सीवान सूत मिल: धराशायी होती कामगारों की उम्मीदें

ग्राउंड रिपोर्ट: 80 के दशक में सीवान में शुरू हुई सूत मिल साल 2000 में मज़दूरों को उनका बकाया दिए बिना ही बंद हो गई. मज़दूरों को लगता था कि मिल दोबारा शुरू होगी, लेकिन चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार द्वारा यहां इंजीनियरिंग कॉलेज बनाने के ऐलान के बाद उनकी रही-सही उम्मीदें भी ख़त्म हो गईं.

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सीवान का बंद पड़ा सूत मिल. (फोटो: मनोज सिंह)

ग्राउंड रिपोर्ट: 80 के दशक में सीवान में शुरू हुई सूत मिल साल 2000 में मज़दूरों को उनका बकाया दिए बिना ही बंद हो गई. मज़दूरों को लगता था कि मिल दोबारा शुरू होगी, लेकिन चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार द्वारा यहां इंजीनियरिंग कॉलेज बनाने के ऐलान के बाद उनकी रही-सही उम्मीदें भी ख़त्म हो गईं.

सीवान का बंद पड़ा सूत मिल. (फोटो: मनोज सिंह)
सीवान की बंद पड़ी सूत मिल. (फोटो: मनोज सिंह)

बिहार में दो दशक से बंद सीवान सूत मिल के मजदूरों को मिल दोबारा शुरू होने की उम्मीद टूट गई है. इस सूत मिल में अपने हाथों से रुई से धागा तैयार करने वाले मजदूर डेढ़ दशक तक काम करने के बाद यहां दो दशक तक इस उम्मीद में हाजिरी बजाते रहे कि किसी न किसी दिन यह सूत मिल चलेगी, लेकिन आज वे अपनी आंखों के सामने इस सूत मिल को धराशायी होते देख रहे हैं.

चुनाव के समय में ही सूत मिल की बिल्डिंग तोड़ी जा रही है. चुनाव के पहले नीतीश सरकार ने घोषणा की कि यहां पर इंजीनियरिंग कॉलेज बनेगा.

पिछले महीने भवन के ध्वस्तीकरण का जून महीने में 9.13 लाख में टेंडर हो गया और कर्मचारियों के विरोध के बावजूद भवन को ध्वस्त करने का काम शुरू कर दिया गया. जून महीने में सूत मिल तोड़ने के प्रयास का मजदूरों ने प्रबल विरोध कर रोक दिया था लेकिन इस बार भारी पुलिस बल की मदद से भवन तोड़ने का काम शुरू कर दिया गया.

सूत मिल में काम करने वाले मजूदर लम्बे अरसे से आंदोलन कर रहे है. इसी वर्ष जून महीने में उन्होंने कई दिन तक धरना दिया था.

सीवान सहकारी सूत मिल कर्मचारी यूनियन के सचिव लाल मोहम्मद बताते हैं, ‘पिछले महीने राता-राती यहां पर इंजीनियरिंग कॉलेज के शिलान्यास का पत्थर लगा दिया गया. हम लोग इंजीनियरिंग कॉलेज बनने का विरोध नहीं कर रहे हैं. हम चाहते थे कि यदि यह सूत मिल नहीं चल पा रही है तो कोई दूसरा लघु उद्योग लगा दिया जाए. यह भी नहीं हो सकता तो सभी मजदूरों को दूसरे उद्योग में समायोजित कर दिया जाए लेकिन हमारी नहीं सुनी गई. पिछले दो दशक से हमारी मजदूरी, पीएफ का पैसा भी नहीं दिया गया.’

यह सूत मिल 1982 में बननी शुरू हुई थी और 1986 में बनकर तैयार हो गई. इसी वर्ष यहां पर 86 मजदूरों की बहाली हुई. लाल मोहम्मद इन्हीं में से एक थे. वे मिल में इंजन चलाने का काम करते थे. वे सूत मिल के पास के ही मोईद्दीनपुर गांव के रहने वाले हैं.

वे बताते हैं, ‘इस सूत मिल में सीवान जिले के दरौली, मैरवा, आंदर, महराजगंज के अलावा गोपालगंज व अन्य स्थानों के मजदूर काम करते थे. सूत मिल की स्थापना के समय 86 मजदूरों की नियुक्ति के बाद 1995 में एक बार में 208 मजदूरों को नियुक्त किया गया. बाद में एक बार फिर 95 मजदूरों को नियुक्त किया गया. जब मिल बंद हुई उस समय 537 मजदूर काम कर रहे थे.’

लाल मोहम्मद सूत मिल बंद होने का कारण कुप्रंधन मानते हैं. उनका कहना है, ‘किसी मशीन में खराबी आने पर फाइल यहां से पटना तक चलती थी और काफी विलंब होता था. कभी यहां पर स्थायी प्रबंध निदेशक की नियुक्ति नहीं हुई. इसी के साथ भागलपुर और मधुबनी में स्थापति हुई सूत मिलों को पहले एक ही प्रबंध निदेशक देखते थे. बाद में अलग-अलग प्रबंध निदेशक बनाए गए. सूत मिल का कच्चा माल भी कुप्रबंधन के कारण समय से नहीं मिल पाता था.’

सीवान की सूत मिल शुरू के डेढ़ दशक तक ठीक से चली लेकिन बाद में इसकी स्थिति डांवाडोल होने लगी. बंद होने के पूर्व एक दशक तक इसे कुछ निजी उद्यमियों के सहयोग से किसी तरह चलाया गया. आखिरकार वर्ष 2000 के आखिर में यह बंद हो गई.

यहां का प्रबंधन देख रहे अधिकारी-कर्मचारी चले गए. तबसे मजदूर रोज इस उम्मीद में यहां अपनी हाजिरी देने आते आ रहे हैं कि कभी तो मिल चलेगी.

लाल मोहम्मद बताते हैं, ‘मिल की बंदी से यहां काम करने वाले मजदूरों की जिंदगी बर्बाद हो गई. घर से कमजोर आर्थिक हालात वाले कई मजदूर आज सीवान में रिक्शा, ठेला चला रहे है. एक मजदूर तो भीख मांग रहे हैं. कई मजदूर पेट्रोल पंप पर काम कर रहे हैं.’

उनके अनुसार एक-एक मजदूर का सरकार के ऊपर आठ-आठ लाख रुपये मजदूरी बकाया है. सरकार को यदि सूत मिल नहीं चलानी थी तो मजदूरी का भुगतान कर दिए होते, तो यह मजदूरों को यह दुर्दिन नहीं देखना पड़ता.

यह सूत मिल 15 एकड़ में स्थापित हुई थी. इसमें से एक एकड़ जमीन बिजली विभाग को दे दी गई. अब इसकी सात एकड़ भूमि इंजीनियरिंग कॉलेज को दे दी गई है. शेष सात एकड़ भूमि पर क्या होगा यह अभी स्पष्ट नहीं है.

बिहार में सीवान सहकारी सूत मिल के अलावा दो और सूत मिल भागलपुर और मधुबनी जिले में हैं. ये दोनों सूत मिल भी बंद है. इनको पुनजीर्वित करने के लिए वर्ष 2013 में सरकार ने आईएलएंडएफएस को जिम्मेदारी थी कि वह बताए कि इसे कैसे शुरू किया जा सकता है लेकिन अब खुद सरकार ही इन सूत मिलों को पुनजीर्वित करने के इरादे से पीछे हट गई.

सीवान में सूत मिल की इसलिए स्थापना की गई थी कि जिले में बुनकरों की अच्छी-खासी संख्या है जो हैंडलूम और पावरलूम पर चादर, तौलिया, लुंगी, बेडशीट, साड़ी बनाने का काम करते थे. इस सूत मिल में रुई से धागा तैयार किया जाता था.

रुई असम से आती थी और यहां तैयार धागा सीवान के बुनकर ले जाते थे. साथ ही यहां बना धागा दिल्ली, कोलकाता और यूपी के खलीलाबाद तक जाता था.

बुनकरों द्वारा तैयार कपड़ों की मांग गिरते जाने से उन्हें दूसरे कामों की तरफ रुख करना पड़ा. इससे धागे की मांग में गिरावट आई. सूत मिल द्वारा तैयार धागा बिक नहीं पा रहा था. इससे सूत मिल लगातार घाटे में जाती गई.

यह सूत मिल कभी अपनी पूरी क्षमता से नहीं चली. लाल मोहम्मद बताते हैं, ‘इस सूत मिल में 52 रिम-फ्रेम लगे थे. यदि यह पूरी क्षमता से चलती तो यहां 1,500 मजदूरों को काम मिलता, लेकिन यह हमेशा 26 रिम-फ्रेम पर ही चला. इस कारण यहां मिल अपनी क्षमता से आधा उत्पादन ही करती थी.’

लाल मोहम्मद कहते हैं, ‘सूत मिल को लुटा दिया. इसका मशीन और भवन चार करोड़ से अधिक है. इसे चलाने में तीन करोड़ की पूंजी की जरूरत थी लेकिन नीतीश सरकार ने यह भी नहीं दिया. आज हम अपनी आंखों से इसे टूटता देख रहे हैं. उनको लगता है कि इंजीनियरिंग कॉलेज बन जाने से सीवान उग जाएगा. देखते हैं कि सीवान कितना उगता है.’

वे बताते हैं, ‘सूत मिल को आज तक घोषित रूप से बंद नहीं किया गया है. कभी नोटिस नहीं लगाया कि कच्चे माल या पूंजी के अभाव में इस सूत मिल को बंद किया गया. न हम लोगों को रिटायर किया न हमारा हिसाब किया गया. कई मजदूर रिटायरमेंट होने के कगार पर हैं. कुछ मजदूरों की मौत भी हो गई है.’

लाल मोहम्मद को क्षीण सी आशा है कि यदि बिहार में सरकार बदल जाए तो नई सरकार इस मिल के बारे में सोचे. वे महागठबंधन और तेजस्वी यादव द्वारा बंद मिलों के बारे में की गई घोषणाओं के प्रति आशावान है.

वे कहते हैं कि सीवान में कल-कारखानों की कमी और यहां से हो रहे पलायन को देखते हुए सरकार को बंद उद्योगों को चलाने और नए कारखानों की स्थापना के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक है.)

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