गाज़ियाबाद: हाथरस मामले से आहत वाल्मीकि समुदाय के 236 लोगों ने बौद्ध धर्म अपनाया

गाज़ियाबाद के करहैड़ा गांव में बौद्ध धर्म अपनाने वाले एक शख़्स ने कहा कि उन्होंने पहले भी धर्म परिवर्तन पर विचार किया था लेकिन हाथरस की घटना ने उन्हें बुरी तरह हिला दिया. इन सभी 236 लोगों ने डॉ. बीआर आंबेडकर के परपौत्र राजरत्न आंबेडकर की मौजूदगी में बौद्ध धर्म अपनाया है.

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हाथरस गैंगरेप पीड़िता का अंतिम संस्कार करते पुलिसकर्मी. (फोटो: पीटीआई)

गाज़ियाबाद के करहैड़ा गांव में बौद्ध धर्म अपनाने वाले एक शख़्स ने कहा कि उन्होंने पहले भी धर्म परिवर्तन पर विचार किया था लेकिन हाथरस की घटना ने उन्हें बुरी तरह हिला दिया. इन सभी 236 लोगों ने डॉ. बीआर आंबेडकर के परपौत्र राजरत्न आंबेडकर की मौजूदगी में बौद्ध धर्म अपनाया है.

हाथरस गैंगरेप पीड़िता का अंतिम संस्कार करते पुलिसकर्मी. (फोटो: पीटीआई)
हाथरस गैंगरेप पीड़िता का अंतिम संस्कार करते पुलिसकर्मी. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित युवती के कथित बलात्कार और मौत के बाद प्रशासन के व्यवहार से आहत गाजियाबाद के 236 दलितों ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, गाजियाबाद के करहैड़ा गांव के वाल्मीकि समुदाय के 236 लोगों ने डॉ. बीआर आंबेडकर के परपौत्र राजरत्न आंबेडकर की मौजूदगी में बौद्ध धर्म स्वीकार किया.

दलितों के साथ भेदभाव का अनुभव बताते हुए गाजियाबाद में घरेलू सहायिका के तौर पर काम करने वाली सुनीता (45) ने कहा कि जिस घर में वह बतौर घरेलू सहायिका काम करती हैं, जब वहां पीने के लिए एक गिलास पानी मांगा तो दलित होने की वजह से उन्हें स्टील के गिलास में पानी दिया गया.

उन्होंने बताया, ‘इस गिलास को रसोई के एक कोने में अलग रखा जाता है ताकि हर किसी को पता रहे कि मैं वाल्मीकि हूं और यह मेरे लिए है. मैं जहां भी काम करती हूं, अधिकतर घरों में मेरे साथ इसी तरह का भेदभाव होता है.’

2009 में सुनीता के बड़े बेटे पवन ने गाजियाबाद के एक लग्जरी अपार्टमेंट में चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन दिया था. पवन का कहना है कि वाल्मीकि सरनेम होने के चलते उन्हें सिर्फ साफ-सफाई का काम दिया गया.

वह कहते हैं, ‘मैंने साफ-सफाई के काम के लिए अप्लाई नहीं किया था लेकिन मुझे पैसों की जरूरत थी इसलिए मैंने इसे स्वीकार कर लिया. हालांकि मैं इस भेदभाव से वाकिफ हूं, जो पीढ़ियों से हमारे साथ होता आ रहा है.’

यह सुनिश्चित करने के लिए उनके दोनों बच्चों को इस तरह के भेदभाव का सामना नहीं करना पड़े, पवन ने अपने परिवार के सदस्यों और कई पड़ोसियों के साथ 14 अक्टूबर को बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया.

उन्होंने कहा कि करहैड़ा गांव के 236 लोगों ने डॉ. बीआर आंबेडकर के परपौत्र राजरत्न आंबेडकर की मौजूदगी में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया.

बौद्ध धर्म स्वीकार करने वालों में पूर्वी दिल्ली के शाहदरा में मैकेनिक के तौर पर काम कर चुके इंदर राम (65) भी हैं.

उन्होंने कहा,  ‘हाथरस में 19 साल की दलित युवती के साथ जो हुआ, उसके बाद हमने धर्म परिवर्तन का फैसला किया. बौद्ध धर्म में कोई जाति नहीं है. वहां कोई ठाकुर या वाल्मीकि नहीं है. हर कोई सिर्फ इंसान है, सभी सिर्फ बौद्ध हैं.’

पवन कहते हैं, ‘हमने पहले भी धर्म परिवर्तन पर विचार किया था लेकिन हाथरस की घटना ने हमें हिला दिया. जिस तरह से राज्य सरकार पीड़िता के परिवार के साथ व्यवहार कर रहा है और जिस तरह से पीड़िता के शव को उसके परिवार की मंजूरी के बिना रात 2.30 बजे जला दिया गया, हम उससे हिल गए हैं.’

उन्होंने कहा कि करहैड़ा गांव के लोगों ने पीड़िता की मौत के कुछ दिनों बाद कैंडल मार्च किया था और इसके बाद हमने बौद्ध धर्म स्वीकार करने को लेकर सोचना शुरू किया.

लॉकडाउन से पहले कूड़ा बीनने का काम करने वाले कमलेश (50) ने कहा, ‘हाथरस की घटना हमसे से अधिकतर के लिए फैसला करने वाला पल था. दूसरा धर्म स्वीकार करने कोई आसान फैसला नहीं है इसका मतलब है पुराने रीति-रिवाज छोड़ना लेकिन अब हम थक चुके हैं. आज से हम वाल्मीकि नहीं, बौद्ध हैं.’

रीति-रिवाजों की बात करते हुए सुनीता ने कहा कि इतने सालों में पहली बार है, जब मैंने नवरात्रि पर उपवास नहीं रखा है.

सफाई कर्मचारी के तौर पर काम कर चुके तारा चंद (70) कहते हैं, ‘बौद्ध धर्म में कोई उपवास नहीं होता, मूर्ति पूजन नहीं होता. हमने इसे पूरी तरह से अंगीकार कर लिया है. मेरे पिता के साथ भी भेदभाव किया गया था और मेरे साथ भी. मेरे बच्चों के साथ भी और उनके बच्चों के साथ भी. यह भेदभाव कम खत्म होगा? हम कब तरक्की करेंगे.’

उनके एक दोस्त श्रीचंद (70) कहते हैं, ‘हर बार देश में दलितों पर अत्याचार होता है. हम अपने बच्चों के लिए डरे हुए हैं.’

वहीं, कमल कहते हैं, ‘सवर्ण जाति के बच्चे हमारे बच्चों के साथ नहीं बैठते, शिक्षक चाहते हैं कि हमारे बच्चे क्लास में पीछे बैठे. क्यों. क्योंकि उनका सरनेम वाल्कमीकि है इसलिए हम इसे बदलेंगे. यह हमारे भविष्य के लिए है.’

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में 14 सितंबर को सवर्ण जाति के चार युवकों ने 19 साल की दलित युवती के साथ बर्बरतापूर्वक मारपीट करने के साथ कथित बलात्कार किया था.

अलीगढ़ के एक अस्पताल में इलाज के बाद उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां 29 सितंबर को उन्होंने दम तोड़ दिया था.

इसके बाद परिजनों ने पुलिस पर उनकी सहमति के बिना आननफानन में युवती का अंतिम संस्कार करने का आरोप लगाया, जिससे पुलिस ने इनकार किया था.

युवती के भाई की शिकायत के आधार पर चार आरोपियों- संदीप (20), उसके चाचा रवि (35) और दोस्त लवकुश (23) तथा रामू (26) को गिरफ्तार किया है.

राज्य सरकार द्वारा एसआईटी गठित किए जाने के बाद अब सीबीआई द्वारा इस मामले की जांच की जा रही है.

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