2015-2019 में देश के प्रमुख राज्यों में बच्चों में कुपोषण की स्थिति बिगड़ीः रिपोर्ट

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 12 दिसंबर को जारी किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-2020 के पहले चरण के आंकड़े बताते हैं कि कई राज्यों में स्वच्छता में सुधार और ईंधन एवं पीने योग्य साफ पानी तक बेहतर पहुंच के बावजूद बच्चों में कुपोषण का स्तर तेजी से बढ़ा है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 12 दिसंबर को जारी किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-2020 के पहले चरण के आंकड़े बताते हैं कि कई राज्यों में स्वच्छता में सुधार और ईंधन एवं पीने योग्य साफ पानी तक बेहतर पहुंच के बावजूद बच्चों में कुपोषण का स्तर तेजी से बढ़ा है.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्लीः देश के कई राज्यों में स्वच्छता में सुधार और ईंधन एवं पीने योग्य साफ पानी तक बेहतर पहुंच के बावजूद बच्चों में कुपोषण का स्तर तेजी से बढ़ा है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 12 दिसंबर को जारी किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2019-2020 के पहले चरण के आंकड़ों से यह पता चला है.

यह ताजा आंकड़े महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल सहित 17 राज्यों और जम्मू कश्मीर सहित पांच केंद्रशासित प्रदेशों का है.

सर्वे के दूसरे चरण में उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों को कवर किया जाएगा. दरअसल, कोरोना की वजह से इसमें देरी हो गई थी, इन राज्यों के नतीजे मई 2021 तक उपलब्ध होने की उम्मीद है.

पहले चरण के आंकड़ों से पता चलता है कि कई राज्यों में पांच साल तक की उम्र के बच्चों में कुपोषण के मापदंडों में या तो मामूली सुधार हुआ है या फिर यह और बदतर हुआ है. ये मापदंड बच्चों की उम्र के अनुरूप लंबाई नहीं बढ़ना, लंबाई के अनुरूप कम वजन, कम वजन और बाल मृत्यु दर है.

ये चार प्रमुख मापक हैं और इनके आंकड़ें वैश्विक भूख सूचकांक जैसे कई वैश्विक सूचकांकों में इस्तेमाल होते हैं.

बच्चों की उम्र के अनुरूप कम वजन कुपोषण को दर्शाता है. भारत में हमेशा से ही बच्चों की लंबाई के अनुरूप उनका वजन कम रहा है लेकिन इसका स्तर कम करने के बजाए तेलंगाना, केरल, बिहार और असम जैसे कई राज्यों में यह बढ़ा है.

वहीं, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में यह स्थिर बना हुआ है.

जब भी कम वजनी बच्चों के अनुपात का सवाल उठता है तो गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, असम और केरल जैसे कई बड़े राज्यों में बढ़ोतरी देखने को मिली है.

लेकिन सबसे बड़ा उलटफेर चाइल्ड स्टटिंग यानी बच्चों की उम्र के अनुरूप लंबाई नहीं बढ़ने में देखने को मिला है, जो कुपोषण को दर्शाता है और उन बच्चों के प्रतिशत का उल्लेख करता है, जिनकी उम्र के अनुरूप उनकी लंबाई कम है.

स्टंटिंग की वजह से किसी भी अन्य कारक की तुलना में बच्चे के शारीरिक विकास पर कहीं अधिक दीर्घकालीन विपरीत प्रभाव डालने की संभावना है.

तेलंगाना, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में चाइल्ड स्टंटिंग का स्तर बढ़ा है.

अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान की वरिष्ठ रिसर्च फेलो पूर्णिमा मेनन के मुताबिक, ‘चाइल्ड स्टटिंग बहुत परेशान करने वाली है. दुनिया के अधिकतर देशों में स्टंटिंग के मामले नहीं बढ़ रहे. आमतौर पर हमने स्टंटिंग का स्तर बढ़ते नहीं देखा क्योंकि जो भी कारक बाल विकास को प्रभावित करते हैं, उनमें स्थिर लोकतंत्र और अर्थव्यवस्थाओं में विकास होने की वजह से सुधार होता है.’

पेनसिल्वीनिया यूनिवर्सिटी से जुड़े रिसर्चर आशीष गुप्ता का कहना है कि एनएफएचएस-3 (2005-05) और एनएफएचएस-चार (2015-2016) के बीच मृत्यु दर मे कमी आई है.

मेनन ने कहा कि 60 फीसदी से अधिक बाल मृत्यु दर खराब पोषण की वजह से होती है. अन्य शब्दों में कहें तो बाल कुपोषण केंद्रीय समस्या है.

मोदी सरकार के शुरुआती पांच सालों के दौरान के एनएफएचएस-5 के आंकड़े जुटाए गए.

मेनन ने कहा कि शोधकर्ताओं ने इसका कारण जानने के लिए आंकड़ों का गहनता से अध्ययन किया. इसके कई कारण है. उदाहरण के लिए अगर आय का स्तर घटता है तो कुपोषण का स्तर खराब होता है.

मंत्रालय के मुताबिक, एनएफएचएस-5 का कंटेंट एनएफएचएस-4 के कंटेंट के समान है, जिसकी समय-समय पर तुलना होती है.

एनएफएचएस-5 में कुछ नए विषय शामिल हैं, जैसे प्री-स्कूल शिक्षा, विकलांगता, शौचालय तक पहुंच, मृत्यु पंजीकरण, मासिक धर्म के दौरान नहाने की पद्धति और गर्भपात के तरीके और कारण.