सिर्फ़ इस बिना पर क्लोज़र रिपोर्ट नहीं पेश की जा सकती कि सूचना देने वाले ने सबूत नहीं दिए: कोर्ट

हत्या के एक मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस का प्राथमिक कर्तव्य है कि वह अपराध की निष्पक्ष जांच करे. समाज में शांति एवं कानून का शासन बनाए रखने के संवैधानिक ज़िम्मेदारी के अलावा यह आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत क़ानूनी कार्य है.

(फोटो: पीटीआई)

हत्या के एक मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस का प्राथमिक कर्तव्य है कि वह अपराध की निष्पक्ष जांच करे. समाज में शांति एवं कानून का शासन बनाए रखने के संवैधानिक ज़िम्मेदारी के अलावा यह आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत क़ानूनी कार्य है.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जांच एजेंसियों द्वारा सिर्फ इस बिना पर क्लोजर रिपोर्ट नहीं दायर की जा सकती है कि सूचना देने वाले व्यक्ति ने पर्याप्त जानकारी महैया नहीं कराई.

जस्टिस आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत निष्पक्ष जांच करना आवश्यकता है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, एक मर्डर केस में दायर की गई क्लोजर रिपोर्ट को खारिज करते हुए न्यायालय ने यह टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि यह पुलिस की कानूनी एवं संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वे किसी संज्ञेय अपराध पर पर्याप्त जांच करें.

इस मामले में पुलिस ने एक आरोपी के खिलाफ क्लोजर रिपोर्ट दायर करते हुए कहा कि व्यक्ति के खिलाफ षड्यंत्र के पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं और सूचना देने वाले व्यक्ति ने कोई जानकारी या सबूत पुलिस को मुहैया नहीं कराया है.

जस्टिस नरीमन के अलावा पीठ में शामिल जस्टिस नवीन सिन्हा और कृष्ण मुरारी ने कहा, ‘हम यह कहने के लिए विवश हैं कि जांच और क्लोजर रिपोर्ट अत्यंत सामान्य और लापरवाही भरा है. जांच एवं क्लोजर रिपोर्ट में कुछ भी ऐसा नहीं है जो कि आरोपी के खिलाफ उचित प्रमाण न मिलने के दावों की पुष्टि करता हो. क्लोजर रिपोर्ट जांच अधिकारी की लफ्फाजी पर आधारित है.’

पीठ ने आगे कहा, ‘यह जांच एक दिखावा प्रतीत होती है, जिसमें जांच से अधिक मामले को दबाने की कोशिश झलकती है. पुलिस का प्राथमिक कर्तव्य है कि वह एक संज्ञेय अपराध होने की रिपोर्ट प्राप्त करने पर जांच करे. समाज में शांति एवं कानून का शासन बनाए रखने के संवैधानिक जिम्मेदारी के अलावा यह आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत कानूनी कार्य है.’

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, ‘ये कहना कि जांच इसलिए नहीं हो पाई, क्योंकि सूचना देने वाले व्यक्ति ने पर्याप्त सबूत नहीं मुहैया कराए, हमारे हिसाब से यह पुलिस का निरर्थक बयान है.’

इसके साथ ही कोर्ट ने आगे की जांच पूरी करने के लिए उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी अनिरुद्ध पंकज को नियुक्त किया, जिन्हें जिम्मेदारी दी गई है कि वे काबिल अफसरों की टीम बनाकर मामले की जांच कराएं.

क्लोजर रिपोर्ट को खारिज करते हुए पीठ ने कहा, ‘पुलिस का कानूनी कार्य है कि वो आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत किसी अपराध की जांच करे. जांच पुलिस का विशेष विशेषाधिकार है, जिसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है. लेकिन यदि पुलिस कानून के मुताबिक अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं करती है, तो न्यायालय ये देखते हुए अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हट सकता कि जांच पुलिस का विशेषाधिकार है.’

न्यायालय ने आगे कहा, ‘यदि पेश किए गए दस्तावेजों से कोर्ट संतुष्ट हो जाता है कि पुलिस ने मामले में सही से जांच नहीं की है तो यह कोर्ट का दायित्व है कि वह मामले में कानून के मुताबिक जांच सुनिश्चित करे. यदि इसे लेकर कोर्ट कोई निर्देश देता है तो यह जांच में हस्तक्षेप करना नहीं होगा. निष्पक्ष जांच भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत आवश्यक है और पुलिस द्वारा इसे लागू कराने की कोर्ट की जिम्मेदारी है.’