केंद्र ने पूर्व पर्यावरणीय मंज़ूरी की वैधता को बढ़ाने के लिए ईआईए क़ानून में संशोधन किया

इस विवादास्पद क़ानून में कुछ उद्योगों को सार्वजनिक सुनवाई से छूट देना, उद्योगों को सालाना दो अनुपालन रिपोर्ट के बजाय एक पेश करने की अनुमति देना और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में लंबे समय के लिए खनन परियोजनाओं को मंज़ूरी देने जैसे प्रावधान शामिल हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

इस विवादास्पद क़ानून में कुछ उद्योगों को सार्वजनिक सुनवाई से छूट देना, उद्योगों को सालाना दो अनुपालन रिपोर्ट के बजाय एक पेश करने की अनुमति देना और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में लंबे समय के लिए खनन परियोजनाओं को मंज़ूरी देने जैसे प्रावधान शामिल हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: कोरोना महामारी को संज्ञान में लेते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ‘पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी’ की वैधता को बढ़ाने के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना, 2006 में संशोधन किया है.

मंत्रालय ने कहा, ‘इस अधिसूचना के प्रावधानों के अधीन स्वीकृत की गई पूर्व पर्यावरण अनापत्तियों की विधिमान्यता (वैधता), जो कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में समाप्त हो रही है, को 31 मार्च 2021 या वैधता समाप्ति की तारीख से छह महीने तक बढ़ाया जाता है.’

सरकार का कहना है कि ऐसा निर्णय उन परियोजनाओं के लिए लिया गया है, जिसका संचालन कोरोना वायरस के प्रकोप और इसके लिए घोषित लॉकडाउन के कारण रुका हुआ है.

पर्यावरण मंत्रालय ने कहा, ‘कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए और इसके नियंत्रण के लिए घोषित लॉकडाउन (पूर्ण या आंशिक) ने क्षेत्र में परियोजनाओं और क्रियाकलापों के कार्यान्वयन को प्रभावित किया है, क्योंकि कोविड-19 महामारी अभी समाप्त नहीं हुई है.’

मंत्रालय ने कहा कि उन्हें पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी की अधिकतम अवधि से अधिक समय के लिए वैधता विस्तार को लेकर अनुरोध प्राप्त हुए हैं. उन्होंने कहा, ‘मंत्रालय में मामले की पड़ताल की गई है और लॉकडाउन के कारण (पूर्ण या आंशिक) क्षेत्र में क्रियाकलापों का जारी रखना कठिन हो सकता है, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए चिंता वास्तविक है.’

पर्यावरणीय मंजूरी की वैधता का मतलब है कि किसी भी प्रोजेक्ट या कार्य के लिए ली गई पूर्व पर्यावरण मंजूरी कितने समयसीमा के लिए वैध है. इस प्रोजेक्ट की प्रकृति के हिसाब से अलग-अलग होता है.

पर्यावरण मंत्रालय द्वारा बीते 23 मार्च को जारी मसौदा ईआईए अधिसूचना को लेकर बीते 11 अगस्त तक जनता के विचार और सुझाव आमंत्रित थे. इसके लिए इसका विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कराने का मुद्दा भी उठा था.

बीते अगस्त माह में द वायर  ने रिपोर्ट कर बताया था कि दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश के बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने ईआईए अधिसूचना, 2020 के ड्राफ्ट को संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गई 22 भाषाओं में अनुवाद करने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों को पत्र लिखा था, लेकिन अभी तक इसमें से सिर्फ तीन भाषाओं में इसका अनुवाद हो पाया है.

पर्यावरण मंत्रालय ने खुद अनुवाद करने के बजाय ये काम राज्य सरकारों पर सौंपा और अब तक केंद्र इन राज्यों को इस संबंध में कुल पांच रिमाइंडर भेज चुका है, लेकिन कुल मिलाकर 19 में से सिर्फ तीन राज्यों से इसका जवाब आया है.

अधिसूचना के ड्राफ्ट का 22 भाषाओं में अनुवाद कराने के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा दायर की गई याचिका बीते 13 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी.

इस विवादास्पद अधिसूचना में कुछ उद्योगों को सार्वजनिक सुनवाई से छूट देना, उद्योगों को सालाना दो अनुपालन रिपोर्ट के बजाय एक पेश करने की अनुमति देना और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में लंबे समय के लिए खनन परियोजनाओं को मंजूरी देने जैसे प्रावधान शामिल हैं.

बीते सितंबर माह में देशभर से 500 शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों और विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के अनुसंधानकर्ताओं ने ईआईए अधिसूचना वापस लेने और वर्तमान ईआईए 2006 अधिसूचना को एक नए प्रस्ताव से मजबूती प्रदान करने का आग्रह किया है.

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