आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ याचिकाओं की सुनवाई से जस्टिस यूयू ललित ने ख़ुद को अलग किया

सुप्रीम कोर्ट में दर्ज तीन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने न केवल न्यायपालिका के ख़िलाफ़ आरोप लगाते हुए सीजेआई को पत्र लिखा, बल्कि एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में झूठे बयान भी दिए.

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी, सुप्रीम कोर्ट. जस्टिस यूयू ललित. (फोटो: रॉयटर्स, फेसबुक)

सुप्रीम कोर्ट में दर्ज तीन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने न केवल न्यायपालिका के ख़िलाफ़ आरोप लगाते हुए सीजेआई को पत्र लिखा, बल्कि एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में झूठे बयान भी दिए.

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी, सुप्रीम कोर्ट. जस्टिस यूयू ललित. (फोटो: रॉयटर्स, फेसबुक)
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी और जस्टिस यूयू ललित. (फोटो: रॉयटर्स/फेसबुक)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस यूयू ललित ने सोमवार को उन याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया जिनमें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ न्यायपालिका पर आरोप लगाने के मामले में कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है.

जस्टिस ललित ने कहा, ‘मेरे लिए मुश्किल है. वकील के तौर पर मैंने एक पक्ष का प्रतिनिधित्व किया था. मैं इसे उस पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए आदेश पारित करुंगा जिसमें मैं नहीं रहूं.’

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस ललित ने कहा कि वह रजिस्ट्री को भारत के मुख्य न्यायाधीश से उचित निर्देश लेने और जल्द से जल्द उचित अदालत के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश देंगे.

जस्टिस ललित, जस्टिस विनीत सरण और जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट की पीठ को तीन याचिकाओं पर सुनवाई करनी थी.

इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि रेड्डी ने न केवल न्यायपालिका के खिलाफ आरोप लगाते हुए प्रधान जस्टिस एसए बोबडे को पत्र लिखा, बल्कि एक संवाददाता सम्मेलन करके झूठे बयान भी दिए.

दरअसल, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने छह अक्टूबर को अभूतपूर्व तरीके से सीजेआई को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि उनकी लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को ‘अस्थिर करने और गिराने के लिए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है.’

इसको लेकर तीन अलग-अलग याचिकाएं वकील जीएस मणि, वकील सुनील कुमार सिंह तथा ‘एंटी-करप्शन काउंसिल ऑफ इंडिया ट्रस्ट’ की ओर से दायर की गई हैं.

लाइव लॉ के अनुसार, मणि द्वारा दायर की गई याचिका न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अखंडता के महत्व को रेखांकित करती है और जगन से यह घोषित करने के लिए मांग करती है कि उनके पास अपना पद संभालने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह इसका दुरुपयोग कर रहे हैं.

सुनील कुमार सिंह ने अपनी याचिका में कहा कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री को यह स्पष्ट करने के लिए एक कारण बताओ नोटिस जारी किया जाना चाहिए कि उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए.

बता दें कि इससे पहले अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने जगन रेड्डी के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था.

उन्होंने कहा था कि सीजेआई बोबडे को इस मामले की जानकारी है. उनके लिए इस पर अपनी सहमति देना और इस मामले पर मुख्य न्यायाधीश के विचार को रोकना अनुचित होगा.

हालांकि, अवमानना की कार्यवाही की इजाजत देने से इनकार करने के बावजूद वेणुगोपाल पत्र लिखने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय की इस बात से सहमत थे कि मुख्यमंत्री ने छह अक्टूबर को सीजेआई को लिखे पत्र में आपत्तिजनक टिप्पणियां की हैं.

कई हाईप्रोफाइल मामलों की सुनवाई से खुद को अलग कर चुके हैं जस्टिस ललित

सुप्रीम कोर्ट ऑब्जर्वर की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस यूयू ललित कई बड़े मामलों से खुद को अलग कर चुके हैं. इनमें साल 2014 में याकूब मेमन द्वारा दाखिल वह याचिका शामिल है जिसमें उन्होंने अपनी मौत की सजा को बरकरार रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के लिए समीक्षा याचिका दाखिल की थी.

इसके साथ ही उन्होंने साल 2015 में 2008 के मालेगांव बम धमाकों की स्वतंत्र सुनवाई की मांग वाली याचिका की सुनवाई से भी खुद को अलग कर लिया था.

साल 2016 में उन्होंने स्वयंभू संत आसाराम की सुनवाई मामले में मुख्य गवाह के लापता होने के जांच की मांग वाली याचिका से भी खुद को अलग कर लिया था.

साल 2019 में उन्होंने उस संविधान पीठ का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था जो अयोध्या जमीन विवाद मामले की सुनवाई करने वाली थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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