अदालत ने नीतीश कुमार पर कॉपीराइट मामले में 20 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया

जेएनयू के पूर्व छात्र ने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अनुमोदन से प्रकाशित एक पुस्तक उनके शोध कार्य का चुराया हुआ संस्करण है.

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नीतीश कुमार. (फोटो: पीटीआई)

जेएनयू के पूर्व छात्र ने आरोप लगाया था कि एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा अपने सदस्य सचिव शैबल गुप्ता के ज़रिये और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अनुमोदन से प्रकाशित पुस्तक उनके शोध कार्य का चुराया हुआ संस्करण है.

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नीतीश कुमार. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेएनयू के पूर्व छात्र द्वारा कॉपीराइट के उल्लंघन पर एक कानूनी वाद से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का प्रतिवादी के रूप में नाम हटाने का अनुरोध ख़ारिज कर दिया और उन पर 20 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया.

संयुक्त रजिस्ट्रार संजीव अग्रवाल ने बुधवार को आदेश पारित करते हुए कहा कि आवेदन कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है क्योंकि याचिकाकर्ता (जेएनयू के पूर्व छात्र) को प्रतिवादी चुनने का हक है.

अपने कानूनी वाद में जेएनयू के पूर्व छात्र अतुल कुमार सिंह ने आरोप लगाया कि पटना स्थित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एडीआरआई) द्वारा अपने सदस्य सचिव शैबल गुप्ता के ज़रिये और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अनुमोदन से प्रकाशित पुस्तक उनके शोध कार्य का चुराया हुआ संस्करण है.

मुख्यमंत्री ने अपने आवेदन में कहा कि उनका अन्य प्रतिवादियों और पुस्तक ‘स्पेशल कैटेगरी स्टेटस: अ केस फॉर बिहार’ से किसी तरह का प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध नहीं है. नीतीश कुमार का तर्क था कि उन्होंने इस पुस्तक को केवल अनुमोदित किया है, लिखा नहीं है.

बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा कि वाद को लेकर उनके ख़िलाफ़ कोई मामला नहीं बनता और उन्हें द्वेषपूर्ण मंशा से शर्मिंदा करने के लिए पक्षकार बनाया गया है.

संयुक्त रजिस्ट्रार ने कुमार की दलीलों को ख़ारिज कर दिया.  उन्होंने कि तथ्य प्रतिवादी संख्या एक (नीतीश कुमार) के ख़िलाफ़ याचिकाकर्ता (अतुल कुमार सिंह) को मुक़दमा करने का अधिकार देने के लिए पर्याप्त हैं.

संयुक्त रजिस्ट्रार ने कहा कि नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ मुक़दमा करने के पर्याप्त आधार हैं.

उन्होंने कहा कि (नीतीश कुमार द्वारा) वर्तमान अंतरिम आवेदन कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है. इसे बीस हज़ार रुपये के जुर्माने के साथ ख़ारिज किया जाता है.

नीतीश कुमार के वकील ने कहा कि आदेश को उच्च न्यायालय की उचित पीठ के सामने चुनौती दी जाएगी.

इस मामले में 2006-10 के बीच जेएनयू के मुख्य प्रॉक्टर भी एक पक्ष हैं. उनकी वकील मोनिका अरोड़ा और कुशल कुमार ने दावे के साथ कहा कि अतुल कुमार सिंह आख़िरी 2013 में विश्वविद्यालय आए थे इसलिए विश्वद्यालय का इसमें कोई भूमिका नहीं है.

अतुल कुमार सिंह जेएनयू के वरिष्ठ शोधकर्ता रहे हैं. 2010 में उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दाख़िल करते हुए आरोप लगाया था कि 2006 में उनकी पीएचडी थिसिस ‘रोल आॅफ स्टेट इन इकोनॉमिक ट्रांसफॉरमेशन: अ केस स्टडी आॅफ कंटेम्पररी बिहार’ को 15 मई 2009 को एक पुस्तक स्पेशल कैटेगरी स्टेटस: अ केस फॉर बिहार के रूप में प्रकाशित किया गया है.

याचिका में कहा गया है कि 2006 में अतुल कुमार सिंह जेएनयू में पीएचडी के लिए एनरोल हुए थे. उनका गृह राज्य बिहार है, जो कि उनके शोध का विषय था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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