शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ सीबीआई जांच के हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक

दो पत्रकारों ने आरोप लगाया था कि 2016 में झारखंड के ‘गोसेवा आयोग’ के अध्यक्ष पद पर एक व्यक्ति की नियुक्ति का समर्थन करने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के रिश्तेदारों के खातों में पैसा ट्रांसफर किया गया था. रावत उस वक्त झारखंड में भाजपा के इंचार्ज थे.

///
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत. (फोटो साभार: फेसबुक)

दो पत्रकारों ने आरोप लगाया था कि 2016 में झारखंड के ‘गोसेवा आयोग’ के अध्यक्ष पद पर एक व्यक्ति की नियुक्ति का समर्थन करने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के रिश्तेदारों के खातों में पैसा ट्रांसफर किया गया था. रावत उस वक्त झारखंड में भाजपा के इंचार्ज थे.

त्रिवेंद्र सिंह रावत. (फोटो साभार: फेसबुक)
त्रिवेंद्र सिंह रावत. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली/देहरादून: उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआई जांच का आदेश देने संबंधी उच्च न्यायालय के आदेश पर बृहस्पतिवार को रोक लगा दी.

दो पत्रकारों ने आरोप लगाया था कि 2016 में झारखंड के ‘गोसेवा आयोग’ के अध्यक्ष पद पर एक व्यक्ति की नियुक्ति का समर्थन करने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के रिश्तेदारों के खातों में पैसा ट्रांसफर किया गया था.

रावत उस वक्त झारखंड में भाजपा के इंचार्ज थे.

जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री को सुने बगैर ही उच्च न्यायालय द्वारा इस तरह का ‘सख्त आदेश’ देने से ‘सब भौंचक्के’ रह गए क्योंकि पत्रकारों की याचिका में रावत के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध भी नहीं किया गया था.

रावत की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि मुख्यमंत्री को सुने बगैर प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती और इस तरह का आदेश निर्वाचित सरकार को अस्थिर करेगा.

वेणुगोपाल ने पीठ से कहा, ‘एक निर्वाचित सरकार को इस तरह से अस्थिर नहीं जा सकता. सवाल यह है कि पक्षकार को सुने बगैर ही क्या स्वत: ही इस तरह का आदेश दिया जा सकता है.

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बीते 27 अक्टूबर को पत्रकार उमेश शर्मा के खिलाफ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की छवि बिगाड़ने के मामले में दर्ज की गई प्राथमिकी को रद्द कर दिया था और मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए थे.

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ आरोपों की प्रकृति पर विचार करते हुए सच को सामने लाना उचित होगा. यह राज्य के हित में होगा कि संदेह दूर हो. इसलिए मामले की जांच सीबीआई करे.

उच्च न्यायालय ने यह फैसला दो पत्रकारों- उमेश शर्मा और शिव प्रसाद सेमवाल की दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनाया था. इन याचिकाओं में पत्रकारों ने इस साल जुलाई में अपने खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज की गई प्राथमिकी को रद्द करने का आग्रह किया था.

उमेश शर्मा ने इस साल 24 जून को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली थी, जिसमें दावा किया गया था कि झारखंड के अम्रतेश चौहान ने नोटबंदी के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के निजी लाभ के लिए एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हरिंदर सिंह रावत और उनकी पत्नी डॉ. सविता रावत के विभिन्न खातों में पैसे जमा कराए थे.

बताया जा रहा है हरेंद्र की पत्नी सविता रावत एसोसिएट प्रोफेसर और मुख्यमंत्री रावत की पत्नी की बहन हैं. अपनी शिकायत में हरिंदर ने कहा था कि उमेश ने आरोप लगाया है कि यह पैसा रिश्वत के तौर पर रावत को दिया गया था ताकि अम्रतेश चौहान की नियुक्ति गोसेवा पैनल के अध्यक्ष के तौर पर हो जाए.

इस पोस्ट में दावे के समर्थन में बैंक खाते में हुए लेन-देन का विवरण भी डाला गया था. इस पर हरिंदर सिंह रावत ने 31 जुलाई को देहरादून में इन आरोपों को झूठा और आधारहीन बताते हुए शर्मा पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई थी.

इस एफआईआर में सेमवाल के न्यूज पोर्टल ‘पर्वतजन’ और दूसरे पत्रकार राजेश शर्मा के मीडिया आउटलेट ‘क्राइम स्टोरी’ का भी नाम था.

याचिकाकर्ता शर्मा की तरफ से अदालत में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा.

सभी पक्षों को सुनने के बाद, हाईकोर्ट की एकलपीठ ने शर्मा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करते हुए उनके द्वारा सोशल मीडिया पर लगाए आरोपों की सीबीआई जांच के आदेश दिए थे.

पत्रकार उमेश शर्मा पर मानहानि का मामला करने पर विचार: प्रोफेसर हरिंदर रावत

सेवानिवृत्त प्रोफेसर हरिंदर रावत ने बृहस्पतिवार को कहा कि उनका या उनकी पत्नी की मुख्यमंत्री की पत्नी से दूर की भी कोई रिश्तेदारी नहीं है और वह इस संबंध में पत्रकार के खिलाफ मानहानि का मुकदमा करने पर भी विचार कर रहे हैं.

प्रोफेसर रावत ने कहा कि सोशल मीडिया के जरिये उन पर और उनकी पत्नी डॉ. सविता रावत पर लगाए गए आरोप बिल्कुल झूठे और बेबुनियाद हैं जिनसे उनके परिवार के साथ ही मुख्यमंत्री रावत की भी छवि धूमिल हुई है.

प्रोफेसर रावत ने बताया कि उन्होंने उत्तराखंड पुलिस से आरोपों की जांच एक विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा कराए जाने का अनुरोध किया था और उसकी रिपोर्ट में भी ये आरोप निराधार और झूठे निकले.

प्रोफेसर रावत ने इस बात पर आश्चर्य के साथ ही नाराजगी भी प्रकट की कि उनके बैंक खातों के नंबर पत्रकार उमेश शर्मा को कैसे मिले और उन्हें कैसे सोशल मीडिया पर सार्वजनिक कर दिया गया.

उन्होंने कहा, ‘मैं बैंकों के खिलाफ कुछ नहीं कह सकता लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि गोपनीय जानकारी कैसे साझा कर दी गई.’

दिल के ऑपरेशन के बाद स्वास्थ्यलाभ कर रहे प्रोफेसर रावत ने कहा कि इस मामले में अपनी छवि खराब होने से वह आहत हैं और वह पत्रकार शर्मा के खिलाफ मानहानि का मुकदमा करने पर विचार कर रहे हैं .

यह पूछे जाने पर कि इस मामले में आपका नाम ही क्यों घसीटा गया, प्रोफेसर रावत ने कहा कि यह एक जांच का विषय है, लेकिन उन्हें लगता है कि मुख्यमंत्री रावत जब 2011 में कृषि मंत्री थे, उस दौरान वह उनके कृषि सलाहकार थे और संभवत: इसीलिए उनका नाम लिया गया होगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq