यूपी के बाद हिमाचल प्रदेश में जबरन धर्मांतरण के ख़िलाफ़ क़ानून लागू

इस विधेयक को पिछले साल 30 अगस्त को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में पारित किया गया था और राज्यपाल की मंज़ूरी मिली थी. इस धर्मांतरण विरोधी क़ानून में सात साल तक की कड़ी सज़ा का प्रावधान है जबकि पुराने हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता क़ानून, 2006 के तहत तीन साल की सज़ा का प्रावधान था.

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हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर. (फोटो साभार: फेसबुक/@jairamthakurbjp)

इस विधेयक को पिछले साल 30 अगस्त को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में पारित किया गया था और राज्यपाल की मंज़ूरी मिली थी. इस धर्मांतरण विरोधी क़ानून में सात साल तक की कड़ी सज़ा का प्रावधान है जबकि पुराने हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता क़ानून, 2006 के तहत तीन साल की सज़ा का प्रावधान था.

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर. (फोटो साभार: फेसबुक/@jairamthakurbjp)
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर. (फोटो साभार: फेसबुक/@jairamthakurbjp)

शिमलाः भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू हो गया है.

इस विधेयक को पिछले साल 30 अगस्त को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में पारित किया गया था और राज्यपाल की मंजूरी प्राप्त हुई थी.

हालांकि, गृह विभाग को इसके कार्यान्वयन की अधिसूचना जारी करने में 15 महीने से अधिक का समय लग गया.

हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता कानून, 2019 को शुक्रवार को राज्य के गृह विभाग द्वारा अधिसूचित कर दिया गया था.

इस कानून में सात साल तक की कड़ी सजा का प्रावधान है जबकि पुराने हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता कानून, 2006 के तहत तीन साल की सजा का प्रावधान था.

कानून को अधिसूचित करने में देरी के बारे में पूछे जाने पर विधि मंत्री सुरेश भारद्वाज ने बताया, ‘गृह विभाग को अधिनियम को लागू करने के लिए अपनाई जाने वाली उचित प्रक्रिया के लिए नियम बनाने थे, अधिसूचना जारी करने में देरी उसी वजह से हो सकती है.’

इस अधिनियम के अनुसार, यदि कोई धर्म परिवर्तन करना चाहता है तो उसे जिला मजिस्ट्रेट को एक महीने का नोटिस देना होगा कि वह अपनी मर्जी से धर्मांतरण कर रहा है.

यह प्रावधान 2006 के कानून में भी लागू किया गया था और इसे अदालत में चुनौती दी गई थी. धर्मांतरण कराने वाले धार्मिक व्यक्ति को भी एक महीने का नोटिस भी देना होगा.

बता दें कि इससे पहले उत्तर प्रदेश में यह कानून लागू हो चुका है. उत्तर प्रदेश पहला ऐसा राज्य है, जहां इस तरह का कानून लाया गया है.

बीते 24 नवंबर को उत्तर प्रदेश सरकार तथाकथित ‘लव जिहाद’ को रोकने के लिए शादी के लिए धर्म परिवर्तन पर लगाम लगाने के लिए ‘उत्‍तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपविर्तन प्रतिषेध अध्‍यादेश, 2020’ ले आई थी.

इस कानून के तहत विवाह के लिए छल-कपट, प्रलोभन देने या बलपूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर विभिन्न श्रेणियों के तहत अधिकतम 10 वर्ष कारावास और 50 हजार तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है.

भाजपा शासित कई अन्य राज्य इस तरह के कानूनों पर विचार कर रहे हैं और पार्टी नेताओं का कहना है कि इसका उद्देश्य लव जिहाद से निपटना है.

अधिनियम बहकाकर, बलपूर्वक, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन, विवाह या किसी अन्य धोखाधड़ी के माध्यम से धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाता है.

धर्मांतरण के एकमात्र उद्देश्य के लिए किसी भी विवाह को अधिनियम की धारा 5 के तहत अमान्य घोषित किया गया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ) 

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