कोरोना से पहले ही धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद की महामारी का शिकार हुआ देश: अंसारी

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर की नई किताब के डिजिटल विमोचन पर पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि आज देश ऐसे ‘प्रकट या अप्रकट’ तौर पर ऐसे विचार और विचारधाराओं से ख़तरे में है जो उसे ‘हम और वो’ की काल्पनिक श्रेणी के आधार पर बांटने की कोशिश करते हैं.

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New Delhi: Former vice president Hamid Ansari speaks during the release of his book titled 'Dare I Question?', in New Delhi on Tuesday, July 17, 2018. (PTI Photo/Kamal Singh) (PTI7_17_2018_000158B)
पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी. (फोटो: पीटीआई)

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर की नई किताब के डिजिटल विमोचन पर पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि आज देश ऐसे ‘प्रकट या अप्रकट’ तौर पर ऐसे विचार और विचारधाराओं से ख़तरे में है जो उसे ‘हम और वो’ की काल्पनिक श्रेणी के आधार पर बांटने की कोशिश करते हैं.

New Delhi: Former vice president Hamid Ansari speaks during the release of his book titled 'Dare I Question?', in New Delhi on Tuesday, July 17, 2018. (PTI Photo/Kamal Singh) (PTI7_17_2018_000158B)
पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भारत के  पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने शुक्रवार को कहा कि आज देश ऐसे ‘प्रकट और अप्रकट’ विचारों एवं विचारधाराओं से खतरे में दिख रहा है जो उसको ‘हम और वो’ की काल्पनिक श्रेणी के आधार पर बांटने की कोशिश करती हैं.

अंसारी ने यह भी कहा कि कोरोना वायरस संकट से पहले ही भारतीय समाज दो अन्य महामारियों- धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद का शिकार हो चुका था, जबकि इन दोनों के मुकाबले देशप्रेम अधिक सकारात्मक अवधारणा है, क्योंकि यह सैन्य और सांस्कृतिक रूप से रक्षात्मक है.

वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर की नई पुस्तक ‘द बैटल ऑफ बिलॉन्गिंग’ के डिजिटल विमोचन के मौके पर बोल रहे थे.

उनके मुताबिक, चार वर्षों की अल्प अवधि में भी भारत ने एक उदार राष्ट्रवाद के बुनियादी नजरिये से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की एक ऐसी नई राजनीतिक परिकल्पना तक का सफर तय कर लिया, जो सार्वजनिक तौर में मजबूती से घर कर गई है.

पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस (किताब) में भारत के एक आदर्श को लेकर एक भावुक दलील है, वो आदर्श, जिसे हमारी पीढ़ी द्वारा हल्के में लिया गया और जो अब ‘प्रकट और अप्रकट’ विचारों एवं विचारधाराओं के चलते खतरे में दिख रहा है, जो देश को ‘हम और वो’ की काल्पनिक श्रेणी के आधार पर बांटने की कोशिश करती हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘अब तक हमारे मूल्यों एक बहुसंख्यक समाज, एक लोकतांत्रिक राजनीति को और धर्मनिरपेक्ष राज्य के वास्तविकता के तौर पर देखा जाता था. इन्हीं मूल्यों को आजादी के आंदोलन में स्वीकारा गया और इन्हें ही संविधान और उसकी प्रस्तावना में शामिल किया गया.’

उन्होंने आगे कहा, ‘भारतीय समाज के बहुसंख्यक होने का सामाजिक प्रमाण 4,635 समुदाय हैं. हर पांचवा भारतीय किसी मान्यता प्राप्त धार्मिक अल्पसंख्यक समूह का है.’

पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘इसी वैविध्य को नई विचारधारा एक ‘काल्पनिक इतिहास पर आधारित आस्था के आधार पर एक जैसा करना चाहती है.’

अंसारी ने कहा, ‘कोविड-19 एक बड़ी महामारी है, लेकिन उससे पहले हमारा समाज दो और महामारियों का शिकार है- धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद.

उन्होंने यह भी कहा कि धार्मिक कट्टरता और उग्र राष्ट्रवाद के मुकाबले देशप्रेम ज्यादा सकारात्मक अवधारणा है क्योंकि क्योंकि यह सैन्य और सांस्कृतिक दोनों तरह से रक्षात्मक है और भद्र भावनाओं को प्रेरित करती है, लेकिन इसे भी आप से बाहर होने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

अलेफ बुक कंपनी द्वारा प्रकाशित इस किताब में थरूर ने हिंदुत्व के सिद्धांत और नागरिकता संशोधन कानून- जिसे उन्होंने भारतीयता की बुनियाद को दी हुई चुनौती कहा है, की तीखी आलोचना की है.

उन्होंने कहा है कि हिंदुत्व एक राजनीतिक सिद्धांत है न कि धार्मिक. इस समारोह में थरूर ने कहा कि भाजपा ने सत्ता में बीते छह साल आईडिया ऑफ इंडिया का विरोध करते हुए बिताये हैं, जहां उनका कहना है कि इसका कोई विकल्प हो सकता है.

किताब पर हो रही चर्चा में हिस्सा लेते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कहा, ‘1947 में हमारे पास मौका था कि हम पाकिस्तान के साथ चले जाते, लेकिन मेरे पिता और अन्य लोगों ने यही सोचा था कि दो द्विराष्ट्र का सिद्धांत हमारे लिए नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई हमसे अलग नहीं हैं क्योंकि वे सब भी इंसान हैं और इसलिए हमने महात्मा गांधी का, जवाहरलाल नेहरू का भारत चुना, वो भारत जो सबका है.’

उन्होंने कहा, ‘इस सरकार के आने तक मैं यही सोचता था. उन्हें लगता है कि केवल हिंदू ही भारतीय हो सकते हैं और उनके अलावा बाकी सभी भारतीय नहीं है, सेकेंड क्लास नागरिक हैं. मैं मरते दम तक कभी यह स्वीकार नहीं कर सकता.’

उन्होंने आगे जोड़ा, ‘मेरा मानना है कि यह हमारा है, हमारी सरजमीं. हम यहां बड़े हुए, पढ़े-लिखे, हमने इसे बढ़ाया, हमारे परिवार यहां रहते हैं, हमारे पुरखे यहीं दफ़न हैं, यह मेरे लिए उतना ही अच्छा है जितना किसी हिंदू के लिए. आज हमें बांटा जा रहा है, धर्म के आधार पर, जाति  पर.’

जम्मू कश्मीर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, ‘तानाशाह आते हैं, जाते हैं, देश बने रहते हैं और मुझे यकीन है कि यह देश भी बना रहेगा, ये विभाजनकारी जाएंगे.’

उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार देश को जिस तरह से देखना चाहती है उसे वह कभी स्वीकार नहीं करने वाले हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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