मीडिया की निष्पक्ष और सही रिपोर्टिंग पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता: जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने श्रीनगर में एक अख़बार के पत्रकार पर कथित फ़र्ज़ी ख़बर लिखने के मामले में दर्ज एफआईआर को ख़ारिज करते हुए कहा कि किसी ऐसी घटना के बारे में बताना, जिसे सच मानने के लिए रिपोर्टर के पास वाजिब वजह है, अपराध नहीं हो सकता.

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जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने श्रीनगर में एक अख़बार के पत्रकार पर कथित फ़र्ज़ी ख़बर लिखने के मामले में दर्ज एफआईआर को ख़ारिज करते हुए कहा कि किसी ऐसी घटना के बारे में बताना, जिसे सच मानने के लिए रिपोर्टर के पास वाजिब वजह है, अपराध नहीं हो सकता.

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)
जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

श्रीनगर: जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने गुरुवार को दो साल पहले कथित फर्जी खबर लिखने के आरोप में  श्रीनगर के एक पत्रकार के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करते हुए कहा कि उनके पास यह यकीन करने का पूरा कारण था कि वह सही तथ्यों के आधार पर खबर लिख रहे हैं.

जस्टिस संजय धर की एकल पीठ ने यह भी कहा कि मीडिया द्वारा ‘घटनाओं की निष्पक्ष और स्पष्ट रिपोर्टिंग’ पर केवल इसलिए अंकुश नहीं लगाया जा सकता क्योंकि इससे किसी वर्ग के व्यक्तियों के व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

यह एफआईआर टूरिज्म व्यवसाय से जुड़े कुछ लोगों द्वारा टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकार एम. सलीम पंडित के खिलाफ दर्ज करवाई गई थी.

उनका कहना था कि पंडित ने झूठी खबर प्रकाशित की है कि अप्रैल 2018 में पत्थरबाजों ने पर्यटकों को निशाना बनाया जिसमें चार महिलाएं घायल हुईं.

शिकायतकर्ताओं के अनुसार, ऐसा ‘शांतिपूर्ण पर्यटन सीजन’ को बाधित करने और भारत के नागरिकों के बीच ‘डर का माहौल बनाने’ के दुर्भावनापूर्ण इरादे से किया गया था.

इस रिपोर्ट का हवाला देते हुए जस्टिस धर की एकल पीठ ने कहा कि इस खबर की जानकारी एक ड्राइवर और पुलिस अधिकारी द्वारा दी गई थी.

उन्होंने कहा, ‘दस्तावेज दिखाते हैं कि याचिकाकर्ता द्वारा छापी गई खबर निराधार नहीं थी. हो सकता है यह पूरी तरह सही न हो, लेकिन इसे लिखते समय रिपोर्टर उस जानकारी पर भरोसा कर रहे थे , जो उन्हें ड्राइवर और पुलिस अफसर से मिली थी.’

अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि प्रेस की आजादी को किसी ऐसे आधार, जो कानून के लिए अज्ञात हैं, खतरे में नहीं डाला जा सकता.

अदालत ने कहा, ‘प्रेस की स्वतंत्रता की सीमा को एक रिपोर्टर के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने तक नहीं नहीं बढ़ाया जा सकता. वो रिपोर्टर जो अपना फर्ज निभा रहा है और उसके द्वारा एकत्र की गई जानकारी के आधार पर किसी घटनाओं के बारे में एक रिपोर्ट बनाता है, जो उसके मुताबिक जनहित में प्रकाशित की जनि चाहिए.’

आदेश में आगे कहा गया, ‘खबर लिखने या उसे प्रसारित करने वाले व्यक्ति के पास अगर यह विश्वास करने का तार्किक आधार है कि तथ्य सही हैं और वह अच्छी मंशा से ऐसा कर रहा है तो, उस व्यक्ति के खिलाफ रणबीर पैनल कोड की धारा 505 के तहत कोई मामला नहीं बनता है.

आदेश में कहा गया, ‘यह कहना गैर-जरूरी है कि उक्त रिपोर्ट ने किसी व्यक्ति (व्यवसायियों) के व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव डाला हो सकता है जब तक कि रिपोर्टर के पास यह मानने के लिए उचित आधार था कि उसकी रिपोर्ट सच है. इस तरह के मामलों में पुलिस को पत्रकारों को प्रताड़ित करने के लिए उनकी शक्तियों का दुरूपयोग करने की इजाजत नहीं दी जा सकती.’

हाईकोर्ट ने पूछा, ‘सवाल उठता है कि क्या किसी अख़बार द्वारा किसी घटना की निडर और स्पष्ट रिपोर्टिंग, जिससे शायद किसी व्यवसाय से जुड़े लोगों को यह लगे कि इससे उनका काम गलत तरह से प्रभावित हो सकता है, पर किसी कानून के तहत कोई मामला बनता है.’

जस्टिस धर ने कहा कि इसका जवाब न ही होना चाहिए क्योंकि किसी घटना के बारे में बताना, जिसे सच मानने के लिए रिपोर्टर के पास वाजिब वजह है, अपराध नहीं हो सकता.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)