांग की

1997 में जातीय संघर्ष के बाद मिज़ोरम से 35,000 से अधिक ब्रू आदिवासियों को त्रिपुरा पलायन करना पड़ा था. इन्हें वापस भेजने के लिए जुलाई 2018 में एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे, लेकिन यह क्रियान्वित नहीं हो सका, क्योंकि अधिकांश लोगों ने मिज़ोरम वापस जाने से इनकार कर दिया था. अब इन्हें त्रिपुरा में ही बसाए जाने का फैसला लिया गया है.

(फाइल फोटोः पीटीआई)

1997 में जातीय संघर्ष के बाद मिज़ोरम से 33,000 से अधिक ब्रू आदिवासियों को त्रिपुरा पलायन करना पड़ा था. इन्हें वापस भेजने के लिए जुलाई 2018 में एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे, लेकिन यह क्रियान्वित नहीं हो सका, क्योंकि अधिकांश लोगों ने मिज़ोरम वापस जाने से इनकार कर दिया था. अब इन्हें त्रिपुरा में ही बसाए जाने का फैसला लिया गया है.

Bru Tribal Woman PTI

अगरतलाः त्रिपुरा में मिजोरम के ब्रू आदिवासियों के स्थायी पुनर्वास के विरोध के बीच चार ब्रू संगठनों ने राज्य सरकार को पत्र लिखा है.

राज्य सरकार को पत्र लिखकर पांच वैकल्पिक पुनर्वास स्थलों का प्रस्ताव दिया गया है और अगरतला से 160 किलोमीटर दूर स्थित कंचनपुर में मौजूदा तीन राहत शिविरों को स्थायी पुनर्वास स्थलों में बदलने का अनुरोध किया गया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल जनवरी में भारत सरकार ने त्रिपुरा में 23 साल पुराने ब्रू-विस्थापन संकट को सुलझाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए ऐलान किया कि अक्टूबर 1997 से छह राहत शिविरों में रह रहे 33,000 से अधिक प्रवासियों का राज्य में स्थायी तौर पर पुनर्वास किया जाएगा.

केंद्र सरकार ने इन प्रवासियों को बस्तियों में बसाने के लिए 600 करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया है.

पुनर्वास प्रक्रिया के हिस्से के रूप में राज्य सरकार ने कानून मंत्री रतनलाल नाथ, मुख्य सचिव मनोज कुमार और राजस्व अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुईं चर्चाओं के बाद 19 सितंबर को ब्रू आदिवासियों के दोबारा पुनर्वास के लिए 15 स्थानों को मंजूरी दी थी.

ब्रू संगठनों ने प्रस्तावित 15 में से 10 स्थानों को स्वीकार कर लिया और सरकार से पुनर्वास प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने का आग्रह किया.

बाकी पांच स्थानों को लेकर भावी सामाजिक, सांस्कृतिक और सुरक्षा संबंधी चिंताओं के प्रति आवाज उठाते हुए चार ब्रू संगठनों- मिजोरम ब्रू डिस्प्लेस्ड पीपुल्स फोरम (एमबीडीपीएफ), मिजोरम ब्रू डिस्प्लेस्ड पीपुल्स कोऑर्डिनेशन कमेटी (एमबीडीपीएफ), ब्रू ट्राइबल डेवलेपमेंट सोसाइटी (बीटीडीएस) और मिजोरम ब्रू इंडिजीनस डेमोक्रेटिक मूवमेंट (एमबीआईडीएम) ने त्रिपुरा के मुख्य सचिव को पत्र है.

पत्र में स्थानीय समुदाय के विरोध, पर्याप्त कृषि स्थान की कमी और अन्य मुद्दों की वजह से उत्तरी त्रिपुरा में काटुचेरा, धलाई जिले में धनुरामारा, उनाकोटी जिले में इचापुर गांव, खोवई में शिकरीबाड़ी और सिपाहीजला जिले में आनंदपुर को बदलने का आग्रह किया.

उन्होंने हाल ही में कंचनपुर नागरिक सुरक्षा मंच और मिजो कन्वेंशन द्वारा चलाए गए आंदोलनों को लेकर भी चिंता जताते हुए कहा कि ये आंदोलन अशांति फैला सकते हैं.

एमबीडीपीएफ के महासचिव ब्रूनो मशा ने कहा, ‘जॉइंट मूवमेंट कमेटी के बैनर तले इन संगठनों द्वारा चलाई गईं ये गतिविधियां पर्याप्त हैं. अगर इन दोनों संगठनों ने कानून अपने हाथ में ले लिया तो त्रिपुरा, मिजोरम और असम में सांप्रदायिक गलतफहमी और संघर्ष बढ़ सकता है.’

इसके अलावा ब्रू आदिवासियों ने नईसिंगपरा, आशापरा और हेजाचेरा के तीन मौजूदा राहत शिविरों को पुनर्वास गांवों में तब्दील करने की मांग की है. इसके साथ ही जाम्पुई पहाड़ियों पर बैथलिंगचिप की चोटी के पास फूल्डुंगसेई गांव सहित पांच वैकल्पिक स्थानों पर विचार करने का भी आग्रह किया है.

उन्होंने कहा, ‘बेथलिंगचिप और सिबराईखोंग में ब्रू विस्थापितों का पुनर्वास त्रिपुरा के क्षेत्र को संरक्षित रखने के लिए अनिवार्य है. अगर त्रिपुरा सरकार मिजोरम से अपनी सीमा की सुरक्षा चाहती है तो यह त्रिपुरा सरकार से हमारा अनुरोध है कि वह तय स्थानों पर 500 परिवारों का पुनर्वास की व्यवस्था करे.’

मालूम हो कि मिजोरम के ब्रू समुदाय के लोग 1997 में मिजो समुदाय के लोगों के साथ हुए भूमि विवाद के बाद शुरू हुई जातीय हिंसा के बाद से त्रिपुरा पलायन करने लगे थे. उस वक्त समुदाय के ब्रू समुदाय के तकरीबन 37 हजार लोग मिजोरम छोड़कर त्रिपुरा के मामित, कोलासिब और लुंगलेई जिलों में भाग आए थे. इनमें से लगभग 5,000 नौ चरणों में वापस लौटे थे, इसके बावजूद कई ने 2009 में उत्तरी त्रिपुरा में शरण मांगी थी.

ये लोग पिछले 23 सालों से उत्तर त्रिपुरा जिले के कंचनपुर और पानीसागर उप-संभागों के छह शिविरों- नैयसंगपुरा, आशापारा, हजाचेर्रा, हमसापारा, कासकऊ और खाकचांग में रहे रहे हैं.

ब्रू और बहुसंख्यक मिज़ो समुदाय के लोगों की बीच हुई यह हिंसा इनके पलायन का कारण बना था. इस तनाव की नींव 1995 में तब पड़ी, जब शक्तिशाली यंग मिज़ो एसोसिएशन और मिज़ो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने राज्य की चुनावी भागीदारी में ब्रू समुदाय के लोगों की मौजूदगी का विरोध किया. इन संगठनों का कहना था कि ब्रू समुदाय के लोग राज्य के नहीं हैं.

इस तनाव ने ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट (बीएनएलएफ) और राजनीतिक संगठन ब्रू नेशनल यूनियन (बीएनयू) को जन्म दिया, जिसने राज्य के चकमा समुदाय की तरह एक स्वायत्त जिले की मांग की.

इसके बाद 21 अक्टूबर 1996 को बीएनएलफए ने एक मिजो अधिकारी की हत्या कर दी, जिसके बाद से दोनों समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़क उठी.

दंगे के दौरान ब्रू समुदाय के लोगों को पड़ोसी उत्तरी त्रिपुरा की ओर धकेलते हुए उनके बहुत सारे गांवों को जला दिया गया था. इसके बाद से ही इस समुदाय के लोग त्रिपुरा के कंचनपुर और पानीसागर उप-संभागों में बने राहत शिविरों में रह रहे हैं.

आदिवासी समुदाय के इन लोगों को मिजोरम वापस भेजने के लिए जुलाई 2018 में एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे, लेकिन यह क्रियान्वित नहीं हो सका क्योंकि अधिकतर विस्थापित लोगों ने मिजोरम वापस जाने से इनकार कर दिया था.

इसी साल जनवरी में उनके स्थायी पुनर्वास के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुआ. इसके तहत फैसला किया गया है कि मिजोरम से विस्थापित हुए 30 हज़ार से अधिक ब्रू आदिवासी त्रिपुरा में ही स्थायी रूप से बसाए जाएंगे.

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