भीमा-कोरेगांवः सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से वरवरा राव की ज़मानत पर जल्द सुनवाई करने को कहा

81 वर्षीय तेलुगू कवि एवं कार्यकर्ता वरवरा राव को एल्गार परिषद मामले में 28 अगस्त 2018 को गिरफ़्तार किया गया था. उनकी पत्नी ने याचिका में कहा है कि राव की तबीयत बहुत ख़राब है, जिसके कारण उनकी लगातार देखभाल की ज़रूरत है.

तेलुगू कवि वरवरा राव. (फोटो: पीटीआई)

81 वर्षीय तेलुगू कवि एवं कार्यकर्ता वरवरा राव को एल्गार परिषद मामले में 28 अगस्त 2018 को गिरफ़्तार किया गया था. उनकी पत्नी ने याचिका में कहा है कि राव की तबीयत बहुत ख़राब है, जिसके कारण उनकी लगातार देखभाल की ज़रूरत है.

तेलुगू कवि वरवरा राव. (फोटो: पीटीआई)
तेलुगू कवि वरवरा राव. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट से भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार तेलुगू कवि और लेखक वरवरा राव की पत्नी की याचिका पर जल्द से जल्द विचार करने को कहा है.

इस तथ्य पर ध्यान देते हुए कि हाईकोर्ट ने 17 सितंबर के बाद से राव की जमानत याचिका पर सुनवाई नहीं की है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राव की चिकित्सा स्थिति को देखते हुए समय पर उनकी याचिका पर ध्यान देने की जरूरत है.

जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस एस. रविंद्र भट की पीठ ने कहा कि यह मामला कैदी के मानवाधिकारों पर सवाल उठाता है.

सुनवाई के दौरान राव की पत्नी पेंड्याला हेमलता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि राव कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिनसे फैसला लेने की उनकी क्षमता और उनकी मानसिक समझ प्रभावित हुई है.

उन्होंने कहा कि अन्य बीमारियों के अलावा राव को हृदय संबंधी समस्याएं हैं और वह कोरोना से जूझ रहे हैं लेकिन उन्हें मेडिकल राय के खिलाफ जाकर मुंबई के नानावती अस्पताल से तलोजा जेल ले जाया गया.

पीठ ने जयसिंह ने कहा कि इस मामले में दायर की गई मेडिकल रिपोर्ट जुलाई महीने की थी.

उन्होंने जयसिंह से पूछा कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी जमानत याचिका पर आखिरी बार कब सुनवाई की थी?

इस पर जयसिंह ने कहा कि अगस्त और फिर 17 सितंबर को जमानत याचिका पर सुनवाई थी लेकिन उसके बाद सुनवाई नहीं हुई क्योंकि पीठ के जजों में से एक ने खुद को मामले की आगे की सुनवाई से अलग कर लिया था.

जयसिंह ने कहा कि अदालत से किए गए बार-बार आग्रह के बावजूद जमानत याचिका पर कोई सुनवाई नहीं हुई, जबकि मेडिकल रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया कि राव उन बीमारियों से जूझ रहे हैं, जिसने उनकी सोचने-समझने की मानसिक क्षमता को प्रभावित किया है.

पीठ ने जयसिंह से पूछा कि क्या इन तथ्यों को हाईकोर्ट के समक्ष लाया गया था तो इस पर उन्होंने कहा कि रजिस्ट्रार को इस बारे में एक पत्र भेजा गया था.

पीठ ने कहा कि वह हाईकोर्ट से जल्द से जल्द राव की जमानत याचिका पर सुनवाई करने का आग्रह करते हैं.

जयसिंह ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका दायर की गई थी.

जयसिंह ने कहा कि राव को उनकी मेडिकल राय के विपरीत जाकर अस्पताल से जेल ले जाया गया और यह उनके स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन है.

पीठ ने कहा कि मामले में संज्ञान लिया गया है इसलिए सुप्रीम कोर्ट यह नहीं कह सकता कि राव को हिरासत में लिया जाना अवैध था और जमानत याचिका के मामले को पहले ही हाईकोर्ट के समक्ष लाया गया है.

पीठ ने कहा कि जहां तक मेडिकल स्थिति का सवाल है, हाईकोर्ट के पास नानावती अस्पताल की रिपोर्ट है लेकिन सुप्रीम कोर्ट को जो बात परेशान कर रही है, वह यह है कि पीठ के एक जज द्वारा खुद को मामले से अलग रखने के बाद इस मामले पर सुनवाई नहीं हो रही है.

जयसिंह ने कहा कि इतना समय बीत चुका है और वरवरा राव की हालत पहले से बहुत खराब हो चुकी है और इस बात की उचित आशंका है कि उनकी जेल में मौत हो सकती है.

पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि वरवरा राव को नानावती अस्पताल से तलोजा जेल क्यों शिफ्ट किया गया?

पीठ ने कहा कि इस मामले में चार्जशीट 2019 में पुणे के विशेष जज के समक्ष दायर की गई थी, जिन्होंने गिरफ्तार शख्स के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया था.

बता दें कि इस महीने की शुरुआत में वरवरा राव की पत्नी पेंड्यला हेमलता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

हेमलता द्वारा दायर याचिका में अदालत से आग्रह किया गया है कि 81 वर्षीय वरवरा राव को अस्थायी चिकित्सा जमानत पर रिहा किया जाए और उन्हें अपने परिवार और प्रियजनों से मिलने के लिए हैदराबाद जाने की अनुमति दी जाए.

उन्होंने राव को इस आधार पर तत्काल रिहा करने की मांग की है कि उन्हें निरंतर हिरासत में रखना क्रूरता और अमानवीय है, जिससे संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता) और हिरासत में उनकी गरिमा का उल्लंघन होता है.

याचिका में कहा गया है कि उनका वजन करीब 18 किलो कम हो गया है और वे कई बीमारियों से पीड़ित हैं.

याचिका में कहा गया है, ‘याचिकाकर्ता के पति की स्वास्थ्य स्थिति बहुत खराब है और वह विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हैं. यह सर्वविदित है कि कोविड-19 मरीजों में समान लक्षण नहीं होते हैं. यह भी पता चला है कि कोविड-19 के कारण कई अंगों पर प्रभाव पड़ता है और प्रत्येक रोगी अलग-अलग लक्षण दिखाते हैं.’

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि जब 28 अगस्त 2018 को राव को गिरफ्तार किया गया था, उस समय उन्हें कोई न्यूरोलॉजिकल समस्या नहीं थी. इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि कोविड-19 और सेंट जॉर्ज अस्पताल में अचानक गिरने के कारण उनमें न्यूरोलॉजिकल समस्याएं आई हैं, जैसा कि 30 जुलाई को नानावती अस्पताल द्वारा पेश किए गए मेडिकल रिपोर्ट में दर्शाया गया है.

बीते जुलाई महीने में वरवरा राव के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी. तब उन्हें सेंट जॉर्ज अस्पताल शिफ्ट किया गया है. हालांकि उनमें कोई लक्षण नहीं थे.

साल 2018 में एल्गार परिषद मामले में पुणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए कई कार्यकर्ताओं और वकीलों में राव भी शामिल हैं. इस मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को स्थानांतरित कर दिया गया है, जिसने बाद में और अधिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को गिरफ्तार किया है.

यह मामला 1 जनवरी, 2018 को पुणे के निकट भीमा कोरेगांव की जंग की 200वीं वर्षगांठ के जश्न के बाद हिंसा भड़कने से संबंधित है, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे.

उसके एक दिन पहले 31 दिसंबर 2017 को पुणे के ऐतिहासिक शनिवारवाड़ा में एल्गार परिषद का सम्मेलन आयोजित किया गया था. आरोप है कि सम्मेलन में एल्गार परिषद समूह के सदस्यों ने भड़काऊ भाषण दिए थे, जिसके अगले दिन हिंसा भड़क गई थी.

(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)