कोरोना मरीज़ों के घरों पर पोस्टर लगाने से उनके साथ हो रहा अछूतों जैसा व्यवहार: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल एक जनहित याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 संक्रमण के कारण पोस्टर घर के बाहर लगाने और मरीज़ों के नाम को रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन तथा वॉट्सऐप ग्रुप पर साझा करने से न सिर्फ़ उनके साथ भेदभाव हो रहा है, बल्कि बिना वजह लोगों का ध्यान उन पर जा रहा है.

A board put up by the District Magistrate (East Delhi) at the house of a coronavirus-affected patient in east Delhi | Manvender Vashist | PTI

सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल एक जनहित याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 संक्रमण के कारण पोस्टर घर के बाहर लगाने और मरीज़ों के नाम को रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन तथा वॉट्सऐप ग्रुप पर साझा करने से न सिर्फ़ उनके साथ भेदभाव हो रहा है, बल्कि बिना वजह लोगों का ध्यान उन पर जा रहा है.

New Delhi: A view of the Supreme Court of India in New Delhi, Monday, Nov 12, 2018. (PTI Photo/ Manvender Vashist) (PTI11_12_2018_000066B)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कोविड-19 मरीजों के मकान के बाहर पोस्टर लग जाने के बाद उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार हो रहा है और यह एक अलग तरह की जमीनी हकीकत बयान करता है.

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कोरोना मरीजों के घर के बाहर पोस्टर लगाने का उद्देश्य उनके साथ भेदभाव करना नहीं, बल्कि यह अन्य लोगों की सुरक्षा की मंशा से किया गया था.

जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. कोरोना मरीजों के घर के बाहर ऐसा पोस्टर लगाने से उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार हो रहा है.

मामले में केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि कुछ राज्य संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अपने स्तर पर ऐसा कर रहे हैं.

मेहता ने कहा कि कोविड-19 मरीजों के घर पर पोस्टर चिपकाने का तरीका खत्म करने के लिए देशव्यापी दिशानिर्देश जारी करने का अनुरोध करने वाली याचिका पर अदालत के आदेश पर केंद्र अपना जवाब दे चुका है.

पीठ ने कहा, केंद्र द्वारा दाखिल जवाब को रिकॉर्ड पर आने दें, उसके बाद गुरुवार को हम इस पर सुनवाई करेंगे.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पांच नवंबर को केंद्र से कहा था कि वह कोविड-19 मरीजों के मकान पर पोस्टर चिपकाने का तरीका खत्म करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने पर विचार करे.

अदालत ने कुश कालरा की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को औपचारिक नोटिस जारी किए बिना जवाब मांगा था.

पीठ ने कहा था कि जब दिल्ली सरकार हाईकोर्ट में मरीजों के मकानों पर पोस्टर नहीं लगाने पर राजी हो सकती है तो इस संबंध में केंद्र सरकार पूरे देश के लिए दिशानिर्देश जारी क्यों नहीं कर सकती.

आम आदमी पार्टी की सरकार ने तीन नवंबर को दिल्ली हाईकोर्ट को बताया था कि उसने अपने सभी जिलों को निर्देश दिया है कि वे कोविड-19 मरीजों या आइसोलेशन में रह रहे लोगों के मकानों पर पोस्टर न लगाएं और पहले से लगाए गए पोस्टरों को भी हटा लें.

दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया था कि सरकारी अधिकारियों को कोविड-19 मरीजों से जुड़ी जानकारी पड़ोसियों, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशंस (आरडब्ल्यूए) या वॉट्सऐप ग्रुप पर साझा करने की भी अनुमति नहीं दी गई है.

बता दें कि कालरा ने हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में कहा था कि कोविड-19 मरीज के नाम को आरडब्ल्यूए और वॉट्सऐप ग्रुप पर साझा करने से न सिर्फ उनके साथ भेदभाव हो रहा है बल्कि बिना वजह लोगों का ध्यान उन पर जा रहा है.

याचिका में कहा गया कि कोविड-19 मरीजों की निजता का सम्मान करना चाहिए और उन्हें इस महामारी से उबरने के लिए शांति और लोगों की घूरती हुई नजरों से दूर रखा जाना चाहिए, लेकिन इसके बजाय उन्हें दुनिया की नजरों के सामने लाया जा रहा है.

याचिका में कहा गया कि सार्वजनिक रूप से अपमानित और भेदभाव होने से बचने के लिए लोग अपनी कोविड-19 जांच कराने से हिचक रहे हैं, और यह सब कुछ मरीजों के मकानों पर पोस्टर चिपकाने का नतीजा है.

इस मामले में अगली सुनवाई तीन दिसंबर को होगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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