जनहित याचिका में दावा, सरकारी स्कूलों के 10वीं-12वीं के छात्र सीबीएसई परीक्षा फीस नहीं दे सकते

बृहस्पतिवार को सीबीएसई के 10वीं और 12वीं के वि​द्यार्थियों की फ़ीस माफ़ी की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल की गई है. याचिका में अनुरोध किया गया है कि या तो सीबीएसई को फ़ीस माफ़ करने का निर्देश दिया जाए या​ फिर केंद्र को पीएम केयर्स फंड से इस राशि का भुगतान करना चाहिए.

/
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

बृहस्पतिवार को सीबीएसई के 10वीं और 12वीं के विद्यार्थियों की फ़ीस माफ़ी की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल की गई है. याचिका में अनुरोध किया गया है कि या तो सीबीएसई को फ़ीस माफ़ करने का निर्देश दिया जाए या फिर केंद्र को पीएम केयर्स फंड से इस राशि का भुगतान करना चाहिए.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को उस जनहित याचिका पर केंद्र, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और आप सरकार से जवाब मांगा, जिसमें कहा गया है कि सरकारी स्कूलों में कक्षा 10वीं और 12वीं में पढ़ने वाले गरीब बच्चे बोर्ड परीक्षा फीस वहन नहीं कर पाएंगे.

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस प्रतीक जालान की एक पीठ ने शिक्षा मंत्रालय, सीबीएसई और दिल्ली सरकार को एक सोसाइटी द्वारा दायर एक अर्जी पर नोटिस जारी किया और उनका जवाब मांगा.

अर्जी में दलील दी गई है कि बोर्ड ने 2020-2021 में 10वीं और 12वीं की परीक्षा फीस ‘मनमाने ढंग से’ से साल 2017-18 की तुलना में दोगुना और साल 2014-15 की तुलना में कई गुना तक बढ़ा दी. यह तब है जब सभी महामारी के चलते वित्तीय तौर पर प्रभावित हैं.

अभिभावकों और शिक्षाविदों की एक पंजीकृत सोसाइटी ‘पैरेंट्स फोरम फॉर मीनिंगफुल एजुकेशन’ की ओर से दायर अर्जी में कहा गया है कि 2019-20 में दिल्ली सरकार ने अपने स्कूलों में 10वीं और 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों का परीक्षा शुल्क वहन किया था और अभिभावकों को आश्वासन दिया कि भविष्य के लिए इस मामले को सुलझाया जाएगा.

बोर्ड परीक्षा फीस माफ करने के लिए एक एनजीओ द्वारा इसी तरह एक अन्य जनहित याचिका में दिल्ली सरकार ने 28 सितंबर को अदालत को बताया था कि वह इस वर्ष परीक्षा फीस वहन नहीं कर सकती जैसा उसने पिछले वर्ष किया था, क्योंकि राशि 100 करोड़ रुपये से अधिक है.

अधिवक्ताओं पीएस शारदा और क्षितिज शारदा के माध्यम से दायर की गई वर्तमान अर्जी में सोसाइटी ने कहा है कि सीबीएसई 10वीं और 12वीं कक्षा के लिए बोर्ड परीक्षा शुल्क के रूप में 1,500 रुपये ले रहा था और विज्ञान वर्ग के छात्रों के लिए यह राशि 2,400 रुपये तक जाती है, क्योंकि उनमें प्रैक्टिकल भी हैं.

याचिका में कहा गया है कि मौजूदा स्थिति में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावक हो सकता है कि एक बार में इतनी राशि का भुगतान करने में सक्षम नहीं हों.

याचिका में दावा किया गया, ‘यह बात सामने आयी है कि प्रतिवादी नंबर 2 (दिल्ली सरकार) न केवल पिछले वर्ष के वादे के अनुसार इस मामले को सुलझाने में विफल रही है, बल्कि इस साल इस फीस दायित्व को पूरा करने से इनकार कर दिया और ऐसा करके उसने अपने स्कूलों में 10वीं और 12वीं कक्षा के लाखों बच्चों को छोड़ दिया.’

इसमें दलील दी गई है कि दिल्ली सरकार इस वर्ष मामले को सुलझाने में विफल रहने पर ‘पीछे हटते हुए बच्चों को मंझधार में नहीं छोड़ सकती क्योंकि पिछले साल 24 मार्च से लॉकडाउन होने से इस साल पिछले साल की तुलना में जमीनी स्थिति और खराब है.’

सुनवाई के दौरान सोसाइटी के वकील ने पीठ से कहा कि अगर दिल्ली सरकार आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए पानी के बिल माफ कर सकती है, तो वह उस वर्ग से आने वाले छात्रों की परीक्षा फीस के भुगतान के लिए कुछ कर सकती है.

याचिका में आग्रह किया गया है कि दिल्ली सरकार को इस मुद्दे को ‘स्थायी रूप से हल करने’ और उन छात्रों के हितों की भी रक्षा करने के लिए निर्देशित किया जाए जो बोर्ड परीक्षा देने के योग्य हैं, लेकिन इसके लिए शुल्क का भुगतान करने में असमर्थ हैं.

साथ ही याचिका में दिल्ली सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में छात्रों के लिए सीबीएसई द्वारा परीक्षा शुल्क के निर्धारण की जांच पड़ताल करने और यह सुनिश्चित करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित करने का भी अनुरोध किया गया, ताकि ऐसे बच्चों को ‘सीखने का न्यूनतम माहौल और बोर्ड परीक्षा में सफलता के लिए समान अवसर मिले.’

फीस वृद्धि के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दाखिल

कोरोना वायरस महामारी और इसके परिणामस्वरूप माता-पिता की वित्तीय समस्याओं के मद्देनजर वर्तमान शैक्षणिक वर्ष में कक्षा 10वीं और 12वीं के छात्रों की परीक्षा फीस माफ करने का निर्देश सीबीएसई और दिल्ली सरकार को देने के लिए बृहस्पतिवार को एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.

सोशल ज्यूरिस्ट नाम के एक एनजीओ की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण अभिभावकों की आमदनी या तो खत्म हो गई है या फिर इतनी कम हो गई है कि अपने परिवार के लिए दो वक्त का खाना जुटा पाना भी उनके लिए मुश्किल हो गया है.

यह याचिका दिल्ली हाईकोर्ट के 28 सितंबर को दिए गए एक आदेश के खिलाफ दाखिल किया गया जिसमें अदालत ने दिल्ली सरकार और सीबीएसई को फीस माफी से संबंधित एक जनहित याचिका पर कानून, नियम और सरकारी नीतियों के आधार पर तीन हफ्तों में निर्णय लेने का आदेश दिया है.

अधिवक्ता अशोक अग्रवाल की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि या तो सीबीएसई को फीस माफ करने का निर्देश दिया जाए या फिर केंद्र को पीएम केयर्स फंड से इस राशि का भुगतान करना चाहिए. दिल्ली के छात्रों के लिए यही निर्देश दिल्ली सरकार को देने का अनुरोध किया गया है.

याचिका में कहा गया है, ‘यह बताया जा सकता है कि साल 2018-19 तक सीबीएसई ने 10वीं और 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए बहुत ही न्यूनतम फीस रखी थी, लेकिन साल 2019-20 में बोर्ड ने इसे कई गुना तक बढ़ा दिया. वर्तमान शैक्षणिक सत्र 2020-21 में सीबीएसई ने 10वीं के विद्यार्थियों से 1500 से 1800 रुपये और 12वीं के विद्यार्थियों से 1500 से 2400 रुपये परीक्षा फीस (विषय और प्रेक्टिकल के आधार पर) की मांग की है.’

याचिका में कहा गया है कि पिछले शैक्षणिक सत्र में दिल्ली सरकार ने इन विद्यार्थियों की फीस भर दी थी, लेकिन साल 2020-21 में वित्तीय हालत खराब होने का हवाला देकर उसने फीस का भुगतान करने से मना कर दिया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq