यूपी: धान की ख़रीदी लक्ष्य से 50 फ़ीसदी कम, रजिस्ट्रेशन कराए पांच लाख किसानों से नहीं हुई ख़रीद

विशेष रिपोर्ट: उत्तर प्रदेश में धान की ख़रीद शुरू होने पर योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि किसी भी किसान को एमएसपी से कम मूल्य पर अपने कृषि उत्पादन नहीं बेचना है. हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुकाबले प्रदेश की मंडियों में एमएसपी से कम पर बिक्री तो हो ही रही है, सरकारी ख़रीद भी काफी कम है. रफ़्तार इतनी धीमी है कि ख़रीद केंद्र एक दिन में दो किसानों से भी धान नहीं ख़रीद पा रहे हैं.

Jalandhar: Farmers thrash rice paddy at a field, in Jalandhar, Friday, Oct. 2, 2020. (PTI Photo)

विशेष रिपोर्ट: उत्तर प्रदेश में धान की ख़रीद शुरू होने पर योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि किसी भी किसान को एमएसपी से कम मूल्य पर अपने कृषि उत्पादन नहीं बेचना है. हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुकाबले प्रदेश की मंडियों में एमएसपी से कम पर बिक्री तो हो ही रही है, सरकारी ख़रीद भी काफी कम है. रफ़्तार इतनी धीमी है कि ख़रीद केंद्र एक दिन में दो किसानों से भी धान नहीं ख़रीद पा रहे हैं.

Amritsar: Farmers plant paddy seedlings in a field in a village near Amritsar on Friday. PTI Photo (PTI6_16_2017_000065B)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश समेत देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे कृषि आंदोलनों के बीच तीन विवादित कृषि कानूनों का समर्थन करने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खुद के ही नेतृत्व वाले राज्य में धान की खरीद लक्ष्य से काफी कम है.

यूपी सरकार ने खरीफ-2020 सीजन में 55 लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा था. लेकिन आलम ये है कि अभी तक लक्ष्य की तुलना में महज 50 फीसदी धान की सरकारी खरीद हुई है, जबकि खरीद शुरू हुए दो महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है.

इतना ही नहीं सरकारी रेट पर धान बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन कराए किसानों में से 5.50 लाख से ज्यादा किसानों से खरीद नहीं हुई है. देश के बड़े धान उत्पादक राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश में धान की खरीदी इस कदर धीमी रफ्तार पर है कि राज्य के खरीद केंद्र एक दिन में दो किसानों से भी धान नहीं खरीद पा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के खाद्य एवं रसद विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, सात दिसंबर तक राज्य में 28.39 लाख टन धान की सरकारी खरीद हुई है. यह राज्य सरकार द्वारा 55 लाख टन धान खरीदने के लक्ष्य की तुलना में सिर्फ 51.61 फीसदी ही है.

ये स्थिति ऐसे समय पर है जब राज्य में 11 खरीद एजेंसियां लगाई गई हैं और प्रदेश के विभिन्न जिलों में इनके 4,330 खरीद केंद्र धान की खरीदी कर रहे हैं, लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि खरीदी को लेकर सभी एजेंसियों का प्रदर्शन खराब ही है.

उत्तर प्रदेश के खाद्य विभाग की विपणन शाखा (एफसीएस) ने अपने 1,232 खरीद केंद्रों के जरिये सबसे ज्यादा 22.50 लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा था. हालांकि इसमें से 9.77 लाख टन की ही सरकारी खरीद हुई है, जो कि लक्ष्य की तुलना में 50 फीसदी से भी कम है.

इसी तरह उत्तर प्रदेश सहकारी संघ (पीसीएफ) ने इस बार 13 लाख टन धान खरीदने का टार्गेट बनाया था और उन्होंने कुल 1,450 खरीद केंद्र लगाए थे. लेकिन इसमें से 6.87 लाख टन की ही खरीदी हो पाई है.

उत्तर प्रदेश को-ऑपरेटिव यूनियन (यूपीसीयू) ने छह लाख टन खरीदी का लक्ष्य रखा है और इसके लिए 547 केंद्र लगाए गए हैं. यूपीसीयू ने 5.33 लाख टन की खरीदी की है, जो कि अन्य एजेंसियों की तुलना में काफी अच्छा प्रदर्शन है.

इसके अलावा केंद्र के भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने अपने 104 खरीद केंद्रों के जरिये उत्तर प्रदेश में दो लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इसमें से सिर्फ 45,957 टन की ही खरीदी हुई है.

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(स्रोत: खाद्य एवं रसद विभाग, उत्तर प्रदेश)

इसी तरह भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ मर्यादित (एनसीसीएफ) और उत्तर प्रदेश उपभोक्ता सहकारी संघ (यूपीएसएस) ने 2.5-2.5 लाख टन खरीदी का टार्गेट रखा था, लेकिन इसमें से एनसीसीएफ ने 90,577 टन और यूपीएसएस ने 94,560 टन की खरीदी की है.

उत्तर प्रदेश कर्मचारी कल्याण निगम (केकेएन) ने एक लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इसमें से महज 72.36 टन की खरीद हुई है.

मालूम हो कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक अक्टूबर से धान खरीद की घोषणा करते हुए कहा था कि राज्य में किसी भी किसान को एमएसपी से कम मूल्य पर धान नहीं बेचना है.

उन्होंने ट्वीट कर कहा था, ‘किसान बहनों-भाइयों को राम-राम! प्रभु कृपा से इस वर्ष धान की पैदावार बहुत अच्छी हुई है. आपके हित को ध्यान में रखते हुए हमने इस वर्ष धान कॉमन का समर्थन मूल्य 1868 रुपये प्रति क्विंटल तथा ग्रेड-ए धान का 1888 रुपये क्विंटल निर्धारित किया है. कृपया एमएसपी से कम कीमत पर कहीं भी धान बिक्री न करें.’

हालांकि सरकारी खरीद न होने और इसके परिणामस्वरूप बाजार मूल्य कम रहने के कारण किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दाम पर अपने उत्पाद को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

बाजार मूल्य की जानकारी देने वाली कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की एजेंसी एगमार्कनेट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की मंडियों में गेहूं का बाजार मूल्य नवंबर महीने में औसतन 1765.82 रुपये और अक्टूबर महीने में 1557.54 रुपये प्रति क्विंटल था, जो कि एमएसपी से काफी कम है.

चूंकि धान की एमएसपी 1868 रुपये प्रति क्विंटल है, इस तरह यूपी के किसानों को अक्टूबर में प्रति क्विंटल धान बिक्री पर औसतन 310.46 रुपये और नवंबर में 102.18 रुपये का घाटा हुआ है.

कुल 5.50 लाख से ज्यादा किसानों से खरीद नहीं हुई

खाद्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 1,087,510 किसानों ने धान की सरकारी खरीद के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन सात दिसंबर तक इसमे से 519,074 किसानों से ही खरीद हो पाई है.

इस तरह रजिस्ट्रेशन कराए 568,436 किसानों से धान की सरकारी खरीद नहीं हुई है, जबकि खरीद शुरू हुए दो महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है और सरकारी खरीद जल्द ही बंद होने वाली है. जाहिर है कि राज्य सरकार द्वारा खरीद नहीं किए जाने पर किसानों द्वारा एमएसपी से कम दाम पर अपनी उपज बेचने की आशंका है. 

राज्य के 18 मंडल में से अलीगढ़ मंडल में 6319, आगरा में 6351, आजमगढ़ में 44,395, इलाहाबाद में 75,196, कानपुर में 63,088, गोरखपुर में 70,268, चित्रकूट में 12,356, झांसी में 849, देवीपाटन में 52,054, फैजाबाद में 123,849, बरेली में 187,606, बस्ती में 34,212, मेरठ में 1808, मुरादाबाद में 97,673, मिर्जापुर में 68,348, लखनऊ में 161,116, वाराणसी में 68,861 और सहारनपुर मंडल में 13,161 किसानों ने सरकारी दाम (एमएसपी) पर धान बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है.

एमएसपी की सिफारिश करने वाली केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन संस्था कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के सिर्फ 3.6 फीसदी किसानों को ही एमएसपी पर सरकारी खरीद का लाभ मिलता है, जबकि धान उत्पादन के मामले में पश्चिम बंगाल के बाद दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश का स्थान है.

देश के कुल धान उत्पादन में 13 फीसदी हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की है. इसके उलट पंजाब के 95 फीसदी से अधिक और हरियाणा के 69.9 फीसदी किसानों को सरकारी खरीद लाभ मिलता है.

Jalandhar: Farmers thrash rice paddy at a field, in Jalandhar, Friday, Oct. 2, 2020. (PTI Photo)
(फोटो: पीटीआई)

सीएसीपी ने अपनी कई रिपोर्ट्स में ये कहा है कि किसानों को एमएसपी दिलाने और घरेलू बाजार में एमएसपी से कम मूल्य बिक्री की समस्या का समाधान करने के लिए खरीदी मशीनरी को मजबूत करने की जरूरत है.

ये पहला मौका नहीं है, जब राज्य सरकार ने लक्ष्य से कम खरीद की है. राज्य की भाजपा सरकार के पिछले तीन सालों में दो बार ऐसा हुआ जब लक्ष्य से काफी कम खरीद हुई है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा विधानसभा में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक, सरकार ने वर्ष 2017-18, 2018-19 और 2019-20 में 50 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था.

हालांकि राज्य सरकार इन वर्षों के दौरान क्रमश: 42.90 लाख टन, 48.25 लाख टन और 51.05 लाख टन धान खरीद पाई.

सरकार द्वारा कृषि उपज की खरीदी इसलिए जरूरी है ताकि किसानों को बाजारों में एमएसपी से कम दाम पर प्राइवेट ट्रेडर्स को अपनी उपज न बेचना पड़े और उन्हें उचित मूल्य मिल पाए.

इसके अलावा सरकारी खरीद इसलिए भी आवश्यक है, ताकि बाजार मूल्य को एमएसपी के बराबर या इससे ज्यादा पर लाया जा सके.

प्रतिदिन दो किसानों से भी खरीदी नहीं कर पाए यूपी के खरीद केंद्र

उत्तर प्रदेश में धान की सरकारी खरीद की रफ्तार इस कदर धीमी रही कि राज्य के खरीद केंद्र एक दिन में दो किसानों से भी धान नहीं खरीद पाए.

खाद्य एवं रसद विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में धान की खरीद के लिए 11 एजेंसियों के कुल 4330 खरीद केंद्र लगाए गए थे. इन केंद्रों ने मिलकर कुल 519,074 किसानों से खरीद की है. यानी कि एक खरीद केंद्र ने करीब 120 किसानों से खरीदी की है.

चूंकि इस साल एक अक्टूबर से धान की सरकारी खरीद चालू है, जो कि सात दिसंबर तक 67 दिन होते हैं, इस तरह एक खरीद केंद्र ने एक दिन में औसतन मात्र 1.79 किसानों (120/67= 1.79) से धान खरीदा है, जो कि दो किसानों से भी कम है.

वहीं अगर धान खरीद की मात्रा से तुलना की जाए तो उत्तर प्रदेश में कुल 28.39 लाख टन धान खरीद के अनुसार प्रति खरीद केंद्र ने पिछले 67 दिनों में औसतन करीब 656 टन धान खरीदा है. इस तरह एक खरीद केंद्र ने एक दिन में महज 10 टन धान खरीदा है.

कृषि विशेषज्ञों और किसानों का कहना है कि ये काफी कम खरीदी है, जिसका खामियाजा किसान को अपने उत्पाद को औने-पौने दाम पर बेचकर भुगतना पड़ता है.

राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, इस बार एक किसान से औसतन 55 क्विंटल या 5.46 टन गेहूं खरीदा गया है.

मालूम हो कि केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान कड़कड़ाती ठंड में बीते 26 नवंबर से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर धरना दे रहे हैं. इसे लेकर सरकार और किसान के बीच कम से कम छह दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई प्रभावी निष्कर्ष नहीं निकल पाया है.

योगी आदित्यनाथ ने इन कानूनों को नए युग का आरंभ बताया है, जबकि किसानों का आरोप है कि सरकार इसके जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं मंडियों की स्थापित व्यवस्था को खत्म करना चाह रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो यूपी जैसे राज्यों की स्थिति और खराब हो जाएगी.

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