21 रिपोर्टों पर कार्रवाई न होने से नाराज़ गोवा के पूर्व लोकायुक्त ने कहा- पद ख़त्म कर देना चाहिए

बीते दिनों गोवा के लोकायुक्त पद से रिटायर हुए जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा ने उनके साढ़े चार साल के कार्यकाल में जिन लोक अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की सिफारिश की, उनमें पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर मौजूदा विधायक भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि उनके पास अपने आदेशों को लागू करने की शक्तियां नहीं थीं.

जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा. (फोटो साभार: ट्विटर)

बीते दिनों गोवा के लोकायुक्त पद से रिटायर हुए जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा ने उनके साढ़े चार साल के कार्यकाल में जिन लोक अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की सिफारिश की, उनमें पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर मौजूदा विधायक भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि उनके पास अपने आदेशों को लागू करने की शक्तियां नहीं थीं.

जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा. (फोटो साभार: ट्विटर)
जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा. (फोटो साभार: ट्विटर)

पणजी: बीते 16 सितंबर को गोवा के लोकायुक्त के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा (सेवानिवृत्त) ने राज्य सरकार के व्यवहार पर असंतुष्टि जताते हुए सोमवार को कहा कि लोकायुक्त के रूप में उनके करीब साढ़े चार साल के कार्यकाल के दौरान लोक अधिकारियों के खिलाफ उन्होंने जो 21 रिपोर्टें सौंपी राज्य सरकार ने उनमें से किसी एक पर भी कार्रवाई नहीं की.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस मिश्रा ने कहा, ‘यदि आप मुझसे एक वाक्य में गोवा में लोकायुक्त के रूप में इन शिकायतों से निपटने का मेरा अनुभव पूछते हैं तो मैं कहूंगा कि उन्हें लोकायुक्त की संस्था को खत्म कर देना चाहिए. ’

उन्होंने कहा, ‘जनता के पैसे को बिना किसी काम के खर्च क्यों किया जाना चाहिए? यदि लोकायुक्त अधिनियम को इस तरह की ताकत के साथ कूड़ेदान में डाला जा रहा है, तो लोकायुक्त को समाप्त करना बेहतर है.’

73 वर्षीय मिश्रा ने 18 मार्च, 2016 से 16 सितंबर, 2020 तक गोवा के लोकायुक्त के पद पर काम किया. उन्होंने जिन लोक अधिकारियों के खिलाफ उन्होंने कार्रवाई की सिफारिश की उनमें पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर मौजूदा विधायक तक शामिल हैं.

उनके कार्यकाल में लोकायुक्त के कार्यालय को 191 मामले प्राप्त हुए, जिनमें से 133 का निस्तारण किया गया. 58 लंबित मामलों में 21 ऐसे हैं जिनमें उन्होंने सरकार को रिपोर्ट भेजी, लेकिन कार्रवाई किए जाने की रिपोर्टें अब तक नहीं मिली हैं.

उनकी सिफारिशों में अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करना, स्थानांतरण, एसीबी द्वारा विस्तृत जांच या एक निर्वाचित कार्यवाहक को पद संभालने के लिए अयोग्य घोषित करना शामिल है.

मिश्रा ने कहा कि मौजूदा स्वरूप में लोकायुक्त अधिनियम के पास कार्रवाई की कोई शक्ति नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘इसमें अभियोजन की वह शक्तियां नहीं हैं जो कर्नाटक और केरल अधिनियमों के पास हैं और न ही लोकायुक्त के आदेशों की अवमानना के लिए इसमें कोई प्रावधान नहीं है.’

मिश्रा ने कहा, ‘सरकार ने कभी किसी रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं की. मैं हमेशा असहाय था और मैं उन लोगों को यह बताता था जो अपनी शिकायतों के साथ आते थे. मेरे पास अपने खुद के आदेशों को लागू करने की कोई शक्तियां नहीं थीं.’

मिश्रा ने कहा कि कई मामलों में उन्होंने ललिता कुमारी मामले में फैसले का इस्तेमाल किया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि धारा 154 सीआरपीसी (संज्ञेय अपराध) के तहत प्राथमिकी दर्ज करना अनिवार्य है.

उन्होंने कहा कि कई ऐसे मामले लोकायुक्त के पास आ रहे थे जहां पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं कर रही थी. वे कहते रहे कि प्राथमिक जांच के बाद ही एफआईआर दर्ज की जाएगी, मुझे पता है कि कुछ भी नहीं बदलने वाला है. मुझे कोई उम्मीद नहीं है. मुझे पता है कि वे किसी भी रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं करेंगे.

मिश्रा ने विधायक पांडुरंग मडिक्कर के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के लिए एसीबी जांच और प्रवासियों के लिए श्रम विभाग द्वारा की गई राहत योजनाओं का लाभ सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा हड़पने के आरोपों में जांच की सिफारिश की थी. एक अन्य मामले में उन्होंने एक कैबिनेट मंत्री को पद के लिए अनुपयुक्त पाया था.

जस्टिस मिश्रा ने मडिक्कर की संपत्ति की जांच मामले में जिम्मेदारी से बचने के लिए मनोहर पर्रिकर को भी नहीं छोड़ा क्योंकि मडिक्कर मंत्री और सत्ताधारी पार्टी से जुड़े विधायक थे.

जस्टिस मिश्रा की सेवानिवृत्ति की पूर्व संध्या उनका सुरक्षा प्रोटोकॉल हटा लिया गया था. मिश्रा ने कहा कि यह एक चौंकाने वाला कदम था जिसे वह अपनी रिपोर्टों के लिए आई एक अशिष्ट प्रतिक्रिया के रूप में देखते हैें.

सोमवार को पूर्व लोकायुक्त ने बिना किसी पारंपरिक विदाई समारोह के अपनी पत्नी भारती के साथ आधिकारिक आवास छोड़ दिया.

मिश्रा की सबसे सख्त रिपोर्टों में से एक वह थी, जिसमें उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पार्सीकर, पूर्व खनन सचिव पवन कुमार सैन और खान एवं भूविज्ञान निदेशक प्रसन्ना आचार्य को शक्तियों के दुरुपयोग का दोषी पाया था.

उन्होंने 12 जनवरी 2015 को 31 फाइलों को अनिवार्य जांच के बिना जल्दबाजी में मंजूरी दे दी थी. उसी दिन से लीज को केवल नीलामी के माध्यम से उपलब्ध कराने का अध्यादेश प्रभावी हो रहा था.

इस साल की शुरुआत में मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा था कि उन्होंने मिश्रा की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है. लोकायुक्त ने अधिनियम की धारा 16 (3) के तहत राज्यपाल सत्यपाल मलिक को एक विशेष रिपोर्ट भेजी थी.

मिश्रा ने कहा, ‘उन्होंने अधिनियम को पढ़े बिना राय दिया और मैंने अनुभागों और प्रावधानों का विवरण फिर से भेजा था.’

दोबारा भेजी गई रिपोर्ट में मिश्रा ने कहा था, ‘2 जनवरी, 2015 को जो कुछ भी हुआ उसमें केवल धृतराष्ट्र या गांधारी ही कुछ भी भयावह नहीं देख पाएंगे और ऐसा लगता है कि इन दिनों मेरा भारत महान में धृतराष्ट्र या गांधारी की कोई कमी नहीं है. यह भी लगता है कि ‘उचित’ सलाह देने में शकुनि की कोई कमी नहीं है. ऐसा लगता है कि सार्वजनिक प्रशासनिक प्रणाली में पुत्र मोह की जगह पार्टी मोह या अन्य प्रकार के मोह ने ले ली है और भ्रष्टाचार खत्म करने की बातें केवल छतों से चिल्लाने के लिए हैं जबकि वास्तविक में खात्मे का मौका आता है, तो चुप्पी साध ली जाती है.’

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