उत्तर प्रदेशः गोहत्या के आरोप में गिरफ़्तार किए गए 11 लोगों के ख़िलाफ़ एनएसए लगाया

उत्तर प्रदेश की बदायूं पुलिस ने आठ अक्टूबर को गोहत्या के आरोप में 11 लोगों को गिरफ्तार किया था. इसके साथ ही घटनास्थल से 200 किलोग्राम मीट, पशुओं की खाल, पशुओं के अंग और गायों को काटने के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले हथियार बरामद किए थे.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

उत्तर प्रदेश के बदायूं ज़िले का मामला. आरोपियों की उम्र 25 से 50 साल के बीच है. फ़िलहाल ये सभी बदायूं ज़िला जेल में बंद हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की बदायूं पुलिस ने आठ अक्टूबर को गोहत्या के आरोप में गिरफ्तार किए गए 11 लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत केस दर्ज किया है.

आरोपियों की उम्र 25 से 50 साल के बीच है और ये सभी बदायूं जिला जेल में बंद हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बदायूं के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रवीण सिंह चौहान ने कहा, ‘पुलिस ने जिला मजिस्ट्रेट को अपनी रिपोर्ट भेजी और प्रक्रिया पूरी होने पर जिला मजिस्ट्रेट ने सभी 11 आरोपियों के खिलाफ एनएसए लगा दिया.’

गिरफ्तार किए गए लोगों में से नौ गुरुपुरी चंदन गांव के निवासी हैं जबकि दो पड़ोसी गांव डालमई के हैं. इनमें से तीन प्रवासी मजदूर हैं, जो कोरोना वायरस की वजह से देशभर में लगे लॉकडाउन के बाद अपने मूल स्थानों पर लौटे थे.

बिनावर पुलिस थाने के एसएचओ राजीव कुमार का कहना है कि इनमें से नौ लोगों का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं हैं और इन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया है.

पुलिस के मुताबिक, ‘उन्हें आठ अक्टूबर को गुरुपुरी चंदन गांव में गोहत्या में शामिल कुछ लोगों की सूचना मिली थी. इसके बाद पुलिस की एक टीम मौके पर पहुंची और आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस को घटनास्थल से 200 किलोग्राम मीट, पशुओं की खाल, पशुओं के अंग और गायों को काटने के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले हथियार मिले.’

उन्होंने कहा कि इसके बाद पशु चिकित्सक को मौके पर बुलाया गया, उन्होंने बरामद मांस की गोमांस के तौर पर पहचान की. कुमार ने कहा कि इसके बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर 11 लोगों को गिरफ्तार किया.

गौरतलब है कि बीते दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य के गोहत्या संरक्षण कानून के मामलों में पुलिस द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस कानून का दुरुपयोग राज्य में निर्दोष लोगों के खिलाफ किया जा रहा है.

अदालत ने कहा था कि जब भी कोई मांस बरामद होता है तो फॉरेंसिक लैब में जांच कराए बिना उसे गोमांस करार दे दिया जाता है. अधिकतर मामलों में बरामद मांस को जांच के लिए लैब नहीं भेजा जाता. इस दौरान आरोपी को उस अपराध के लिए जेल में जाना होता है, जो उसने नहीं किया होता और जिसमें सात साल तक की सजा है और इस पर विचार प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है.

अदालत ने यह भी जोड़ा था, ‘जब भी कोई मांस बरामद होता है, उसका कोई रिकवरी मेमो तैयार नहीं किया जाता और किसी को पता नहीं होता कि बरामदगी के बाद उसे कहां ले जाया जाएगा.’

इससे पहले राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश कुमार अवस्थी ने बताया था कि इस साल 19 अगस्त तक यूपी पुलिस ने राज्य में 139 लोगों के खिलाफ एनएसए लगाया है, जिनमें से 76 मामले गोहत्या से जुड़े हैं.

इनमें से 31 अगस्त तक अकेले बरेली पुलिस जोन में ही 44 लोगों पर एनएसए के तहत मामला दर्ज किया गया था.

एनएसए के अलावा इस साल 26 अगस्त तक यूपी गोहत्या संरक्षण कानून के तहत 1,716 मामले दर्ज किए गए हैं और 4,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

आंकड़ों से पता चलता है आरोपियों के खिलाफ सबूत इकट्ठा करने में असफल रहने पर पुलिस ने 32 मामलों में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की.

बता दें कि उत्तर प्रदेश गोहत्या संरक्षण कानून के तहत राज्य में गोवंश हत्या निषेध है. इसका उल्लंघन करने पर दस साल सश्रम कारावास और पांच लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है

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