कोरोना के चलते स्वास्थ्य पर अत्यधिक ख़र्च और ग़रीबी बढ़ने की आशंका: संसदीय समिति

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर संसद की स्थायी समिति ने कोरोना महामारी को लेकर सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और इससे विभिन्न क्षेत्रों में पड़े प्रभावों का आकलन किया है. समिति ने कहा है कि स्वास्थ्य सेवा की ख़राब स्थिति को लेकर चिंतित है और सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य में निवेश बढ़ाने की सिफ़ारिश करती है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर संसद की स्थायी समिति ने कोरोना महामारी को लेकर सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और इससे विभिन्न क्षेत्रों में पड़े प्रभावों का आकलन किया है. समिति ने कहा है कि स्वास्थ्य सेवा की ख़राब स्थिति को लेकर चिंतित है और सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य में निवेश बढ़ाने की सिफ़ारिश करती है.

A woman leans against a stretcher holding her husband in the corridor of the emergency ward of Jawahar Lal Nehru Medical College and Hospital, during the coronavirus disease (COVID-19) outbreak, in Bhagalpur, in the eastern state of Bihar, India, July 27, 2020. REUTERS/Danish Siddiqui
(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: संसद की एक समिति ने कोरोना महामारी के कारण स्वास्थ्य पर अप्रत्याशित खर्च के चलते कई परिवारों के गरीबी रेखा से नीचे जाने की संभावनाओं को लेकर चिंता जाहिर की है.

संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लॉकडाउन के दौरान हॉस्पिटल के कई विभागों को बंद करने के कारण स्वास्थ्य सुविधाएं काफी प्रभावित हुई हैं और इसका सबसे ज्यादा खामियाजा महिलाओं को उठाना पड़ा है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर संसद की स्थायी समिति ने कोरोना महामारी को लेकर सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और इससे विभिन्न क्षेत्रों में पड़े प्रभावों का आकलन किया है और इस पर एक रिपोर्ट तैयार कर राज्यसभा चेयरमैन एम. वैंकैया नायडू को सौंप दिया है.

यह महामारी का पहला आधिकारिक आकलन है.

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोविड-19 मामलों को ध्यान में रखते हुए अस्पतालों में बेड्स की संख्या काफी अपर्याप्त थी. जब केस और बढ़ने लगे तो अस्पतालों में खाली बेड नहीं मिलने की भयावह तस्वीर सामने आई और इसके चलते अस्पतालों से मरीजों को लौटाना एक सामान्य सी बात हो गई.

उन्होंने आगे कहा, ‘ये समिति स्वास्थ्य सेवा की खराब स्थिति को लेकर बहुत चिंतित है और इसलिए सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य में निवेश बढ़ाने और देश में स्वास्थ्य सेवाओं/सुविधाओं के विकेंद्रीकरण के लिए उचित कदम उठाने की सिफारिश करती है.’

समिति ने ये भी कहा कि सरकारी अस्पतालों में ओपीडी सेवाओं को बंद करने के कदम ने स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को एकदम निष्क्रिय कर दिया और इसके चलते गैर-कोविड मरीजों विशेषकर महिलाओं एवं घातक बीमारी वाले मरीजों को सबसे ज्यादा खामियाजा उठाना पड़ा.

इसके साथ ही संसदीय समिति ने इलाज में भारी खर्च पर भी चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि महामारी के चलते लोगों को स्वास्थ्य पर अत्यधिक खर्च करना पड़ा है. इसके चलते कई परिवारों के गरीबी रेखा से नीचे जाने की आशंका है.

समिति ने कहा कि कोरोना के इलाज में आने वाले खर्च के लिए यदि एक उपयुक्त मॉडल तैयार किया जाता तो इससे कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी. उन्होंने कहा कि सरकार ने पीपीपी मॉडल के तहत निजी अस्पतालों के साथ बेहतर साझेदारी की रणनीति बनानी चाहिए थी.

संसदीय समिति ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को लगातार ये कोशिश करते रहना चाहिए कि कोरोना के चलते लोगों का अत्यधिक खर्च न हो.

उन्होंने कहा कि खराब कॉन्ट्रैक्ट ट्रेसिंग और शुरुआत में धीमी गति से जांच के चलते संक्रमण के मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई. यह सरकारी संस्थाओं की विफलता को दर्शाता है.

समिति ने कहा कि भारत सरकार को अपनी संस्था नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल-इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम (एनसीडीसी-आईडीएसपी) का अच्छे ढंग से इस्तेमाल करना चाहिए था, ताकि संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता. 

संसदीय समिति ने कहा कि वो इस बात को लेकर चिंतित है कि कम विश्वसनीय टेस्ट किए जा रहे हैं, जिसके चलते जांच रिपोर्ट गलत/निगेटिव आने के संभावना काफी अधिक है. उन्होंने कहा कि सरकार को रैपिड एंटीजन, आरटी-पीसीआर और अन्य टेस्ट की सत्यता का पता लगाना चाहिए, ताकि देश में टेस्टिंग की वास्तविक तस्वीर सामने आ सके.

समिति ने कहा कि ऐसे टेस्ट की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए जो ज्यादा से ज्यादा संख्या में सही परिणाम देते हों. इसके साथ ही समिति ने ये भी नोट किया कि टेस्टिंग की सुविधा सिर्फ बड़े जिलों एवं शहरों में ही है, ग्रामीण क्षेत्रों में ये व्यवस्था नहीं होने से बड़ी संख्या में मामले सामने नहीं आ रहे हैं.

समिति ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग में संलग्न सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) के साथ दुर्व्यवहार के मामलों पर नाराजगी व्यक्त की है और कहा कि यह ध्यान दें कि सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को मजदूरी से वंचित किया गया था, जबकि इस महामारी में वे जमीन पर डटे हुए थे.

रिपोर्ट में कहा गया है कि उचित प्रशिक्षण, प्रोत्साहन और सहायता के बिना बड़े कार्य को पूरा करने के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से अपेक्षा करना बहुत अधिक है.

संसदीय समिति ने लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के खिलाफ बढ़ते मामले खासकर घरेलू हिंसा पर भी संज्ञान लिया है. उन्होंने कहा कि महामारी ने महिलाओं पर न केवल सामाजिक और मानसिक रूप से प्रतिकूल प्रभाव डाला है, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं और विशेष रूप से यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बाधित की है.

उन्होंने कहा, ‘समिति सरकार को ऐसी महिलाओं की पहचान करने की सिफारिश करती है, जो महामारी के दौरान यौन और घरेलू हिंसा की शिकार हुई हैं और सरकार उनका पुनर्वास करे. मंत्रालय महिलाओं के लिए विशिष्ट हॉटलाइन, टेलीमेडिसिन सेवाएं, रेप क्राइसिस सेंटर बनाए.’

समिति ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान मानसिक स्वास्थ्य के मामलों में काफी वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा कि रोजगार संकट और सामाजिक अलगाव ने आम जनता के बीच मनोवैज्ञानिक दबाव को बढ़ा दिया है.

उन्होंने कहा, ‘इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि दोस्तों या परिवार के साथ संपर्क में रहने तनाव से मुकाबला करने में मदद मिलती है, लेकिन लॉकडाउन के दौरान अकेले रहने के कारण डिप्रेशन के मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है.

इसके अलावा संसदीय समिति ने स्कूल बंद होने के कारण बच्चों को घरों में ही सिमटे रहने को लेकर चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि देश में डिजिटल असमानता के कारण लाखों गरीब बच्चों का भविष्य अधर में लटका हुआ है.

संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि सरकार डिजिटल एवं ऑनलाइन क्लास के नेटवर्क को और मजबूत करे तथा स्थिति सामान्य होने पर आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के बच्चों के लिए अतिरिक्त क्लास लगाए जाने चाहिए.

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