लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को रोका जा सकता था

कोरोना महामारी से बचने के लिए हुए लॉकडाउन के दौरान विभिन्न सेवाओं के साथ स्वास्थ्य सेवाएं भी बुरी तरह प्रभावित हुई थीं, लेकिन जानकारों का मानना है कि अगर राज्य सरकारें चाहतीं, तो इन सेवाओं में हुई गिरावट को रोका जा सकता था.

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(फोटो: पीटीआई)

कोरोना महामारी से बचने के लिए हुए लॉकडाउन के दौरान विभिन्न सेवाओं के साथ स्वास्थ्य सेवाएं भी बुरी तरह प्रभावित हुई थीं, लेकिन जानकारों का मानना है कि अगर राज्य सरकारें चाहतीं, तो इन सेवाओं में हुई गिरावट को रोका जा सकता था.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

अप्रैल-मई 2020 में राष्ट्रीय लॉकडाउन से लोगों के रोजगार और आय पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा.

उदाहरण के लिए, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में सेंटर फॉर इकोनॉमिक परफॉरमेंस के द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग आधे शहरी कामगारों ने उस अवधि के दौरान कोई आय अर्जित नहीं की.

कई सार्वजनिक सेवाएं भी कम या बंद कर दी गईं. इसमें नियमित स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं. लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं में भारी व्यवधान के स्पष्ट सबूत भारत सरकार के स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) में उपलब्ध हैं.

इसमें से कुछ जानकारी पहले ही रुक्मिणी एस द्वारा हाल ही में एक लेख में प्रस्तुत किया गया है. लेख में यह चर्चा से छूट गया है कि विभिन्न राज्यों के बीच स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान अत्यधिक असमान रहा है.

स्वास्थ्य सेवा के प्रति प्रतिबद्धता के अपेक्षाकृत अच्छे रिकॉर्ड वाले राज्यों ने काफी हद तक लॉकडाउन के दौरान बुनियादी सेवाएं प्रदान करना जारी रखा. दूसरों राज्यों ने स्वास्थ्य सेवाओं को पूर्णतः ठहराव तक आने की अनुमति दी.

दूसरे शब्दों में, लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं में गिरावट रोका जा सकता था- यह गिरावट उस हद तक ही हुई, जहां तक राज्य सरकारों ने ऐसा होने दिया.

देश भर के स्वास्थ्य सेवा केंद्रों से हर महीने एचएमआईएस के आंकड़े एकत्र किए जाते हैं. वे उदाहरण के लिए प्रसवपूर्व देखभाल, प्रसव, टीकाकरण, बाह्य-रोगी उपस्थिति, टीबी उपचार, सर्जरी और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित संकेतकों की एक लंबी सूची को कवर करते हैं.

अंतर-राज्यीय तुलना के उद्देश्य से, हमने आठ बुनियादी स्वास्थ्य-सेवा संकेतकों का चयन किया: (1) प्रसवपूर्व देखभाल (एएनसी) के लिए पंजीकृत गर्भवती महिलाओं की संख्या; (2) संस्थागत प्रसव; (3) बाल टीकाकरण (बीसीजी); (4) डॉट्स के लिए पंजीकृत रोगियों की संख्या; (5) मधुमेह बाह्य-रोगियों का उपचार; (6) बाह्य-रोगी उपस्थिति; (7) आधी रात को इन-पेशेंट हेडकाउंट; (8) मेजर ऑपरेशन. हम इन्हें ‘बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं’ या संक्षिप्त बुनियादी सेवाएं कहेंगे.

प्रत्येक बुनियादी सेवा के लिए, हम लॉकडाउन के दौरान दो रेसिलिएंस (resilience) संकेतकों को लिया है: अप्रैल-मई 2020 औसत, जनवरी-फरवरी 2020 औसत के अनुपात में, और अप्रैल-मई 2020 औसत, अप्रैल-मई 2019 औसत के अनुपात में.

तालिका 1 अखिल भारतीय स्तर पर सेवा-विशिष्ट रेसिलिएंस संकेतकों को दर्शाता है. संकेतकों के दोनों सेट लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं में भारी गिरावट दर्शाते हैं, एएनसी पंजीकरण में 20% से लेकर इन-पेशेंट हेडकाउंट और मेजर ऑपरेशन में 60% तक गिरावट दिखता है.

Decline of Health Services During Lockdown Table 1 by The Wire on Scribd

लॉकडाउन के दौरान बाह्य-रोगी उपस्थिति सामान्य स्तर का सिर्फ आधा था– यह तथ्य स्थिति का एक का बेहतर मूल्यांकन दर्शाता है.

दो रेसिलिएंस संकेतकों में से एक को प्राथमिकता देने का कोई मजबूत कारण नहीं है. यदि विशेष मौसमी प्रभावों के बिना स्वास्थ्य सेवाओं में समय के साथ लगातार सुधार होता है, तो पहला संकेतक अधिक जानकारीपूर्ण होगा.

यदि स्पष्ट मौसमी प्रभाव हैं, तो दूसरा बेहतर हो सकता है. चूंकि तस्वीर दोनों रेसिलिएंस संकेतकों के लिए कमोबेश समान है, इसलिए हम मुख्य रूप से अब पहले (अप्रैल-मई 2020 की तुलना जनवरी-फरवरी 2020) पर ध्यान केंद्रित करते हैं.

प्रत्येक बुनियादी सेवा के लिए रेसिलिएंस संकेतक सभी प्रमुख राज्यों के राज्य-विशिष्ट मान्य परिशिष्ट में दिए गए हैं. प्रत्येक राज्य के लिए, हम एक सारांश रेसिलिएंस संकेतक (परिशिष्ट, अंतिम स्तंभ) के रूप में सेवा-विशिष्ट रेसिलिएंस संकेतकों का औसत लेते हैं.

यह सारांश संकेतक लॉकडाउन पूर्व महीनों की तुलना में लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं की गतिविधि के औसत स्तर को समेकित करता है.

तालिका 2 के पहले स्तंभ में प्रमुख राज्यों को सारांश रेसिलिएंस संकेतक के घटते क्रम में प्रस्तुत किया गया है. दूसरा स्तंभ इसी अनुरूप अप्रैल-मई 2020 के आंकड़ों की तुलना अप्रैल-मई 2019 से की गई है.

Decline of Health Services Across States During Lockdown Table 2 by The Wire on Scribd


शुरुआत में पहले स्तंभ पर ध्यान केंद्रित करने पर, स्वास्थ्य सेवाओं के रेसिलिएंस के मामले में शीर्ष पांच राज्यों में तीन राज्य शामिल हैं जो सामान्य रूप से अपेक्षाकृत अच्छी सामाजिक सेवाओं और विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जाने जाते हैं: केरल, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश.

कुछ पाठकों को शीर्ष पांच में ओडिशा की उपस्थिति से आश्चर्य हो सकता है, लेकिन हाल के वर्षों में वहां स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं में सुधार के लिए निरंतर प्रयासों के सबूत के अनुरूप है. इस सारांश सूचक के आधार पर तेलंगाना अव्वल है.

पैमाने के निचले पायदान पर हम जिन तीन राज्यों को पाते हैं वे सार्वजनिक सेवाओं में निराशाजनक प्रदर्शन के लिए जाने जाते हैं: बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश.

इन राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएं न सिर्फ हमेशा से ही कमजोर रही हैं बल्कि वे लॉकडाउन के दौरान और भी अधिक बदहाल हुई हैं. प्रत्येक मामले में औसत गिरावट 50% से अधिक थी और उत्तर प्रदेश में 70% तक की गिरावट देखी गई.

अप्रैल-मई में, बाह्य-रोगी उपस्थिति झारखंड में लॉकडाउन पूर्व स्तर का सिर्फ 37%, बिहार में 24% और उत्तर प्रदेश में 17% (परिशिष्ट देखें) था. स्वास्थ्य सेवाओं के हफ़्तों तक बंद होने की स्थिति में गरीब लोग बीमार होने पर जाने के लिए कोई विकल्प नहीं था.

Decline of Health Services During Lockdown Table 3 by The Wire on Scribd

सामाजिक नीति के सामान्य ‘अग्रणी और फिसड्डी’ के बीच यह तीक्ष्ण विसमता इस तथ्य पर प्रकाश डालता है कि राष्ट्रीय लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं की गिरावट काफी हद तक रोका जा सकता था.

बेहतर संगठित राज्य, समाज कल्याण के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता के साथ, बुनियादी सेवाओं को काफी हद तक सुचारू रखने में कामयाब रहे.

राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य-सेवा गतिविधि संकेतकों की तेज गिरावट काफी हद तक तुलनात्मक रूप से गैर-जिम्मेदाराना राज्यों में देखा जा सकता है जहां संकट के समय में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं को बनाए रखने के लिए बहुत कम प्रयास किए गए.

यह जरूर सच है कि बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश भारत के सबसे गरीब राज्यों में से हैं, जिससे उनके लिए कोविड-19 जैसे संकट को सामना करना और मुश्किल हो गया.

लेकिन यह ओडिशा और छत्तीसगढ़ पर भी लागू होता है. इन दोनों राज्यों में लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं में पतन का अनुभव नहीं हुआ.  वास्तव में दोनों राज्यों ने काफी अच्छा किया, जैसा कि तालिका 2 से पता चलता है.

छत्तीसगढ़ और ओडिशा अन्य राज्यों की तुलना में और भी बेहतर हैं. जब हम अप्रैल-मई 2020 में स्थिति की तुलना जनवरी-फरवरी 2020 (तालिका 2, दूसरा स्तंभ) के बजाय अप्रैल-मई 2019 से करते हैं.

इस बदली हुई बेसलाइन के साथ, अंतर राज्यीय विषमता पहले की भांति ही बने हुए हैं. उदाहरण के लिए, शीर्ष पांच और निचले तीन राज्य पहले की तरह ही हैं, सिर्फ छत्तीसगढ़ ने शीर्ष पांच में तमिलनाडु की जगह ली है.

बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं में हुई गिरावट में मातृत्व से जुड़ी सेवाओं लापरवाही विशेष रूप से स्पष्ट है.

आम तौर पर वे लॉकडाउन के दौरान सबसे कम प्रभावित स्वास्थ्य सेवाओं में से थे. उदाहरण के लिए, लगभग सभी राज्यों ने अप्रैल और मई 2020 में एएनसी पंजीकरण सामान्य स्तर के करीब बनाए रखा (परिशिष्ट देखें).

बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में हालांकि एएनसी पंजीकरण के साथ-साथ संस्थागत प्रसव में भी बड़ी गिरावट आई. ऐसा लगता है कि इन क्षेत्रों में गर्भवती महिलाएं ज्यादा मायने नहीं रखती.

अंतिम विषमता चित्र 1 में प्रदर्शित है, जो इस लेख में चर्चा किए गए बुनियादी तर्क को भी प्रदर्शित करता है. केरल में लॉकडाउन के दौरान संस्थागत प्रसव सामान्य स्तर के करीब जारी रहा.

इसके विपरीत बिहार में संस्थागत प्रसवों की संख्या ढह गई: अप्रैल-मई 2019 के आधार पर 30%, और जनवरी-फरवरी 2020 के आधार पर 47%.

Table 4

उम्मीद के अनुसार ज्यादातर राज्यों में लॉकडाउन के तुरंत बाद नियमित स्वास्थ्य सेवाओं में तेजी से सुधार हुआ.

हाल के महीनों का एचएमआईएस डेटा अभी सार्वजनिक पटल पर रखा जाना है, इसलिए यह बताना अभी जल्दबाजी होगी. लेकिन फिर भी यदि व्यवधान अल्पकालिक था, यह कई रोगियों को जो उस समय तत्काल देखभाल की जरूरत थी, उनके लिए स्थाई नुकसान के रूप में परिवर्तित हो सकता है.

(ज्यां द्रेज रांची विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में विज़िटिंग प्रोफेसर हैं. विपुल पैकरा स्वतंत्र शोधार्थी हैं और झारखंड में भोजन का अधिकार अभियान से जुड़े हुए हैं.)