दिल्ली दंगा: गवाहों के नाम सार्वजनिक करने पर कोर्ट ने जांच अधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया

दिल्ली पुलिस ने दंगा मामले में गवाही देने वाले 15 सार्वजनिक गवाहों ने जान को ख़तरा बताया था, जिसके चलते छद्मनामों का इस्तेमाल कर उनकी पहचान गुप्त रखी गई थी. पिछले दिनों अदालत में दाख़िल पुलिस की 17,000 पन्नों की चार्जशीट में इन सभी के नाम-पते सहित पूरी पहचान ज़ाहिर कर दी गई थी.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

दिल्ली पुलिस ने दंगा मामले में गवाही देने वाले 15 सार्वजनिक गवाहों ने जान को ख़तरा बताया था, जिसके चलते छद्मनामों का इस्तेमाल कर उनकी पहचान गुप्त रखी गई थी. पिछले दिनों अदालत में दाख़िल पुलिस की 17,000 पन्नों की चार्जशीट में इन सभी के नाम-पते सहित पूरी पहचान ज़ाहिर कर दी गई थी.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली दंगा मामले में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा चार्जशीट में 15 सार्वजनिक गवाहों का पूरा नाम और पता सार्वजनिक किए जाने के मामले का संज्ञान लेते हुए दिल्ली की एक अदालत ने इन संरक्षित गवाहों का नाम प्रसारित करने पर रोक लगा दी है.

इसके साथ ही अदालत ने जांच अधिकारी को संरक्षित गवाहों के नाम जारी करने के लिए जिम्मेदार ठहराया और जांच एजेंसी को उन्हें व्यापक सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया.

क्या है मामला?

बता दें कि बीते 7 अक्टूबर को द वायर  ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह से इस गलती की बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है.

रिपोर्ट में बताया गया था कि दिल्ली पुलिस ने जिन नामों को गोपनीय बताया था उन्हीं का खुलासा कर दिया था. ये न सिर्फ पुलिस की जांच की क्षमता पर सवाल उठाते हैं बल्कि जांच की दिशा पर भी सवाल उठा रहे हैं.

बता दें कि दिल्ली में फरवरी 2020 के दंगे चार दिनों तक चले और इसमें एक पुलिसकर्मी सहित 53 लोगों की जान चली गई. मारे गए लोगों में 40 मुस्लिम थे और 12 हिंदू थे. इस हिंसा में नष्ट हुई अधिकांश संपत्ति और पूजा स्थल मुसलमानों के थे.

जून में पटियाला हाउस अदालत में एक आवेदन में दिल्ली पुलिस के विशेष अभियोजक ने कहा था कि इन गवाहों ने गिरफ्तार किए गए आरोपियों के बारे में बताया और गिरफ्तार आरोपी व्यक्तियों के अलावा कुछ अन्य व्यक्तियों की संलिप्तता के बारे में बताया.

चार्जशीट के दस्तावेजों में शामिल पुलिस आवेदन में कहा गया है कि गवाहों के पूरे नाम, पतों को सुरक्षा की आवश्यकता है और इसीलिए छद्मनाम दिए गए हैं.

गोपनीयता बरतने की बात के बावजूद चार्जशीट में जब भी उनके बयान कोट किए गए हैं, तब उनके छद्मनाम इस्तेमाल किए गए हैं क्योंकि कथित तौर पर उन्होंने अपनी जान को खतरे की आशंका जताई है.

हालांकि, इतनी महत्वपूर्ण जानकारी होने के बावजूद गवाहों के पूरे नाम और पते के दस्तावेज चार्जशीट के साथ लगाकर आरोपियों को दे दिए गए.

यह दस्तावेज एक पुलिस आवेदन था जिसमें पूरे नाम और पते और उनके ‘छद्म नाम’ के साथ सुरक्षा की आवश्यकता वाले गवाहों को सूचीबद्ध किया गया था.

अनजानों में उजागर हुई पहचान

9 अक्टूबर के अपने आदेश में कड़कड़डूमा कोर्ट में शाहदरा जिले के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) अमिताभ रावत ने कहा कि राज्य के स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (एसपीपी) अमित प्रसाद ने संरक्षित गवाहों के संबंध में तत्काल निर्देश जारी करने के लिए गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 44 के तहत एक तत्काल आवेदन दिया था.

एएसजे ने लिखा कि 6 मार्च, 2020 को दिल्ली क्राइम ब्रांच द्वारा एफआईआर नंबर 59/20 से संबंधित मामले में स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने कहा कि मामला राज्य बनाम ताहिर हुसैन और अन्य से संबंधित है, आरोप-पत्र में लगभग 18,000 पेज थे और अनजाने में कुछ संरक्षित गवाहों की पहचान आरोप-पत्र में सार्वजनिक हो गई. यह न तो जान-बूझकर किया गया और न ही ऐसा करने का कोई उद्देश्य था.

एएसजे ने यह भी कहा कि स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने आगे कहा कि चार्जशीट की कॉपी आरोपियों और उनके वकीलों को दी गई.

आदेश में यह भी दर्ज किया गया कि जांच एजेंसी संरक्षित सार्वजनिक गवाहों सहित सार्वजनिक गवाहों की सुरक्षा के बारे में सचेत है.

उसमें आगे कहा गया कि संरक्षित सार्वजनिक गवाहों का जीवन, स्वतंत्रता, सुरक्षा सर्वोपरि है. राज्य इस देश के नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता का रक्षक और संरक्षक है.

संरक्षित लोगों से गलत मंशा से संपर्क किया गया

इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि इस मामले की जांच के दौरान कुछ गवाहों की पहचान को यूएपीए की धारा 44 के तहत गोपनीय रखा गया था और यह जांच एजेंसी के संज्ञान में आया है कि कम से कम तीन संरक्षित गवाहों से वर्तमान मामले के संबंध में निहित स्वार्थ वाले विभिन्न व्यक्तियों द्वारा संपर्क किया गया है.

इसलिए एसपीपी ने आग्रह किया था कि आवश्यक प्रासंगिक दस्तावेजों को न्यायिक फाइल से निकाला जाए और काटे गए संस्करण के साथ बदल दिया जाए और मूल फाइल को सील करके रिकॉर्ड पर रखा जाए.

आवेदन में यह भी आग्रह किया गया है कि आरोपी व्यक्तियों, उनके सहयोगियों और किसी भी अन्य व्यक्ति को संरक्षित सार्वजनिक गवाहों की पहचान को विभाजित करने, प्रकाशित करने, खुलासा करने, प्रसारित करने से रोकने और प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष या किसी भी अन्य तरह से रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाएं.

यह भी आग्रह किया गया था कि सभी आरोपियों और उनके वकीलों को दी गई चार्जशीट की कॉपी वापस करने, उनसे बनाई गई किसी भी कॉपी या प्रिंट को नष्ट करने के लिए कहा जाए और अदालत के कर्मचारी को संबंधित दस्तावेज न्यायिक फाइल से निकालने, उन्हें सील करने और उन्हें काटे गए संस्करण से बदलने के लिए निर्देशित किया जाए.

आगे गवाहों के नामों का प्रसार और खुलासा करने पर रोक

मामला दर्ज होने पर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रावत ने कहा, ‘अदालत की नजर में जांच अधिकारी (आईओ) की ओर से एक गलती हुई है और चूंकि संरक्षित गवाहों की पहचान को संरक्षण देने का उद्देश्य निष्पक्ष परीक्षण और गवाहों को विशिष्ट सुरक्षा देने के लिए है, इसलिए तत्काल संरक्षण आदेश पारित करने की आवश्यकता है. एकमात्र विचार गवाहों की पहचान की रक्षा करना और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना है.’

न्यायाधीश ने इन नामों और पतों के आगे प्रसार पर रोक लगाते हुए कहा, ‘अभियुक्त व्यक्ति या कोई अन्य व्यक्ति या प्राधिकरण आदि संरक्षित गवाहों की पहचान को प्रसारित, प्रकाशित या जारी नहीं करेगा और न ही उनसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी तरीके से संपर्क करेगा.’

आगे उन्होंने लिखा कि स्पेशल सेल ऐसे सभी संरक्षित गवाहों को व्यापक सुरक्षा सुनिश्चित करेगा. अदालत ने अभियुक्तों के वकीलों को दी गई पेन ड्राइव को वापस करने का भी आदेश दिया, जिसमें उनके नाम शामिल थे.

अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे रिकॉर्ड जहां पेन ड्राइव के साथ न्यायिक फाइल में संरक्षित गवाहों की पहचान उजागर हुई है, उन्हें अदालत में एक सीलबंद कवर में रखा जाएगा और रिकॉर्ड का एक नया संस्करण दर्ज किया जाएगा.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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