बिहार: एक लाइब्रेरी, जो मधुबनी क्षेत्र में उर्दू के ख़त्म होने की प्रकृति को बताती है

वीडियो: मधुबनी के एक गांव मोहम्मदपुर में एक शिक्षक मास्टर ज़करिया द्वारा फ़रोग़-ए-अदब लाइब्रेरी की स्थापना साल 1959 में की गई थी. लंबे समय तक इस पुस्तकालय ने सुचारू रूप से काम किया, लेकिन समय के साथ लोगों की रुचियां बदल गईं. फ़ैयाज़ अहमद वजीह और पावनजोत कौर की रिपोर्ट.

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वीडियो: मधुबनी के एक गांव मोहम्मदपुर में एक शिक्षक मास्टर ज़करिया द्वारा फ़रोग़-ए-अदब लाइब्रेरी की स्थापना साल 1959 में की गई थी. लंबे समय तक इस पुस्तकालय ने सुचारू रूप से काम किया, लेकिन समय के साथ लोगों की रुचियां बदल गईं. फ़ैयाज़ अहमद वजीह और पावनजोत कौर की रिपोर्ट.

मधुबनी: छोटे पैमाने पर देखा जाए तो ‘फ़रोग़-ए-अदब’ भारत में उर्दू भाषा के खत्म होने की प्रकृति को दर्शाती है. मधुबनी के एक गांव मोहम्मदपुर में स्कूल शिक्षक मास्टर ज़करिया द्वारा फ़रोग़-ए-अदब लाइब्रेरी की स्थापना साल 1959 में की गई थी.

बाद में, इसकी देख-रेख की ज़िम्मेदारी गांव के कुछ लोगों को सौंप दी गई. उन लोगों ने दशकों तक पुस्तकालय के लिए लगन से काम किया.

उल्लेखनीय है कि इसकी देख-रेख करने वालों में सिर्फ़ मुसलमान नहीं थे. लंबे समय तक इस पुस्तकालय ने सुचारू रूप से काम किया, लेकिन समय के साथ लोगों की रुचियां बदल गईं.

अब दशकों के बाद आसपास के युवा इसको जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं. वो बहुत अच्छी तरह उर्दू और उसका साहित्य नहीं पढ़ सकते, लेकिन ये पुस्तकालय अब उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अध्ययन सामग्री उपलब्ध करा रहा है.

अगर छोटे पैमाने पर देखा जाए तो फ़रोग़-ए-अदब लाइब्रेरी भारत में उर्दू भाषा के खत्म होने की प्रकृति को दर्शाती है.

अब उर्दू साहित्य से हटकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तरफ़ बदलते रुझान को पूरा करने में इस लाइब्रेरी से युवाओं की मदद हो रही है, हालांकि बुज़ुर्ग उर्दू की घटती विरासत को लेकर चिंतित नज़र आते हैं.