कर्नाटकः येदियुरप्पा के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार का मामला रद्द करने से हाईकोर्ट का इनकार

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा से जुड़ा यह मामला साल 2006 का है, जब वह उप-मुख्यमंत्री थे. उन पर कथित तौर पर सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि का एक हिस्सा निजी व्यक्तियों के लिए जारी करने का आरोप है. हाईकोर्ट ने मामले में पिछले पांच साल में जांच पूरी कर पाने में विफल होने पर लोकायुक्त पुलिस को लताड़ लगाई है.

Bengaluru : Combo-- Moods of Karnataka Chief Minister B S Yediyurappa before a floor test at Vidhanasoudha in Bengaluru on Saturday.(PTI Photo/Shailendra Bhojak)(PTI5_19_2018_000153B)
बीएस येदियुरप्पा. (फोटो: पीटीआई).

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा से जुड़ा यह मामला साल 2006 का है, जब वह उप-मुख्यमंत्री थे. उन पर कथित तौर पर सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि का एक हिस्सा निजी व्यक्तियों के लिए जारी करने का आरोप है. हाईकोर्ट ने मामले में पिछले पांच साल में जांच पूरी कर पाने में विफल होने पर लोकायुक्त पुलिस को लताड़ लगाई है.

Bengaluru : Combo-- Moods of Karnataka Chief Minister B S Yediyurappa before a floor test at Vidhanasoudha in Bengaluru on Saturday.(PTI Photo/Shailendra Bhojak)(PTI5_19_2018_000153B)
बीएस येदियुरप्पा. (फोटो: पीटीआई).

बेंगलुरु: एक सरकारी भूमि की अधिसूचना अवैध तरीके से रद्द किए जाने के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ 2015 के भ्रष्टाचार के मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इसके साथ ही हाईकोर्ट ने इस मामले में पिछले पांच साल में जांच पूरी कर पाने में विफल होने पर भ्रष्टाचार रोधी एजेंसी लोकायुक्त पुलिस को जमकर लताड़ लगाई.

फरवरी 2015 में लोकायुक्त पुलिस द्वारा उठाए गए भ्रष्टाचार के मामले को खत्म करने की दलील के साथ येदियुरप्पा ने 2019 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

लोकायुक्त पुलिस ने 2013 में वासुदेव रेड्डी द्वारा एक अदालत में दायर निजी शिकायत के आधार पर मामले में कार्रवाई की थी.

यह शिकायत येदियुरप्पा के 2006 में उप-मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनके द्वारा लिए गए एक फैसले को लेकर थी, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि का एक हिस्सा निजी व्यक्तियों के के लिए जारी कर दिया था.

येदियुरप्पा ने इस याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था कि एक अन्य आरोपी व्यक्ति (कांग्रेस पार्टी के पूर्व उद्योग मंत्री आरवी देशपांडे) के खिलाफ मामला अदालत ने 9 अक्टूबर 2015 को खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट ने अप्रैल 2019 में येदियुरप्पा के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगा दी थी.

हालांकि, मंगलवार को अदालत ने आदेश दिया कि मामले को रद्द नहीं किया जा सकता है.

उसने येदियुरप्पा के वकीलों की इस दलील को खारिज कर दिया कि जिस एफआईआर के आधार पर देशपांडे को आरोपी बनाया गया था, उसी एफआईआर के आधार पर येदियुरप्पा को आरोपी बनाया गया था. उस मामले को रद्द कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि उनके खिलाफ एक ही प्राथमिकी के आधार पर जांच अवैध होगी.

जस्टिस जॉन माइकल कुन्हा ने अपने आदेश में कहा, मुझे लगता है कि याचिकाकर्ता (आरोपी नंबर 2) के खिलाफ अलग आरोप लगाए गए हैं, जो इस प्रकार हैं: तत्कालीन उप मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने भी लापरवाही से भूमि को डिनोटिफाइड किया, इस तथ्य की उपेक्षा करते हुए कि कब्जा लिया गया था और भूमि उद्यमियों को आवंटित की गई थी.’

उन्होंने कहा, ‘जहां तक याचिकाकर्ता का संबंध है, जिसकी जांच की जानी चाहिए, यह आरोप प्रथमदृष्टया अभी तक एक संज्ञेय अपराध का खुलासा करता है. शिकायत का एक पैरा साफ तौर पर इशारा करता है कि याचिकाकर्ता पर उप-मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उनके द्वारा की गई भूमि के डिनोटिफिकेशन (गैर-अधिसूचित) के स्वतंत्र कार्य के लिए मुकदमा चलाने की मांग की गई है.’

अदालत ने यह भी कहा कि उसके लिए एक ऐसे मामले में प्रथमदृष्टया फैसला देना सही नहीं होगा, जिसमें सभी तथ्य अधूरे और गुथे हुए हैं. इससे भी अधिक जब सबूत इकट्ठा नहीं किए गए और अदालत के सामने पेश नहीं किए गए.

जज ने कहा कि येदियुरप्पा के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी नहीं मिलने का तर्क अच्छा नहीं रहेगा, क्योंकि जब उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी तब वह सार्वजनिक स्थिति से बाहर थे.

अदालत ने 2015 और 2019 के बीच येदियुरप्पा के खिलाफ जांच पूरी नहीं करने के लिए लोकायुक्त की खिंचाई की, जब उस पर कोई रोक नहीं थी.

अदालत ने कहा, हालांकि इस बिंदु पर, यह नहीं कहा जा सकता है कि- उत्तरदाता नंबर 1 ने याचिकाकर्ता के दबाव के आगे घुटने टेक दिए हैं, जो कर्नाटक राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभाल रहे हैं. अभी तक प्रतिवादी नंबर 1 एक स्वतंत्र और निष्पक्ष निकाय होने के नाते, जिसे लोक सेवकों के कदाचार की जांच करने के लिए कर्तव्य सौंपा गया था, वह आम जनता के मन में एक धारणा को जन्म नहीं दे सकता है कि यह राजनीतिक दलों के हाथों में खेल रहा है.’

अदालत ने यह कहते हुए लोकायुक्त पुलिस के खिलाफ किसी कार्रवाई का आदेश देने ने इनकार कर दिया कि ऐसा न हो कि यह जांच को पूर्वाग्रह से ग्रसित कर दे.

इससे पहले बीते सोमवार को कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसके तहत मंत्रियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ 61 मामलों में मुकदमा वापस लेने का फैसला किया गया था. इसमें मौजूदा सांसदों और विधायकों के भी मामले शामिल हैं.

कर्नाटक सरकार ने राज्य के गृह मंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली एक उप-समिति के सुझावों पर 31 अगस्त, 2020 को सत्ताधारी भाजपा के सांसदों और विधायकों पर दर्ज 61 मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया था.