राष्ट्रीय राजमार्ग प्रोजेक्ट के लिए केंद्र को पूर्व पर्यावरणीय मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं: कोर्ट

भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत बन रही चेन्नई-सलेम आठ लेन की हरित राजमार्ग परियोजना का कुछ किसानों सहित स्थानीय लोगों का एक वर्ग विरोध कर रहा था, क्योंकि उन्हें अपनी भूमि गंवाने का भय था. पर्यावरणविद भी वृक्षों की कटाई का विरोध कर रहे थे. यह परियोजना आरक्षित वन और नदियों से होकर गुज़रती है.

(फोटो: पीटीआई)

भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत बन रही चेन्नई-सलेम आठ लेन की हरित राजमार्ग परियोजना का कुछ किसानों सहित स्थानीय लोगों का एक वर्ग विरोध कर रहा था, क्योंकि उन्हें अपनी भूमि गंवाने का भय था. पर्यावरणविद भी वृक्षों की कटाई का विरोध कर रहे थे. यह परियोजना आरक्षित वन और नदियों से होकर गुज़रती है.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते मंगलवार को कहा कि केंद्र सरकार को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित करने और ऐसी सड़कों के निर्माण, रखरखाव या संचालन के लिए भूमि अधिग्रहण करने की अपनी मंशा व्यक्त करने से पहले कानूनों के तहत ‘पूर्व पर्यावरणीय या वन मंजूरी’ प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है.

उच्चतम न्यायालय ने चेन्नई-सलेम आठ लेन की 10,000 करोड़ रुपये की लागत वाली हरित राजमार्ग परियोजना को लेकर दिए एक फैसले में ये टिप्पणी की है.

कोर्ट ने इस परियोजना की खातिर भूमि अधिग्रहण के लिए जारी अधिसूचना को सही ठहराया और कहा कि केंद्र तथा राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अब इस राजमार्ग निर्माण के वास्ते भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया आगे बढ़ा सकते हैं.

शीर्ष अदालत ने हालांकि इस परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ भूस्वामियों की अपील खारिज कर दी.

जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने केंद्र और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण तथा पीएमके नेता अंबुमणि रामदास सहित कुछ भू स्वामियों की अपील पर यह फैसला सुनाया.

पीठ ने राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956, राष्ट्रीय राजमार्ग नियम, 1957 और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1988 के संबंधित प्रावधानों पर विचार करते हुए ये फैसला दिया है, जिसके आधार पर पूर्व में मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि प्रोजेक्ट के लिए पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी जरूरी है.

ये अपीलें मद्रास हाईकोर्ट के आठ अप्रैल, 2019 के फैसले के खिलाफ दायर की गई थीं. उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में नए राजमार्ग के निर्माण के लिए विर्निदिष्ट भूमि के अधिग्रहण के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग कानून की धारा 3ए(1) के अंतर्गत जारी अधिसूचनाओं को गैरकानूनी और कानून की नजर में दोषपूर्ण बताया था.

यह नया राजमार्ग ‘भारतमाला परियोजना-चरण 15’ परियोजना का हिस्सा है. शीर्ष अदालत की पीठ ने अपने निर्णय में केंद्र और राजमार्ग प्राधिकरण की अपील, मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले में राजमार्ग परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए अधिसूचना निरस्त करने तक स्वीकार कर ली और उसे अपनी प्रक्रिया के साथ आगे बढ़ने की अनुमति दे दी.

आठ लेन की 277.3 किमी लंबी हरित राजमार्ग की इस परियोजना का मकसद चेन्नई और सलेम के बीच की यात्रा का समय आधा करना अर्थात करीब सवा दो घंटे कम करना है.

हालांकि, इस परियोजना का कुछ किसानों सहित स्थानीय लोगों का एक वर्ग विरोध कर रहा था, क्योंकि उन्हें अपनी भूमि गंवाने का भय था. पर्यावरणविद भी वृक्षों की कटाई का विरोध कर रहे थे. यह परियोजना आरक्षित वन और नदियों से होकर गुजरती है.

जस्टिस खानविलकर ने अपने 140 पन्ने के फैसले में मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय में राजस्व प्राधिकारियों को एनएचएआई कानून के तहत जारी इस अधिसूचना के आधार पर एनएचएआई के पक्ष में की गयी दाखिल खारिज की और प्रविष्टियां बहाल करने का निर्देश दिया था.

जस्टिस खानविलकर ने कहा, ‘1956 के कानून में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो केंद्र सरकार को धारा 2(2) के तहत जारी किए गए नोटिफिकेशन से पहले पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी लेने का प्रावधान करता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इन अधिनियमों/नियमों में से कोई भी धारा 2(2) के तहत राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित करने या 1956 की धारा 3ए के तहत राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण, रखरखाव, प्रबंधन या संचालन के उद्देश्य से भूमि का अधिग्रहण करने की मंशा जाहिर करने से पहले केंद्र सरकार को आवश्यक पर्यावरणीय या वन मंजूरी प्राप्त करने के लिए नहीं कहता है.’

हालांकि कोर्ट ने कहा कि संबंधित प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य शुरू करने से पहले इसे लागू करने वाली एजेंसी को पर्यावरणीय या वन मंजूरी लेनी होगी.

इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने पर्यावरण और वन कानूनों के तहत सक्षम अधिकारियों द्वारा दी गई अनुमति या मंजूरी की वैधता पर कोई राय नहीं दी है.

इसमें कहा गया है कि पर्यावरण और वन कानूनों के तहत अनुमति देने वाले आदेश उच्च न्यायालय के समक्ष विषय या मुद्दे नहीं थे और इसलिए प्रभावित व्यक्तियों के लिए यह विकल्प खुला हुआ है कि वे इसे चुनौती दे सकते हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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