हाथरस पीड़िता के साथ रेप को लेकर यूपी पुलिस के उलट बयान देने वाले डॉक्टर को एएमयू ने निकाला

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय स्थित जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के डॉ. अज़ीम मलिक ने यूपी पुलिस के दावों को ख़ारिज करते हुए कहा था कि फॉरेंसिक रिपोर्ट के लिए 11 दिन बाद सैंपल लिए जाने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि इससे बलात्कार होने की पुष्टि नहीं हो सकती है. घटना के बाद युवती का इलाज इसी अस्पताल में हो रहा था.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय स्थित जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के डॉ. अज़ीम मलिक ने यूपी पुलिस के दावों को ख़ारिज करते हुए कहा था कि फॉरेंसिक रिपोर्ट के लिए 11 दिन बाद सैंपल लिए जाने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि इससे बलात्कार होने की पुष्टि नहीं हो सकती है. घटना के बाद युवती का इलाज इसी अस्पताल में हो रहा था.

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अलीगढ़ स्थित जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल.

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में 19 वर्षीय युवती के साथ कथित गैंगरेप और मौत के मामले में राज्य पुलिस के उलट बयान देने वाले जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के अस्थायी मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. अजीम मलिक को नौकरी से निकाल दिया गया है.

यह अस्पताल अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में स्थित है.

मलिक ने अतिरिक्त महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार के बयान के उलट कहा था कि फॉरेंसिक रिपोर्ट के लिए 11 दिन बाद सैंपल लिए जाने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि इससे रेप होने की पुष्टि नहीं हो सकती है, जबकि सरकारी दिशानिर्देशों के मुताबिक, फॉरेंसिक रिपोर्ट में सही परिणाम आने के लिए घटना के 96 घंटे के भीतर सैंपल लिया जाना चाहिए.

जबकि कुमार ने फॉरेंसिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि चूंकि जांच के दौरान शरीर पर वीर्य नहीं पाया गया है, जो कि बताता है कि रेप नहीं हुआ था.

इसके बाद 16 अक्टूबर को डॉ. अजीम एक को पत्र मिला, जिसमें कहा गया था कि अस्पताल के अस्थायी सीएमओ बनाने के उनके कॉन्ट्रैक्ट को और आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र रहे डॉ. अजीम को अगस्त में उस समय सीएमओ बनाया गया था, जब अस्पताल के 11 में से छह सीएमओ कोरोना संक्रमित पाए गए थे.

उनकी नौकरी को नवंबर महीने तक के लिए बढ़ाया जाना था, लेकिन बीते 16 अक्टूबर को उन्हें नोटिस देकर कहा गया कि उनका कार्यकाल 10 अक्टूबर से लेकर आठ नवंबर तक बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूर नहीं किया गया है. इसके बाद 20 अक्टूबर को उन्हें उनके पद से तत्काल हटाने का नोटिस दिया गया.

डॉ. अजीम के अनुसार, उनके बयान की वजह से अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक को वाइस चांसलर ने फटकार लगाई थी.

उन्होंने कहा, ‘वीसी ने प्रिंसिपल को बुलाकर उन्हें डांटा था. उस दिन हमें ये संकेत मिल गए थे कि हमें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. मीडिया में बयान देने में कोई गलती नहीं थी. किसी भी डॉक्टर से पूछिए, हर कोई वही बात बताएंगे, लेकिन ये ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि वो बयान सुर्खियों में छा गया था.’

डॉ. अजीम के अनुसार, कुलपति ने उनके अन्य सहयोगियों के प्रति भी अप्रत्यक्ष रूप से नाराजगी व्यक्त की थी और ये पूछा था कि उन्होंने प्रेस को ऐसा बयान क्यों दिया. अस्पताल के सूत्रों ने यह भी कहा कि दो अन्य सीएमओ की भी नौकरी समाप्त होने की संभावना है.

हाथरस पीड़िता ने अपने बयान में कहा था कि तथाकथित उच्च जाति के चार लोगों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया था, लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस बार-बार ये कहती रही कि लड़की के साथ बलात्कार नहीं हुआ था.

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में पीड़िता की मौत के दो दिन बाद एक अक्टूबर को यूपी पुलिस ने कहा था कि महिला के साथ बलात्कार का कोई ‘सबूत’ नहीं है. हाथरस के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर ने भी कहा था कि अलीगढ़ के  जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल की रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई है.

दिल्ली स्थित सफदरजंग अस्पताल ले जाने से पहले पीड़िता इसी अस्पताल में 14 दिनों तक भर्ती थी.

हालांकि तीन अक्टूबर को द वायर  ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि अलीगढ़ के अस्पताल की एमएलसी रिपोर्ट पुलिस के रेप न होने के दावे के उलट है.

पीड़िता की एमएलसी रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश पुलिस के दावों के विरुद्ध बातें दर्ज थीं. मेडिको लीगल एग्जामिनेशन (एमएलसी) रिपोर्ट बताती है कि डॉक्टरों ने इस बात को दर्ज किया था कि ‘वजाइनल पेनेट्रेशन’ हुआ था और प्रीलिमिनरी रिपोर्ट में जबरदस्ती किए जाने के संकेत भी मिले थे.

वजाइनल पेनेट्रेशन का अर्थ है कि योनी में किसी तरह की बाहरी वस्तु का प्रवेश हुआ है.

हाथरस मामले में रेप न होने का दावा करने वाले एडीजी प्रशांत कुमार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी फटकार लगाई थी और पूछा था कि क्या बलात्कार को लेकर साल 2013 में कानून में हुए संशोधन को लेकर उन्हें जानकारी नहीं है, जिसके तहत रेप साबित करने के लिए शरीर पर वीर्य का पाया जाना जरूरी नहीं है.

बीते सोमवार को डॉ. अजीम सहित आठ सीएमओ ने मुख्य चिकित्सा अधीक्षक को संबोधित एक पत्र भेजा था, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘कोविड-19 महामारी के चरम पर संक्रमित एवं बीमार होने के बावजूद लगातार काम करने के बजाय कई अधिकारियों द्वारा आरोप लगाया गया है कि हम अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं, ये जानकर हम बहुत दुखी हैं.’

द वायर  ने एएमयू के वाइस चांसलर तारिक मंसूर से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनका जवाब नहीं आया है. यदि कोई प्रतिक्रिया आती है तो उसे स्टोरी में शामिल कर लिया जाएगा.

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