पुलिस की प्रताड़ना के ख़िलाफ़ बिहार चुनाव का बहिष्कार करेंगे कैमूर ज़िले 108 आदिवासी गांव

मामला बिहार के कैमूर ज़िले का है. इलाके को टाइगर रिज़र्व न घोषित किए जाने सहित कई अन्य मांगों को लेकर बीते सितंबर महीने में विरोध प्रदर्शन करने वाले हज़ारों आदिवासियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज और गोलीबारी की थी. इस संबंध में दिल्ली से गई एक चार सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट जारी की है.

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(फोटो साभार: सि​टीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस/CPJ)

मामला बिहार के कैमूर ज़िले का है. इलाके को टाइगर रिज़र्व न घोषित किए जाने सहित कई अन्य मांगों को लेकर बीते सितंबर महीने में विरोध प्रदर्शन करने वाले हज़ारों आदिवासियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज और गोलीबारी की थी. इस संबंध में दिल्ली से गई एक चार सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट जारी की है.

(फोटो साभार: सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस/CPJ)
(फोटो साभार: सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस/CPJ)

नई दिल्ली: बिहार के कैमूर जिले के 108 गांववालों ने पिछले महीने इलाके के आदिवासी समुदाय पर कथित पुलिस प्रताड़ना के विरोध में विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करने की घोषणा की है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस ने यह कार्रवाई तब की थी जब आदिवासी अन्य मुद्दों के साथ इलाके को टाइगर रिजर्व घोषित किए जाने के खिलाफ विरोध कर रहे थे.

विरोध का नेतृत्व कैमूर मुक्ति मोर्चा (केएमएम) कर रहा था और उसका आरोप है कि इलाके के 25 कार्यकर्ताओं को झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया गया था.

गांववालों ने वन विभाग पर उन्हें जबरन जमीन से हटाने और उनकी फसलें बर्बाद करने का आरोप लगाया है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हटाने पर रोक लगाई है.

केएमएम ने सरकार से कैमूर को अधिसूचित क्षेत्र घोषित करने की मांग की है. इलाके में टाइगर रिजर्व केवल ग्राम सभा की सहमति और आदिवासी समुदाय की मंजूरी से बनाया जाए.

इस संबंध में दिल्ली से गई एक चार सदस्यीय समिति ने शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट जारी की.

माकपा नेता बृंदा करात ने जारी करते हुए कहा, ‘इस मामले में बिहार सरकार ने वन अधिकार कानून लागू न करके आपराधिक लापरवाही की है.’

रिपोर्ट के अनुसार, केएमएम के नेतृत्व में 108 गांवों के आदिवासी वनाधिकार कानून 2006 को लागू करने, संविधान की पांचवी अनुसूची के मुताबिक कैमूर को अधिसूचित क्षेत्र घोषित करने, पंचायत (अधिसूचित क्षेत्रों का विस्तार) कानून, 1996 को प्रभावी तौर पर लागू करने, कैमूर घाटी का प्रशासनिक पुनर्गठन करने, 1927 के औपनिवेशिक भारतीय वन कानून को रद्द करने, छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट लागू करने और प्रस्तावित वन एवं वन्यजीव अभयारण्य व टाइगर रिजर्व रद्द करने की मांग कर रहे थे.

रिपोर्ट के अनुसार, आदिवासियों का आरोप है कि मार्च 2020 से ही वन अधिकारी अधौरा ब्लॉक के आदिवासियों की जमीन हड़पने की कोशिश में लगे हुए हैं. इसके लिए अधिकारी उनके घरों को तोड़ने और खेतों में गढ्डे खोदने जैसे तरीके अपना रहे हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें गुलु, गोइया, दीघर, बाहाबार, पीपरा, साधो, बहेड़ा, डुमरावां और सरायनार आदिवासी शामिल हैं.

10 सितंबर को 108 गांवों की महिलाओं, पुरुषों, युवाओं और बच्चों समेत हजारों आदिवासियों ने अधौरा वन विभाग के दफ्तर के सामने प्रदर्शन किया. बिरसा मुंडा स्मारक स्थल पर यह धरना शांतिपूर्ण तरीके से शुरू हुआ.

आदिवासियों की मांगों पर जब प्रशासन ने कोई ध्यान नहीं दिया तब उन्होंने शाम को वन विभाग के गेट पर ताला लगा दिया. 11 सितंबर को अधिकारी ताला तोड़कर अंदर चले गए.

रिपोर्ट के अनुसार, जब आदिवासियों ने दफ्तर में जाकर बात करनी चाही तब उनके साथ बुरा बर्ताब किया गया और कुछ ही देर में पुलिस और सीआरपीएफ जवानों ने उन पर हमला कर दिया. उन्होंने गोलीबारी की और लाठियां चलाई. इस दौरान कई लोग घायल हो गए और एक शख्स के कान को छूते हुए गोली निकल गई.

रिपोर्ट में कहा गया कि 12 सितंबर को केएमएम के अधौरा स्थित दफ्तर पर हमला कर उसे तोड़ दिया गया और उसके दर्जनों कार्यकर्ताओं को झूठे और मनगढ़ंत आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें 23 से लेकर 65 साल की उम्र तक के कार्यकर्ता शामिल हैं. उन पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं के साथ आर्म्स एक्ट की धाराएं भी लगाई गईं. हालांकि, उन्हें 16 सितंबर को रिहा कर दिया गया.

रिपोर्ट के अनुसार, इस शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के लिए अगस्त से पर्चे बांटे जा रहे थे और अधिकारियों को जानकारी दी गई थी लेकिन इसके बावजूद प्रशासन ने उन पर हमला कर दिया.

रिपोर्ट में स्थानीय पत्रकारों के हवाले से कहा गया है कि आदिवासियों का प्रदर्शन शांतिपूर्ण था.

बरडीहा गांव की आदिवासी रामराजी देवी कहती हैं, ‘सरकार हमारी जमीन को बड़ी कंपनियों को बेचना चाहती है, लेकिन मैं सरकार को बताना चाहती हूं कि जब तक जिंदा हूं अपने जल, जंगल और जमीन के लिए लड़ती रहूंगी.’

केएमएम के कार्यकारी सचिव राजा लाल सिंह खरवार कहते हैं, ‘यह आदिवासी इलाका है लेकिन सरकार ने इसे दो जिलों के आठ ब्लॉक में बांट दिया है ताकि यह पांचवीं अनुसूची से बाहर हो जाए. हम पहाड़ियों के प्रशासनिक पुनर्गठन की मांग कर रहे हैं और चाहते हैं कि दो ब्लॉक सिर्फ आदिवासियों के लिए गठित किए जाएं ताकि हमारे इलाके पांचवीं अनुसूची में आ जाएं.’

23 से 27 सितंबर तक कैमूर जिले अधौरा ब्लॉक का दौरा करने वाली चार सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम में अमीर शेरवानी खान (ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग ग्रुप), मातादयाल (ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग ग्रुप), राजा रब्बी हुसैन (डेल्ही सॉलिडेरिटी ग्रुप) और सुप्रीम कोर्ट के वकील अमन खान शामिल थे.

फैक्ट फाइंडिंग टीम ने अपनी रिपोर्ट में केएमएम की सभी मांगों को मानने का अनुरोध करने के साथ सभी सात कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करवाने, बिहार सरकार द्वारा एक न्यायिक आयोग से घटना की जांच कराने, पीड़ितों के मुआवजे देने और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की है.

केएमएम द्वारा चुनावों के बहिष्कार के ऐलान के दो दिन बाद केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय समेत तमाम बड़े राजनीतिक नेताओं ने हेलीकॉप्टर से पहुंचकर बहिष्कार वापस लेने की मांग भी की.

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