मोदी सरकार में स्वामीनाथन आयोग की 201 में से सिर्फ़ 25 सिफ़ारिशों को ही लागू किया गया

विशेष रिपोर्टः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में किसानों की हालत सुधारने के लिए गठित स्वामीनाथन आयोग की सभी सिफ़ारिशें लागू करने का श्रेय एक बार फ़िर अपनी सरकार को दिया है. हालांकि द वायर द्वारा प्राप्त दस्तावेज़ों से पता चलता है कि मोदी सरकार में सिर्फ़ 25 सिफ़ारिशें ही लागू की गई है, जबकि यूपीए सरकार में 175 सिफ़ारिशें लागू की गई थीं.

New Delhi: Prime Minister Narendra Modi addresses the media before commencement of the first day of Parliaments Monsoon Session, amid the ongoing coronavirus pandemic, at Parliament House in New Delhi, Monday, Sept. 14, 2020. (PTI Photo/Kamal Singh)(PTI14-09-2020 000025B)(PTI22-12-2020 000236B)

विशेष रिपोर्टः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में किसानों की हालत सुधारने के लिए गठित स्वामीनाथन आयोग की सभी सिफ़ारिशें लागू करने का श्रेय एक बार फ़िर अपनी सरकार को दिया है. हालांकि द वायर द्वारा प्राप्त दस्तावेज़ों से पता चलता है कि मोदी सरकार में सिर्फ़ 25 सिफ़ारिशें ही लागू की गई है, जबकि यूपीए सरकार में 175 सिफ़ारिशें लागू की गई थीं.

New Delhi: Prime Minister Narendra Modi addresses the media before commencement of the first day of Parliaments Monsoon Session, amid the ongoing coronavirus pandemic, at Parliament House in New Delhi, Monday, Sept. 14, 2020. (PTI Photo/Kamal Singh)(PTI14-09-2020 000025B)(PTI22-12-2020 000236B)
(नरेंद्र मोदी. फोटोः पीटीआई)

नई दिल्ली: मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे देशव्यापी किसान आंदोलन के बीच एक बार फिर से बहुचर्चित स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें चर्चा में हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने हाल ही में एक बार फिर दावा किया कि राष्ट्रीय किसान आयोग, जिसे स्वामीनाथन आयोग के नाम से जाना जाता है, की सिफारिशों को कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने फाइलों में दबाकर रखा था और आठ साल बाद इसे निकालकर उन्होंने लागू किया.

बीते 18 दिसंबर को मध्य प्रदेश में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने किसान आंदोलन के संदर्भ में कहा, ‘किसानों की बातें करने वाले लोग, आज झूठे आंसू बहाने वाले लोग कितने निर्दयी हैं, इसका बहुत बड़ा सबूत है स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट. ये लोग (कांग्रेस) स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को आठ साल तक दबाकर बैठे रहे.’

प्रधानमंत्री ने कहा था, ‘किसान आंदोलन करते थे, प्रदर्शन करते थे, लेकिन इन लोगों के पेट का पानी नहीं हिला. किसानों पर ज्यादा खर्च न करने के लिए उन्होंने रिपोर्ट को दबा दिया. हमारी सरकार किसानों को अन्नदाता मानती है. हमने फाइलों के ढेर में फेंक दी गई स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को बाहर निकाला और इसकी सिफारिशें लागू की. किसानों को लागत का डेढ़ गुना एमएसपी हमने दिया.’

हालांकि प्रधानमंत्री की ये दलील कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा उनकी फाइलों में दर्ज की गई हकीकतों पर खरा नहीं उतरती है. मंत्रालय ने स्वामीनाथन आयोग की कुल सिफारिशों में से 201 को लागू करने की योजना बनाई थी.

हालांकि द वायर  द्वारा प्राप्त किए गए आधिकारिक दस्तावेजों से पता चलता है कि सरकार ने इसमें से 200 सिफारिशों को लागू करने का दावा किया है, जिसमें से महज 25 सिफारिशें ही मोदी सरकार के दौरान लागू की गई हैं. बाकी की 175 सिफारिशें पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के दौरान लागू की गई थीं.

वैसे तो भारत सरकार का ये दावा काफी विवादास्पद है कि क्या ये सिफारिशें वाकई जमीन पर लागू हुई हैं या ये सब सिर्फ फाइलों तक ही सीमित हैं. इसे लेकर आने वाले समय में द वायर  इनकी पड़ताल करते हुए कुछ विस्तृत रिपोर्ट्स पेश करेगा.

प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की अगुवाई में 18 नवंबर 2004 को ‘राष्ट्रीय किसान आयोग’ का गठन किया गया था. इसने चार अक्टूबर 2006 को अपनी पांचवीं और अंतिम रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी. रिपोर्ट का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में व्यापक एवं स्थायी बदलाव लाने के साथ-साथ खेती को कमाई एवं रोजगार का जरिया बनाना था.

इसने आयोग की प्रमुख सिफारिशों को शामिल करते हुए ‘राष्ट्रीय किसान नीति’ को भी तैयार किया था, जिसमें से 201 एक्शन पॉइंट को लागू करने योजना बनाई गई थी. इसके क्रियान्वयन की निगरानी करने के लिए अंतर-मंत्रालयी समिति (आईएमसी) का गठन हुआ था.


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दस्तावेज के मुताबिक, आईएमसी की अब तक कुल आठ बैठकें हुई हैं, जिसमें से सिर्फ तीन बैठक मोदी सरकार के कार्यकाल में हुई है.

इसकी पहली बैठक 14 अक्टूबर 2009 को हुई थी, जिसमें 201 सिफारिशों को लागू करने की रूपरेखा तैयार की गई. आईएमसी की दूसरी बैठक तीन जून 2010 को हुई और तब तक 42 सिफारिशों को लागू किया गया और 159 लंबित थीं.

इसी तरह समिति की तीसरी बैठक जून 2012 में हुई और तब तक 152 सिफारिशों को लागू किया गया और 49 लंबित थीं. इसके बाद सितंबर 2013 में इसकी चौथी और जनवरी 2014 में पांचवीं बैठक हुई. रिकॉर्ड के मुताबिक इस दौरान 25 और सिफारिशों को लागू किया गया.

साल 2014 में सत्ता में आई मोदी सरकार के समय इन 201 एक्शन पॉइंट में से 26 पॉइंट को लागू किया जाना था, जिसमें से 25 को अभी तक लागू किया गया है और एक लंबित है.

अगस्त 2015 में आईएसमी की छठी बैठक हुई थी. तब तक 17 और सिफारिशों को लागू माना गया और नौ लंबित थीं. इसकी आखिरी बैठक आठ अप्रैल 2019 को हुई थी.

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(स्रोत: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय)

ये आंकड़े कृषि मंत्री के दावों पर भी सवालिया निशान खड़े करते हैं. किसान आंदोलनों को लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दैनिक भास्कर अखबार को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि स्वामीनाथन कमेटी की 201 अनुशंसाओं में से ‘200 को मोदी के नेतृत्व’ में लागू किया जा चुका है.

हालांकि उपर्युक्त में पेश किए गए आंकड़ों से स्पष्ट है कि कृषि मंत्रालय के मुताबिक मोदी सरकार के कार्यकाल में सिर्फ 25 सिफारिशों को ही लागू किया गया है.

उन्होंने ये भी कहा कि नए कानून राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिशों पर आधारित हैं. वैसे यदि एपीएमसी (कृषि उत्पाद विपणन समिति) के बाहर कृषि उपज की खरीद-बिक्री की इजाजत देने वाले कानून ‘किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020’ के संदर्भ में बात करें तो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों में ये जरूर कहा गया है कि एपीएमसी व्यवस्था में तत्काल बदलाव लाने की जरूरत है.

हालांकि इस रिपोर्ट में कहीं भी ये नहीं कहा गया है कि केंद्र सरकार इसे लेकर कानून बना सकती है. आयोग ने राज्यों को उनके एपीएमसी एक्ट में बदलाव करने की सिफारिश की थी.

इन 201 सिफारिशों में से एपीएमसी से जुड़ी सिर्फ एक सिफारिश को शामिल किया गया था, जो कि मंडियों में लगने वाले टैक्स को लेकर था.

आयोग ने इसे ‘अनिवार्य टैक्स’ के बजाय ‘सर्विस चार्ज’ के रूप में लागू करने को कहा था, ताकि जो जैसी सुविधा का इस्तेमाल करे, वो उतना टैक्स या लेवी दे.

नए कानून का समर्थन करने के लिए प्रधानमंत्री, कृषि मंत्री समेत भाजपा के तमाम नेता इस टैक्स को गलत ठहराने का भाव पेश कर रहे हैं और तथाकथित नई व्यवस्था में टैक्स न लगने पर जोर देकर कृषि कानून पर जनता का समर्थन बटोरने की कोशिश कर रहे हैं.

हालांकि द वायर   द्वारा प्राप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने इसे सही ठहराते हुए कहा था कि मंडियों में वसूली जाने वाली राशि टैक्स नहीं है, इसके बदले में संबंधित एपीएमसी वहां पर लोगों को सेवाएं प्रदान करते हैं. मंत्रालय ने इसके लिए देश भर में एक समान कर जीएसटी लगाने की बात कही थी. कृषि मंत्रालय ने भी इसका समर्थन किया है.


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वर्तमान में चल रहे कृषि आंदोलन में किसानों की एक मांग ये भी है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को पूर्ण रूप से लागू किया जाना चाहिए, जिसमें लागत का डेढ़ गुना एमएसपी देने की बात कही गई थी. वैसे तो सरकार ये दावा करती है कि उन्होंने इस प्रावधान को लागू कर दिया है, लेकिन आंकड़े इस पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं.

इसके अलावा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कृषि संकट की प्रमुख वजह, सिंचाई, भूमि सुधार, कृषि उत्पादकता, ऋण एवं बीमा, खाद्य सुरक्षा, किसान आत्महत्या से रोकथाम, कृषि बाजार, खेती में रोजगार जैसे खेती के विभिन्न आयामों पर विस्तृत सिफारिशें दी थीं.

मालूम हो कि केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए कृषि से संबंधित तीन विधेयकों– किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020- के विरोध में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.

किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन कानूनों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.

दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने बार-बार इससे इनकार किया है. सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.

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