बलात्कार के मामले इतने अधिक आ रहे हैं, लगता ही नहीं कोई सरकार भी है: महिला अधिकार कार्यकर्ता

महिला अधिकार कार्यकर्ता और सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी का कहना है कि महिला आयोग एक तरीके से सरकारी संरक्षण का अड्डा बन गया है. जिसे कहीं नहीं ‘एडजस्ट’ कर पा रहे हैं, उनको बैठा दिया जाता है. यहां पर महिलाओं के प्रति कोई संजीदगी नहीं है. अगर होती तो आज पूरा आयोग हाथरस में दिखना चाहिए था.

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रंजना कुमारी. (फोटो साभार: फेसबुक)

महिला अधिकार कार्यकर्ता और सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी का कहना है कि महिला आयोग एक तरीके से सरकारी संरक्षण का अड्डा बन गया है. जिसे कहीं नहीं ‘एडजस्ट’ कर पा रहे हैं, उनको बैठा दिया जाता है. यहां पर महिलाओं के प्रति कोई संजीदगी नहीं है. अगर होती तो आज पूरा आयोग हाथरस में दिखना चाहिए था.

रंजना कुमारी. (फोटो साभार: फेसबुक)
रंजना कुमारी. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: महिला अधिकार कार्यकर्ता और ‘सेंटर फॉर सोशल रिसर्च’ की निदेशक रंजना कुमारी का कहना है कि देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध खासकर बलात्कार के इतने मामले आ रहे हैं कि लगता ही नहीं कहीं कोई सरकार भी है.

वह कहती हैं कि जब तक महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकारें और पुलिस पूरी संजीदगी से काम नहीं करेंगी, स्थितियां ज्यों की त्यों बनी रहेंगी. महिलाओं के खिलाफ देश में बढ़ रहे अपराध के मामलों पर उनसे बातचीत.

ताजा आंकड़े बताते हैं कि देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. एनसीआरबी के मुताबिक 2019 में प्रतिदिन औसतन 87 बलात्कार की घटनाएं दर्ज हुईं. इस स्थिति को आप कैसे देखती हैं?

अब तो बलात्कार के मामले इतने अधिक आ रहे हैं कि ऐसा लगता है कि न तो कहीं कोई सरकार है, न ही कोई पुलिस है और न ही कोई महिलाओं की देखरेख करने वाला है.

राज्य कोई भी हो और वहां शासन किसी का भी हो, जिस तरह की व्यवस्था शासन और प्रशासन की होनी चाहिए थी, वह देखने को नहीं मिल रही है. जिस तरह से सरकारों को सारी तैयारी रखनी चाहिए थी, खासकर कोविड-19 के दौरान, वह भी देखने को नहीं मिली.

महिलाओं के खिलाफ हिंसा लगातार बढ़ ही रही है और खुद ताजा आंकड़े इसकी गवाही देते हैं.

हाल के दिनों में हुई बलात्कार की कुछ घटनाओं ने देश को हिला कर रख दिया. राजनीति भी जमकर हो रही है. क्या कहेंगी आप?

हाथरस का मामला ही देखिए, आठ दिन लग जाते हैं प्राथमिकी दर्ज करने में और उसके बाद जो घटना आगे घटती है वह सारे देश को पता है. लड़की की मृत्यु होती है. उसके बाद मां-बाप को उसका चेहरा भी देखने को नहीं मिलता है और उसकी लाश पुलिस जला देती है.

महिला के साथ अत्याचार हो और सरकार उसके साथ खड़ी हो, पुलिस उसका सहयोग करे तो संदेश जाता है कि महिलाओं पर अपराध बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, लेकिन यह हो नहीं रहा है, बल्कि अपराधियों को बचाने और मामले को ढंकने की कोशिश में सरकार लगी हुई है. खासकर, उत्तर प्रदेश में.

चाहे किसी भी पार्टी का शासन हो, जब तक महिलाओं की सुरक्षा के लिए पुलिस पूरी संजीदगी से काम नहीं करेगी, जिस तरीके से सरकार को करना चाहिए वैसे नहीं करेगी तो यही स्थिति रहेगी.

महिलाएं जो मंत्री हैं या तमाम अन्य पदों पर बैठी हैं या चाहे राष्ट्रीय महिला आयोग हो, उनका रुख देखिए जैसे देश में कुछ हो ही नहीं रहा है.

आठ साल पहले भी देश में ऐसी एक घटना हुई थी, जिसके बाद कई उपाय किए गए. निर्भया फंड भी बनाया गया था लेकिन महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी नहीं आई. क्या कहेंगी आप?

स्थिति बद से बदतर हो गई है अब तो. निर्भया से भी बुरा हाल है. रही बात निर्भया फंड का तो उसका दुरुपयोग ही हुआ है सदुपयोग नहीं. निर्भया फंड के सिलसिले में जब हम रेल मंत्री से मिलने गए थे तो तत्कालीन रेल मंत्री ने कहा था कि हमने स्टेशन पर कैमरा लगा दिया है निर्भया फंड से.

हमारे पास उनका यह बयान रिकॉर्ड में है. बाद में भी उस फंड का दुरुपयोग ही हुआ है, कोई सदुपयोग नहीं हुआ. निर्भया फंड को बढ़ाने की जगह धीरे-धीरे उसको समाप्त किया जा रहा है.

किसी तरह की सोच ही नहीं है. ये नहीं चाहते हैं कि महिलाएं सुरक्षित हों. अगर यह चाह रहे होते तो कोई ऐसा कारण नहीं है की स्थिति न सुधरे.

दुनिया के बड़े-बड़े शहरों में बलात्कार की घटनाएं बहुत ज्यादा घटती थीं, लेकिन वहां की सरकारों ने स्थितियों को नियंत्रित किया. महिलाओं को सुरक्षा दी. लेकिन हमें नहीं लगता कि भारत में चाहे प्रदेश की सरकारें हों या देश की सरकार हो, इस बारे में उन्हें तनिक भी परवाह है.

राष्ट्रीय महिला आयोग भी है देश में. राज्यों में भी ऐसे आयोग हैं. इनकी भूमिका को आप कैसे देखती हैं?

महिला आयोग का जब गठन हो रहा था तभी हम लोगों ने कहा था कि एक ‘इलेक्टोरल कोलाज’ बनाया जाए और जो महिलाएं महिला आंदोलन से जुड़ी हैं या महिला अधिकारों के संघर्ष में रही हैं, उनको महिला आयोग में रखा जाना चाहिए. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

यह एक तरीके से सरकारी संरक्षण का अड्डा बन गया है. जिसे कहीं नहीं ‘एडजस्ट’ कर पा रहे हैं, उनको बैठा दिया जाता है. महिला आयोग ‘पॉलिटिकल पार्किंग लॉट’ है. यहां पर महिलाओं के प्रति कोई संजीदगी नहीं है. अगर होती तो आज पूरा महिला आयोग हाथरस में दिखना चाहिए था.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से उन्हें मिलना चाहिए था. दलित बच्ची के साथ जो हुआ है और जिस तरीके से उसके बाद स्थिति बन रही है कौन उनके साथ खड़ा है? महिला आयोग को खड़ा होना चाहिए था.

सम्मान के साथ जीने के महिलाओं के हक को सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए?

सबसे ज्यादा आज अगर किसी के बारे में चिंता करनी चाहिए तो वे हैं दलित, जनजाति और अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाएं. वे सबसे ज्यादा कमजोर हैं.

आज हाथरस की घटना को ही देख लीजिए. यह इसलिए हुआ क्योंकि वह दलित की बेटी थी. मुझे लगता है कि परिवारों को सामने आना चाहिए. समाज को सामने आना चाहिए. लड़कियों को स्वयं आगे आना पड़ेगा.

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